Wednesday 14 August 2019

बच्चों के अजीब सवाल, अभिभावकों का बुरा हाल

आमतौर पर बच्चे के सवाल पूछते ही माता-पिता की परेशानी बढ़ जाती है। जवाब के कारण नहीं, बल्कि उनके सवालों की लिस्ट और ज्यादा बढ़ जाने की आशंका से। अकसर ऐसे में हम बच्चों को डांट-डपट देते हैं या फिर उनके सवालों की अनदेखी कर देते हैं। माना कि आप परेशान हो जाते हैं, पर बच्चों के भोले मन को सवालों से भरा नहीं छोड़ना चाहिए। खासकर तब, जब आपको उनकी परवाह हो कि कहीं वे गलत जानकारी हासिल न कर लें।

‘बच्चे 2 साल की उम्र से ही सवाल पूछना शुरू कर देते हैं। ऐसे में उनके सवालों के सही जवाब देना जरूरी होता है। कम उम्र में आप उनको तथ्यों में ना उलझाकर उनके स्तर को ध्यान में रखकर जवाब दे सकती हैं। बेहतर होगा कि साधारण तरीके से सही बात बताएं।’

बच्चों के सवालों पर आपकी प्रतिक्रिया

4 से 6 साल तक :  इस उम्र के बच्चे चीजों को देखकर दो अलग-अलग चीजों और रवैयों में तुलना करना शुरू कर देते हैं। वे स्कूल जाते हैं, जहां टीचर्स उनकी जानकारी में बढ़ोतरी करते हैं। ऐसे में जरूरी है कि उनका सही मानसिक और बौद्धिक विकास हो, इसीलिए उनके प्रश्नों पर चिढ़ें नहीं। 

    अकसर छोटे बच्चे अध्यापक या किसी दूसरे बड़े व्यक्ति के व्यवहार की शिकायत या प्रश्न करते हैं। ऐसे में उन्हें यह कभी न कहें कि ‘मैं तुम्हारी टीचर की खबर लूंगी या उससे बात करूंगी।’ इस उम्र में बच्चों के सवाल भावनाओं से जुड़े होते हैं। पहले टीचर के नजरिए को समझें और अपने स्तर पर बच्चे को समझा दें। उन्हें खुद भी टीचर से समझने के लिए प्रेरित कर सकती हैं। इससे वे आगे चलकर अपनी बात दूसरों के सामने बेहतर ढंग से रख पाएंगे।

7 से 9 वर्ष :  इस उम्र के बच्चों में समझने की क्षमता काफी अच्छी होती है। उनके सवालों के तर्कसंगत और तथ्यों पर आधारित जवाब होने चाहिए। इसके बाद बच्चों के सवालों का दौर लगभग खत्म हो जाता है। वे अपनी जानकारी खुद से हासिल करने लगते हैं। जहां आपको महसूस हो कि आप उत्तर नहीं दे पा रहीं हैं, वहां उनके साथ बैठकर, या अपनी निगरानी में इंटरनेट या जानकारी देने वाले टीवी चैनलों के माध्यम से बच्चों की जिज्ञासा को शांत करें। उनसे कहें, ‘अरे, इस सवाल का जवाब तो मुझे भी नहीं आता, चलो दोनों मिलकर ढूंढ़ते हैं।’ इस उम्र में बच्चों को निर्णायक बनने की ट्रेनिंग दी जा सकती है। इसके लिए आप बच्चे को उसके प्रश्न के बारे में दोबारा सोचने और सही निर्णय लेने के लिए उत्साहित कर सकती हैं। जहां जरूरत महसूस हो आप उन्हें गलत रास्ते पर जाने से रोक सकती हैं और उनकी जानकारी में और विकास कर सकती हैं। इस प्रक्रिया में बच्चा और आप दोनों सीखते हैं।

क्या करें

कैसा भी प्रश्न बच्चे ने किया हो, उनका जवाब उनकी समझ को ध्यान में रखते हुए उन्हीं के लहजे में देना जरूरी है


जिन सवालों के जवाब आप न दे पाएं, उनका हल बच्चों के साथ मिलकर इंटरनेट या टीवी चैनलों या किताब के माध्यम से खोजें


बच्चों के मार्गदर्शक बनें न कि उनके काम के लिए निर्णायक या निर्देशक।


क्या न करें

बच्चों के सवालों की अनदेखी न करें


उन्हें गलत या तथ्यों से परे जवाब न दें


उन्हें दुख पहुंचाने वाले वाक्य जैसे, ‘ये बेतुका सवाल है’, ‘तुम ये सवाल लाते कहां से हो’ या ‘इसका जवाब उसी से पूछना, जिसने तुमसे सवाल किया है’ आदि न कहें।