Friday 9 June 2017

अंदर का ज़हर चूम लिया, धूल के आ गए

अंदर का ज़हर चूम लिया, धूल के आ गए
कितने शरीफ लोग थे, सब खुल के आ गए

सूरज से जंग जीतने निकले थे बेवकूफ
सारे सिपाही माँ के थे घुल के आ गए

मस्जिद में दूर दूर कोई दुसरा न था
हम आज अपने आप से मिल जुल के आ गये

नींदो से जंग होती रहेगी तमाम उम्र
आँखों में बंद ख्वाब अगर खुल के आ गए

सूरज ने अपनी शक्ल भी देखि थी पहली बार
आईने को मजे भी मुक़ाबिल के आ गए

अनजाने साये फिरने लगे हैं इधर उधर
मौसम हमरे शहर में काबुल के आ गये

राहत इन्दौरी 

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