Tuesday 27 June 2017

चाँद है ज़ेरे क़दम सूरज खिलौना हो गया


चाँद है ज़ेरे क़दम सूरज खिलौना हो गया

चाँद है ज़ेरे क़दम* सूरज खिलौना हो गया
हाँ, मगर इस दौर में क़िरदार बौना हो गया

शहर के दंगों में जब भी मुफलिसों के घर जले
कोठियों की लॉन का मंज़र सलौना हो गया

ढो रहा है आदमी काँधे पे ख़ुद अपनी सलीब
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा जब बोझ ढोना हो गया

यूँ तो आदम के बदन पर भी था पत्तों का लिबास
रूह* उरियाँ* क्या हुई मौसम घिनौना हो गया

अब किसी लैला को भी इक़रारे-महबूबी नहीं
इस अहद* में प्यार का सिम्बल तिकोना हो गया

* ज़ेरे कदम – कदमो के तले
* रूह – आत्मा
* उरियाँ – निवस्त्र , नग्न
* अहद – समय

अदम गौंडवी

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