कभी शेर-ओ-नगमा बनके कभी आँसूओ में ढलके
वो मुझे मिले तो लेकिन, मिले सूरते बदलके
कि वफा की सख़्त राहे कि तुम्हारे पाव नाज़ुक
न लो इंतकाम मुझसे मेरे साथ-साथ चलके
न तो होश से ताल्लुक न जूनू से आशनाई*
ये कहाँ पहुँच गये हम तेरी बज़्म* से निकलके
आशनाई = जान-पहचान, दोस्ती, मित्रता
बज्म = महफ़िल
ख़ुमार बाराबंकवी
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