बेचता यूँ ही नहीं है आदमी ईमान को
भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को
सब्र की इक हद भी होती है तवज्जो* दीजिए
गर्म रक्खें कब तलक नारों से दस्तरख़्वान* को
शबनमी होंठों की गर्मी दे न पाएगी सुकून
पेट के भूगोल में उलझे हुए इंसान को
पार कर पाएगी ये कहना मुकम्मल भूल है
इस अहद* की सभ्यता नफ़रत के रेगिस्तान को
* तवज्जों – ध्यान
* दस्तरख़्वान – रसोई घर, खाना खाने का स्थान
* अहद – युग, काल
अदम गोंडवी
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