Friday 30 June 2017

दिल की बात लबों पर लाकर, अब तक हम दुख सहते हैं|

दिल की बात लबों पर लाकर, अब तक हम दुख सहते हैं|
हम ने सुना था इस बस्ती में दिल वाले भी रहते हैं|


बीत गया सावन का महीना मौसम ने नज़रें बदली,
लेकिन इन प्यासी आँखों में अब तक आँसू बहते हैं|


एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्ज़ाम नहीं,
दुनिया वाले दिल वालों को और बहुत कुछ कहते हैं|


जिस की ख़ातिर शहर भी छोड़ा जिस के लिये बदनाम हुए,
आज वही हम से बेगाने-बेगाने से रहते हैं|


वो जो अभी रहगुज़र से, चाक-ए-गरेबाँ गुज़रा था,

उस आवारा दीवाने को 'ज़लिब'-'ज़लिब' कहते हैं

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