जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया
उम्र भर दोहराऊँगा ऐसी कहानी दे गया
उस से मैं कुछ पा सकूँ ऐसी कहाँ उम्मीद थी
ग़म भी वो शायद बरा-ए-मेहरबानी* दे गया
सब हवायें ले गया मेरे समंदर की कोई
और मुझ को एक कश्ती बादबानी* दे गया
ख़ैर मैं प्यासा रहा पर उस ने इतना तो किया
मेरी पलकों की कतारों को वो पानी दे गया
* बरा-ए-मेहरबानी = दयापूर्वक
* कश्ती बादबानी = पाल वाली नौका
जावेद अख्तर
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