Friday 30 June 2017

है कितनी खामोश ये घडी जो कुछ सोच कर चुप रहती है

है कितनी खामोश ये घडी जो कुछ सोच कर चुप रहती है
लगता है क्यूँ तेरी खामोशी आज भी मेरा इन्तेजार करती है


हर पल की कीमत समझती है फिरभी, ये ज़िन्दगी क्यूँ ये लम्हे तुझपे निसार करती है
क्यों लगता के वो शिद्दत तेरी आँखों की मुझसे आज भी प्यार करती है


जानती है तेरी मंजिले अलग है मेरी राहों से ,
फिर क्यूँ आज भी ये तेरे होने का वहम बार-बार करती हैं...

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