है कितनी खामोश ये घडी जो कुछ सोच कर चुप रहती है
लगता है क्यूँ तेरी खामोशी आज भी मेरा इन्तेजार करती है
हर पल की कीमत समझती है फिरभी, ये ज़िन्दगी क्यूँ ये लम्हे तुझपे निसार करती है
क्यों लगता के वो शिद्दत तेरी आँखों की मुझसे आज भी प्यार करती है
जानती है तेरी मंजिले अलग है मेरी राहों से ,
फिर क्यूँ आज भी ये तेरे होने का वहम बार-बार करती हैं...
लगता है क्यूँ तेरी खामोशी आज भी मेरा इन्तेजार करती है
हर पल की कीमत समझती है फिरभी, ये ज़िन्दगी क्यूँ ये लम्हे तुझपे निसार करती है
क्यों लगता के वो शिद्दत तेरी आँखों की मुझसे आज भी प्यार करती है
जानती है तेरी मंजिले अलग है मेरी राहों से ,
फिर क्यूँ आज भी ये तेरे होने का वहम बार-बार करती हैं...
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