Sunday 28 February 2016

मेरी प्रार्थना

सुकून उतना ही देना ऐ खुदा जिससे जिंदगी चल जाए,
औकात बस इतनी देना कि औरों का भला हो जाए,
रिश्तो में गहराई इतनी हो कि प्यार से निभ जाए,
आँखों में शर्म इतनी देना कि बुजुर्गों का मान रख पायें,
साँसे पिंजर में इतनी हों कि बस नेक काम कर जाए, 
बाकी उम्र ले लेना कि औरों पर बोझ न बन जाए...

Tuesday 23 February 2016

मेरा सच्चा साथी

मेरा सच्चा साथी

कहीं देखा हैं तुमने उसे 
जो मुझे सताया करता था 
जब भी उदास होती थी मैं 
मुझे हँसाया करता था 
एक प्यार भरा रिश्ता था वो मेरा 
जो मुझे अब भी याद आता हैं 
खो गया वक्त के भँवर में कहीं 
जो हर पल मेरे साथ होता था 
आज एक अजनबी की तरह हाथ मिलाता हैं 
जो छोटी से छोटी बात मुझे बताया करता था 
कहीं मिले वो किसी मोड़ पर 
तो उसे मेरा संदेशा देना 
कोई हैं जो आज भी उसका इंतजार कर रहा हैं 
जिसे वो मेरा सच्चा साथी बोला करता था

दोस्ती एक आईना हैं जो झूठ नहीं बोलता | आपको आपके व्यक्तितव से दोस्त ही परिचय करवाता हैं | आपके जीवन के अनमोल पल आपको दोस्तों से ही मिलते हैं |

दोस्त जो आपके सुख दुःख का साथी बनता हैं जो आपको हिम्मत देता हैं | कठिन वक्त में जो आपके पीछे खड़ा होता हैं | हर कोई जानने वाला दोस्त नहीं होता हैं । दोस्त वो होता हैं जो आपको आपसे ज्यादा बेहतर जानता और समझता हैं |

सच्चे दोस्त कभी आसानी से नहीं मिलते | हर एक मोड़ पर दोस्त तो बन जाते हैं लेकिन साथ निभाने वाले दोस्त किसी भी मोड़ पर छोड़कर नहीं जाते |

कभी-कभी अल्फाज़ कोई और लिख देता हैं लेकिन लिखी बाते व्यक्ति को उनके जीवन से जुड़ी यादें याद दिला जाती हैं | वो उन अलफ़ाजो में खुद को तलाशने लगता हैं | बीते पलो को याद करने लगता हैं | ये बीते पल कभी गम के, कभी ख़ुशी के आंसू छलका जाते हैं |इन बीते पलो को दोस्त ही यादगार बनाते हैं | बिना दोस्त जिंदगी में खुशियाँ नहीं आती |

ज़िन्दगी ज़िन्दाबाद

दोस्ती ज़िन्दाबाद

Friday 19 February 2016

Attitude Matters

Weakness of attitude becomes weakness of character.

Albert Einstein

Your attitude is everything. It is how you see the things around you, how you deal with the situations you face, and what you think about life. The difference between a positive and negative attitude could be the difference between a positive or negative life.

16 Tips to Giving Your Attitude a Boost

The tips below are quick and highly effective. Make use of them today and start getting results immediately.

1. Getting up early and taking a walk in the morning is a great way to start the day. Fifteen or twenty minutes is plenty of time for a quick walk in the brisk morning air. 

2. When things aren't going the way you might like them to go, remember that as time passes, so do your troubles. At the time it may be hard to realize that things will get better, but rest assured they will.

3. The only one who can give you a good attitude is you. And the great news is, it can happen whenever you want it to. You could wake up tomorrow with a brand new outlook on life. And why? Because your attitude is yours to control. You don't need permission from anyone to change it.

4. You may be trying to stay positive, but if your friends or coworkers are negative, it may make for a losing battle. The company you keep impacts your attitude greatly. Seldom will you find a group of negative thinkers and one positive attitude together. Negativity can spread, so be sure to keep clear of noticeably negative situations.

5. You have heard it a thousand times, and this will make it a thousand and one. A good diet is vital to maintaining energy, alertness, and a positive attitude. Without the necessary amounts of fuel for your body, it cannot function properly. If you find yourself in a tired and negative mood, ask yourself, 'Have I eaten yet today?'

6. Just as important as a healthy diet is the right amount of sleep. It seems obvious but many people don't get enough sleep at night. Without rest, the body and mind become irritable, fatigued, and they drag through the day. The same effects can result from oversleeping. Make sure you get the sleep you need each night.

7. It is important to have a fun hobby or activity that you can do when facing a problem or a long, hectic day. Sports, books, collecting, etc. are great ways to get away from the hustle and bustle and enjoy yourself.

8. It's true what they say, you get what you give. When you focus on treating others positively and with respect, you will, in most cases, receive the same treatment. Change the focus from yourself to others and let the giving spirit be the reason for your improved view of the world.

9. When you think of the world as a whole, it may serve to downplay the obstacles in your life that cause frustration or complication. You might have it bad, but the odds are that someone else has it worse. That in itself is enough to make people thankful for what they have. 

10. If you feel like you're stuck and you need a way to break out, try something new. Picking up a new instrument, trying out a new sport, or discovering a new talent may add some excitement and enjoyment to your life.

11. Others have successfully done what you are trying to do, and that is why you should be positive about the future. It doesn't matter what you are trying to accomplish, the chances are that someone has done it. That means you can do it too. We are all human, and we all have the same 24 hours in each day. If they can do it, so can you.

12. If you get up on the wrong side of the bed, that doesn't mean you have to go to bed on that same wrong side. If your day begins poorly, make an effort to correct its direction. Realize you aren't happy and fix the problem. Your bad beginning could turn into a happy end.

13. If you do have a bad day though, that's all right. Some people have trouble with that thought. They think that one bad day is not acceptable, making it even worse for them. We all have an off day. The important thing is to make sure we improve the next.

14. Want a positive attitude? Describe your attitude in writing. Your plan will be easier to work if you know what you want. Knowing you want a better attitude may not be enough. Get specific, plan your work, and work your plan.

15. Bringing your friends and family into the picture is a great way to keep you heading in the right direction. Tell some friends about your desire for a better attitude and tell them to let you know when you are getting negative. You may not want to admit you have a negative attitude, but your friends sure will tell you.

16. Being the optimist for others can help you see the positive things in your own life. When a friend comes to you with a problem, remind yourself that you are trying to improve your attitude and make your best effort to give the most positive advice you can. It doesn't have to be overdone, but it should have a very positive flavor to it.

Make use of the above tips and you'll find yourself a true optimist in no time my dear Friends.

God Bless !!

Thursday 18 February 2016

अहंकार

महाकवि कालिदास अपने समय के महान विद्वान थे। उनके कंठ में साक्षात सरस्वती का वास था। शास्त्रार्थ में उन्हें कोई पराजित नहीं कर सकता था।
अपार यश, प्रतिष्ठा और सम्मान पाकर एक बार कालिदास को अपनी विद्वत्ता का घमंड हो गया। उन्हें लगा कि
उन्होंने विश्व का सारा ज्ञान प्राप्त कर
लिया है और अब सीखने को कुछ बाकी नहीं बचा। उनसे बड़ा ज्ञानी संसार में कोई दूसरा नहीं।
एक बार पड़ोसी राज्य से शास्त्रार्थ
का निमंत्रण पाकर कालिदास महाराज
विक्रमादित्य से अनुमति लेकर अपने घोड़े पर रवाना हुए। गर्मी का मौसम था, धूप काफी तेज़ और लगातार यात्रा से कालिदास को प्यास लग आई। जंगल का रास्ता था और दूर तक कोई
बस्ती दिखाई नहीं दे रही थी। थोङी तलाश करने पर उन्हें एक टूटी झोपड़ी दिखाई दी। पानी की आशा में वो उस ओर बढ चले। झोपड़ी के सामने एक कुआं भी था। कालिदास जी ने सोचा कि कोई झोपड़ी में हो तो उससे पानी
देने का अनुरोध किया जाए। उसी समय झोपड़ी से एक छोटी बच्ची मटका लेकर निकली। बच्ची ने कुएं से पानी भरा और जाने लगी।
कालिदास उसके पास जाकर बोले ” बालिके! बहुत प्यास लगी है ज़रा पानी पिला दे।”
बच्ची ने कहा, “आप कौन हैं? मैं आपको जानती भी नहीं, पहले अपना परिचय दीजिए।”
कालिदास को लगा कि मुझे कौन नहीं
जानता मुझे परिचय देने की क्या आवश्यकता? फिर भी प्यास से बेहाल थे तो बोले, “बालिके अभी तुम छोटी हो। इसलिए मुझे नहीं जानती। घर में कोई बड़ा हो तो उसको भेजो। वो मुझे
देखते ही पहचान लेगा। मेरा बहुत नाम और सम्मान है दूर-दूर तक। मैं बहुत विद्वान व्यक्ति हूं।”
कालिदास के बड़बोलेपन और घमंड भरे वचनों से अप्रभावित बालिका बोली, “आप असत्य कह रहे हैं। संसार में सिर्फ दो ही बलवान हैं और उन दोनों को मैं जानती हूं। अपनी प्यास बुझाना चाहते हैं तो उन दोनों का नाम बाताएं?”
थोङी देर सोचकर कालिदास बोले, “मुझे नहीं पता, तुम ही बता दो। मगर मुझे पानी पिला दो। मेरा गला सूख रहा है।”
बालिका बोली, “दो बलवान हैं ‘अन्न’ और ‘जल’। भूख और प्यास में इतनी शक्ति है कि बड़े से बड़े बलवान को भी झुका दें। देखिए तेज़ प्यास ने आपकी क्या हालत बना दी है।”
कलिदास चकित रह गए। लड़की का तर्क अकाट्य था। बड़े से बड़े विद्वानों को पराजित कर चुके कालिदास एक बच्ची के सामने निरुत्तर खङे थे।
बालिका ने पुनः पूछा, “सत्य बताएं, कौन हैं आप?”
वो चलने की तैयारी में थी, कालिदास
थोड़ा नम्र होकर बोले, “बालिके! मैं बटोही हूं।”
मुस्कुराते हुए बच्ची बोली, “आप अभी भी झूठ बोल रहे हैं। संसार में दो ही बटोही हैं। उन दोनों को मैं जानती हूँ, बताइए वो दोनों कौन हैं?”
तेज़ प्यास ने पहले ही कालिदास जी की बुद्धि क्षीण कर दी थी। लेकिन लाचार होकर उन्होंने फिर अनभिज्ञता व्यक्त कर दी।
बच्ची बोली, “आप स्वयं को बङा विद्वान बता रहे हैं और ये भी नहीं जानते? एक स्थान से दूसरे स्थान तक बिना थके जाने वाला बटोही कहलाता है। बटोही दो ही हैं, एक चंद्रमा और
दूसरा सूर्य जो बिना थके चलते रहते हैं। आप तो थक गए हैं। भूख प्यास से बेदम हो रहे हैं। आप कैसे बटोही हो सकते हैं?”
इतना कहकर बालिका ने पानी से भरा मटका उठाया और झोपड़ी के भीतर चली गई। अब तो कालिदास और भी दुखी हो गए। इतने अपमानित वे जीवन में कभी नहीं हुए। प्यास से शरीर की शक्ति घट रही थी। दिमाग़ चकरा रहा था। उन्होंने आशा से झोपड़ी की तरफ़ देखा। तभी अंदर से एक वृद्ध स्त्री निकली। उसके हाथ में खाली मटका था। वो कुएं से पानी भरने लगी।
अब तक काफी विनम्र हो चुके कालिदास बोले, “माते !प्यास से मेरा बुरा हाल है। भर पेट पानी पिला दीजिए बङा पुण्य होगा।”
बूढी माँ बोलीं, ” बेटा मैं तुम्हे जानती नहीं। अपना परिचय दो। मैं अवश्य पानी पिला दूँगी।”
कालिदास ने कहा, “मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें।” “तुम मेहमान कैसे हो सकते हो? संसार में दो ही मेहमान हैं। पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता,सत्य बताओ कौन हो तुम?”
अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश कालिदास बोले “मैं सहनशील हूं। पानी पिला दें।”
“नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है, उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है। दूसरे, पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं। तुम सहनशील नहीं। सच बताओ कौन हो?”
कालिदास लगभग मूर्छा की स्थिति में आ गए और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले, ” मैं हठी हूं।”
“फिर असत्य। हठी तो दो ही हैं, पहला नख और दूसरा केश। कितना भी काटो बार-बार निकल आते हैं। सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप?”
पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुके कालिदास ने कहा, “फिर तो मैं मूर्ख ही हूं।”
“नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो। मूर्ख दो ही हैं। पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है।”
कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाने लगे।
उठो वत्स… ये आवाज़ सुनकर जब कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थी। कालिदास पुनः नतमस्तक हो गए।
“शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार। तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे। इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये स्वांग करना पड़ा।”
कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े।

तलब की राह में पाने से पहले खोना पड़ता है


तलब की राह में पाने से पहले खोना पड़ता है..
बड़े सौदे नज़र में हों तो छोटा होना पड़ता है..

जुबां देता है जो ए दर्द तेरी बेज़ुबानी को..
उसी आंसू को फिर आँखों से बाहर होना पड़ता है..

मोहब्बत ज़िन्दगी के फैसलों से लड़ नहीं सकती..
किसी को खोना पड़ता है किसी का होना पड़ता है..

वसीम बरेलवी

ये एहतियाते मोहब्बत तो जी नहीं जाती



ये एहतियाते मोहब्बत तो जी नहीं जाती..
के तेरी बात तुझसे कही नहीं जाती..

तेरी निगाह भी कैसी अजब कहानी है..
मेरे अलावा किसी से पढ़ी नहीं जाती..

तुझे पता है सूरज तेरे इलाके में..
कही कही तो कभी रोशनी नहीं जाती..

अजब मिजाज है इन खानदानी लोगों का..
तबाह हो के भी दरियादिली नहीं जाती..

वसीम बरेलवी

अपने साये को इतना समझा दे



अपने साये को इतना समझा दे
मुझे मेरे हिस्से की धूप आने दे

एक् नज़र में कई ज़माने देखे तू
बूढ़ी आंखो की तस्वीर बनाने दे

बाबा दुनिया जीत के मैं दिखा दूँगा
अपनी नज़र से दूर तो मुझ को जाने दे

मैं भी तो इस बाग़ का एक् परिंदा हूं
मेरी ही आवाज़ मैं मुझ को गाने दे

फिर तो ये उँचा ही होता जायेगा
बचपन के हाथो में चाँद आ जाने दे

वसीम बरेलवी

तुझको सोचा तो पता हो गया रुसवाई को



तुझको सोचा तो पता हो गया रुसवाई को
मैंने महफूज़ समझ रखा था तन्हाई को

जिस्म की चाह लकीरों से अदा करता है
ख़ाक समझेगा मुसव्विर तेरी अँगडाई को

अपनी दरियाई पे इतरा न बहुत ऐ दरिया
एक कतरा ही बहुत है तेरी रुसवाई को

चाहे जितना भी बिगड़ जाए ज़माने का चलन
झूठ से हारते देखा नहीं सच्चाई को

साथ मौजों के सभी हो जहाँ बहने वाले
कौन समझेगा समन्दर तेरी गहराई को

वसीम बरेलवी

मिरी नज़र के सलीके में क्या नहीं आता



मिरी नज़र के सलीके में क्या नहीं आता
बस इक तिरी ही तरफ़ देखने नहीं आता

अकेले चलना तो मेरा नसीब था कि मुझे
किसी के साथ सफ़र बाँटना नहीं आता

उधर तो जाते हैं रस्ते तमाम होने को
इधर से होके कोई रास्ता नहीं आता

जगाना आता है उसको कई तरीकों से
घरों पे दस्तकें देने खुदा नहीं आता

यहाँ पे तुम ही नहीं आस पास और भी हैं
पर उस तरह से तुम्हें सोचना नहीं आता

पड़े रहो यूँ ही सहमे हुए दियों की तरह
अगर हवाओं के पर बांधना नहीं आता

वसीम बरेलवी

मैं अपने ख़्वाब से बिछ्ड़ा नज़र नहीं आता



मैं अपने ख़्वाब से बिछ्ड़ा नज़र नहीं आता
तू इस सदी में अकेला नज़र नहीं आता

अजब दबाव है इन बाहरी हवाओं का
घरों का बोझ भी उठता नज़र नहीं आता

मैं इक सदा पे हमेशा को घर छोड़ आया
मगर पुकारने वाला नज़र नहीं आता

मैं तेरी राह से हटने को हट गया लेकिन
मुझे तो कोई भी रस्ता नज़र नहीं आता

धुआँ भरा है यहाँ तो सभी की आँखों में
किसी को घर मेरा जलता नज़र नहीं आता

वसीम बरेलवी

वो मुझे छोडकर यूँ आगे बढा जाता है



वो मुझे छोडकर यूँ आगे बढा जाता है
जैसे अब मेरा सफर खत्म हुआ जाता है

बात रोने की लगे और हँसा जाता है
यूँ भी हालात से समझौता किया जाता है

दिल के रिशते ही गिरा देते हैं दीवारें भी
दिल के रिशतों ही को दीवार कहा जाता है

ये मेरी आखरी शब तो नहीं मयखाने में
काँपते हाथों से क्यों ज़ाम दिया जाता है

किस अदालत में सुना जायेगा दावा उनका
जिन उममीदों का गला घोंट दिया जाता है

फासले जिस की रफाकत का मुक़द्दर ठहरे
उस मुसाफिर का कहाँ साथ दिया जाता है

रात आधी से जयादा ही गयी होगी ''वसीम''
“वसीम”
आओ घर लौट लें, नावकत* हुआ जाता है

*नावकत – देर

वसीम बरेलवी

मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले



मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले..
उसे समझने का कोई तो सिलसिला निकले..

किताब-ए-माज़ी* के पन्ने उलट के देख ज़रा..
न जाने कौन-सा पन्ना मुड़ा हुआ निकले..

जो देखने में बहुत ही क़रीब लगता है..
उसी के बारे में सोचो तो फ़ासला निकले..


* किताब-ए-माज़ी : अतीत की पुस्तक

वसीम बरेलवी

कुछ इस तरह वह मेरी जिंदगी में आया था

कुछ इस तरह वह मेरी जिंदगी में आया था
कि मेरा होते हुए भी, बस एक साया था

हवा में उडने की धुन ने यह दिन दिखाया था
उडान मेरी थी, लेकिन सफर पराया था

यह कौन राह दिखाकर चला गया मुझको
मैं जिंदगी में भला किस के काम आया था

मैं अपने वायदे पे कायम न रह सका वरना
वह थोडी दूर ही जाकर तो लौट आया था

न अब वह घर है , न उस के लोग याद ''वसीम''
वसीम
वसीम
न जाने उसने कहाँ से मुझे चुराया था

वसीम बरेलवी
वसीम बरेलवी
वसीम बरेलवी

मैं आसमां पे बहुत देर रह नहीं सकता


मेरी आँख को यह सब कौन बताने देगा
खवाब जिसके हैं वहीं नींद न आने देगा
उसने यूँ बाँध लिया खुद को नये रिशतों में
जैसे मुझ पर कोई इलज़ाम न आने देगा
सब अंधेरे से कोई वादा किये बैठ हैं
कौन ऐसे में मुझे शमा जलाने देगा
भीगती झील, कमल, बाग महक, सन्नाटा,
यह मेरा गाँव, मुझे शहर न जाने देगा
वह भी आँखों में कई खवाब लिये बैठा है
यह तसव्वुर* ही कभी नींद न आने देगा
कल की बातें न करो, मुझ से कोई अहद न लो
वक़्त बदलेगा तो कुछ याद न आने देगा
अब तो हालात से समझौता ही कर लीजे “वसीम”
कौन माज़ी* की तरफ लौट के जाने देगा
- See more at: http://www.ajabgjab.com/2014/02/waseem-barelvi-meri-aankh-ko-ye-sab.html#sthash.96xKT1Uv.dpuf
मैं आसमां पे बहुत देर रह नहीं सकता..
मगर यह बात ज़मीं से तो कह नहीं सकता..

किसी के चेहरे को कब तक निगाह में रखूं..
सफ़र में एक ही मंज़र तो रह नहीं सकता..

यह आज़माने की फुर्सत तुझे कभी मिल जाये..
मैं आंखों -आंखों में क्या बात कह नहीं सकता..

सहारा लेना ही पड़ता है मुझको दरिया का..
मैं एक कतरा हूँ तनहा तो बह नहीं सकता..

लगा के देख ले ,जो भी हिसाब आता हो..
मुझे घटा के वह गिनती में रह नहीं सकता..

यह चन्द लम्हों की बेइख्तियारियां* हैं ‘वसीम’
“वसीम”
गुनाह से रिश्ता बहुत देर रह नहीं सकता..


*बेइखितयारियां – काबू न होना

वसीम बरेलवी

मेरी आँख को यह सब कौन बताने देगा


मेरी आँख को यह सब कौन बताने देगा
खवाब जिसके हैं वहीं नींद न आने देगा

उसने यूँ बाँध लिया खुद को नये रिशतों में
जैसे मुझ पर कोई इलज़ाम न आने देगा

सब अंधेरे से कोई वादा किये बैठ हैं
कौन ऐसे में मुझे शमा जलाने देगा

भीगती झील, कमल, बाग महक, सन्नाटा,
यह मेरा गाँव, मुझे शहर न जाने देगा

वह भी आँखों में कई खवाब लिये बैठा है
यह तसव्वुर* ही कभी नींद न आने देगा

कल की बातें न करो, मुझ से कोई अहद न लो
वक़्त बदलेगा तो कुछ याद न आने देगा

अब तो हालात से समझौता ही कर लीजे “KG”
कौन माज़ी* की तरफ लौट के जाने देगा

* तसव्वुर – कलपना
* माज़ी – अतीत


वसीम बरेलवी

सबने मिलाया हाथ यहाँ तीरगी के साथ



सबने मिलाया हाथ यहाँ तीरगी* के साथ
कितना बड़ा मज़ाक हुआ रोशनी के साथ

शर्तें लगाईं जाती नहीं दोस्ती के साथ
कीजिये मुझे कुबूल मेरी हर कमी के साथ

तेरा ख़याल, तेरी तलब, तेरी आरज़ू
गुजरी है सारी उम्र किसी रोशनी के साथ

किस काम की रही ये दिखावे की ज़िन्दगी
वादे किए किसी से गुज़ारी किसी के साथ .

दुनीयाँ को बेवफाई का इलज़ाम कौन दे ?
अपनी ही निभ सकी न बहुत दिन किसी के साथ

*तीरगी = अँधेरा ( Darkness)

वसीम बरेलवी



वो लफ़्ज़ हूँ जो कभी दास्ताँ नहीं होता


लहू न हो तो क़लम तरजुमाँ नहीं होता
हमारे दौर में आँसू ज़ुबाँ नहीं होता

जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटायेगा
किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता

ये किस मक़ाम पे लाई है मेरी तनहाई
के मुझ से आज कोई बदगुमाँ नहीं होता

मैं उस को भूल गया हूँ ये कौन मानेगा
किसी चराग़ के बस में धुआँ नहीं होता

‘वसीम’ सदियों की आँखों से देखिये मुझ को
वो लफ़्ज़ हूँ जो कभी दास्ताँ नहीं होता

वसीम बरेलवी



मिली हवाओं में उड़ने की वो सज़ा यारो

मिली हवाओं में उड़ने की वो सज़ा यारो
के मैं ज़मीन के रिश्तों से कट गया यारो

वो बेख़याल मुसाफ़िर, मैं रास्ता यारो
कहाँ था बस में मेरे, उस को रोकना यारो

मेरे क़लम पे ज़माने की गर्द ऐसी थी
के अपने बारे में कुछ भी न लिख सका यारो

तमाम शहर ही जिस की तलाश में गुम था
मैं उस के घर का पता किस से पूछता यारो

वसीम बरेलवी

इक तेरे कहने से क्या मैं बेवफ़ा हो जाऊँगा ?

अपने हर इक लफ़्ज़ का ख़ुद आईना हो जाऊँगा
उसको छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा

तुम गिराने में लगे थे, तुम ने सोचा भी नहीं
मैं गिरा तो मसअला बनकर खड़ा हो जाऊँगा

मुझ को चलने दो, अकेला है अभी मेरा सफ़र
रास्ता रोका गया तो क़ाफ़िला हो जाऊँगा

सारी दुनिया की नज़र में है, मेरी अह्द—ए—वफ़ा
इक तेरे कहने से क्या मैं बेवफ़ा हो जाऊँगा?

वसीम बरेलवी

कही सुनी पे बहुत एतबार करने लगे


कही-सुनी पे बहुत एतबार करने लगे
मेरे ही लोग मुझे संगसार करने लगे

पुराने लोगों के दिल भी हैं ख़ुशबुओं की तरह
ज़रा किसी से मिले, एतबार करने लगे

नए ज़माने से आँखें नहीं मिला पाये
तो लोग गुज़रे ज़माने से प्यार करने लगे

कोई इशारा, दिलासा न कोई वादा मगर
जब आई शाम तेरा इंतज़ार करने लगे

हमारी सादामिजाज़ी की दाद दे कि तुझे
बगैर परखे तेरा एतबार करने लगे

वसीम बरेलवी
 वसीम बरेलवी
वसीम बरेलवी
वसीम बरेलवी

वसीम बरेलवी
वसीम बरेलवी
वसीम बरेलवी
वसीम बरेलवी
वसीम बरेलवी
वसीम बरेलवी
वसीम बरेलवी

क्या दुःख है, समंदर को बता भी नहीं सकता


क्या दुःख है, समंदर को बता भी नहीं सकता
आँसू की तरह आँख तक आ भी नहीं सकता

तू छोड़ रहा है, तो ख़ता इसमें तेरी क्या
हर शख्स मेरा साथ, निभा भी नहीं सकता

प्यासे रहे जाते हैं जमाने के सवालात
किसके लिए जिन्दा हूँ, बता भी नहीं सकता

घर ढूंढ रहे हैं मेरा , रातों के पुजारी
मैं हूँ कि चरागों को बुझा भी नहीं सकता

वैसे तो एक आँसू ही बहा के मुझे ले जाए
ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता

वसीम बरेलवी

उम्र भर किस-किस के हिस्से का सफ़र मैंने किया


क्या बताऊं कैसे ख़ुद को दर-ब-दर मैंने किया
उम्र भर किस-किस के हिस्से का सफ़र मैंने किया

तू तो नफ़रत भी न कर पाएगा इतनी शिद्दत के साथ
जिस बला का प्यार तुझसे बे-ख़बर मैंने किया

कैसे बच्चों को बताऊं रास्तों के पेचो-ख़म*
ज़िन्दगी भर तो किताबों का सफ़र मैंने किया

शोहरतों की नज़्र* कर दी शेर की मासूमियत
इस दिये की रोशनी को दर-ब-दर मैंने किया

चंद जज़्बातों से रिश्तों के बचाने को ‘KG‘
कैसा-कैसा जब्र* अपने आप पर मैंने किया


*पेचो-ख़म: घुमाव- फिराव,
*नज़्र: भेंट, उपहार,
*जब्र: ज़ोर-ज़बर्दस्ती

वसीम बरेलवी

परों की अब के नहीं हौसलों की बारी है



उड़ान वालो उड़ानों पे वक़्त भारी है
परों की अब के नहीं हौसलों की बारी है

मैं क़तरा हो के तूफानों से जंग लड़ता हूँ
मुझे बचाना समंदर की ज़िम्मेदारी है

कोई बताये ये उसके ग़ुरूर-ए-बेजा को
वो जंग हमने लड़ी ही नहीं जो हारी है

दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत
ये एक चराग़ कई आँधियों पे भारी है

वसीम बरेलवी

खुल के मिलने का सलीक़ा आपको आता नहीं


खुल के मिलने का सलीक़ा आपको आता नहीं
और मेरे पास कोई चोर दरवाज़ा नहीं

वो समझता था, उसे पाकर ही मैं रह जाऊंगा
उसको मेरी प्यास की शिद्दत का अन्दाज़ा नहीं

जा, दिखा दुनिया को, मुझको क्या दिखाता है ग़रूर
तू समन्दर है, तो हो, मैं तो मगर प्यासा नहीं

कोई भी दस्तक करे, आहट हो या आवाज़ दे
मेरे हाथों में मेरा घर तो है, दरवाज़ा नहीं

अपनों को अपना कहा, चाहे किसी दर्जे के हों
और अब ऐसा किया मैंने, तो शरमाया नहीं

उसकी महफ़िल में उन्हीं की रौशनी, जिनके चराग़
मैं भी कुछ होता, तो मेरा भी दिया होता नहीं

तुझसे क्या बिछड़ा, मेरी सारी हक़ीक़त खुल गयी
अब कोई मौसम मिले, तो मुझसे शरमाता नहीं

वसीम बरेलवी

वसीम बरेलवी


वसीम बरेलवी

कहाँ तक आँख रोएगी कहाँ तक किसका ग़म होगा


कहाँ तक आँख रोएगी कहाँ तक किसका ग़म होगा
मेरे जैसा यहाँ कोई न कोई रोज़ कम होगा

तुझे पाने की कोशिश में कुछ इतना रो चुका हूँ मैं
कि तू मिल भी अगर जाये तो अब मिलने का ग़म होगा

समन्दर की ग़लतफ़हमी से कोई पूछ तो लेता
ज़मीं का हौसला क्या ऐसे तूफ़ानों से कम होगा

मोहब्बत नापने का कोई पैमाना नहीं होता
कहीं तू बढ़ भी सकता है, कहीं तू मुझ से कम होगा


वसीम बरेलवी

हुस्न बाज़ार हुआ क्या कि हुनर ख़त्म हुआ


हुस्न बाज़ार हुआ क्या कि हुनर ख़त्म हुआ
आया पलको पे तो आँसू का सफ़र ख़त्म हुआ

उम्र भर तुझसे बिछड़ने की कसक ही न गयी
कौन कहता है की मुहब्बत का असर ख़त्म हुआ

नयी कालोनी में बच्चों की ज़िदे ले तो गईं
बाप दादा का बनाया हुआ घर ख़त्म हुआ

जा, हमेशा को मुझे छोड़ के जाने वाले
तुझ से हर लम्हा बिछड़ने का तो डर ख़त्म हुआ\

वसीम बरेलवी

रात के टुकड़ों पे पलना छोड़ दे


रात के टुकड़ों पे पलना छोड़ दे
शमा से कहना के जलना छोड़ दे

मुश्किलें तो हर सफ़र का हुस्न हैं
कैसे कोई राह चलना छोड़ दे

तुझसे उम्मीदे- वफ़ा बेकार है
कैसे इक मौसम बदलना छोड़ दे

मैं तो ये हिम्मत दिखा पाया नहीं
तू ही मेरे साथ चलना छोड़ दे

कुछ तो कर आदाबे-महफ़िल का लिहाज़
यार ! ये पहलू बदलना छोड़ दे

वसीम बरेलवी

आते-आते मेरा नाम सा रह गया


आते-आते मेरा नाम सा रह गया
उस के होंठों पे कुछ काँपता रह गया

वो मेरे सामने ही गया और मैं
रास्ते की तरह देखता रह गया

झूठ वाले कहीं से कहीं बढ़ गये
और मैं था कि सच बोलता रह गया

आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे
ये दिया कैसे जलता रह गया

वसीम बरेलवी

अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे


अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे
तेरी मर्जी के मुताबिक नज़र आयें कैसे

घर सजाने का तसव्वुर तो बहुत बाद का है
पहले ये तय हो की इस घर को बचाएं कैसे

क़हक़हा आँख का बर्ताव बदल देता है
हंसने वाले तुझे आंसू नज़र आयें कैसे

कोई अपनी ही नज़र से तो हमें देखेगा
एक कतरे को समंदर नज़र आयें कैसे

वसीम बरेलवी

मैं इस उम्मीद में डूबा कि तू बचा लेगा



मैं इस उम्मीद में डूबा कि तू बचा लेगा

अब इसके बाद मेरा इम्तिहान क्या लेगा


ये एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा

ढलेगा दिन तो हर एक अपना रास्ता लेगा


मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा

कोई चराग़ नहीं हूँ जो फिर जला लेगा


कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए

जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा


मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे

सुनेगा तो लकीरें हाथ की अपनी जला लेगा



हज़ार तोड़ के आ जाऊं उस से रिश्ता ''वसीम''
“वसीम”
“वसीम”

मैं जानता हूँ वह जब चाहेगा बुला लेगा


वसीम बरेलवी

उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है



उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है
जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है

नई उम्रों की ख़ुदमुख़्तारियों को कौन समझाये
कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है

थके हारे परिन्दे जब बसेरे के लिये लौटे
सलीक़ामन्द शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है

बहुत बेबाक आँखों में त’अल्लुक़ टिक नहीं पाता
मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है

सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का
जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है

मेरे होंठों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो
कि इस के बाद भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है

वसीम बरेलवी

कौन सी बात कहाँ कैसे कही जाती है


कौन सी बात कहाँ कैसे कही जाती है
ये सलीका हो तो हर बात सुनी जाती है

एक बिगड़ी हुई औलाद भला क्या जाने
कैसे माँ बाप के होंठों से हंसी जाती है

कतरा अब एह्तिजाज़ करे भी तो क्या मिले
दरिया जो लग रहे थे समंदर से जा मिले

हर शख्स दौड़ता है यहाँ भीड़ की तरफ
फिर ये भी चाहता है उसे रास्ता मिले

इस दौर-ए-मुन्साफी में जरुरी नहीं ''वसीम''
जिस शख्स की खता हो उसी को सजा मिले

वसीम बरेलवी

बुरे ज़माने कभी पूछ कर नहीं आते


तुम्हारी राह में मिटटी के घर नहीं आते
इसीलिए तुम्हे हम नज़र नहीं आते

मोहब्बतो के दिनों की यही खराबी है
ये रूठ जाएँ तो लौट कर नहीं आते

जिन्हें सलीका है तहजीब-ए-गम समझाने का
उन्ही के रोने में आंसू नज़र नहीं आते

खुशी की आँख में आंसू की भी जगह रखना ''वसीम''
बुरे ज़माने कभी पूछ कर नहीं आते

वसीम बरेलवी

ज़हन में पानी के बादल अगर आये होते


ज़हन में पानी के बादल अगर आये होते
मैंने मिटटी के घरोंदे ना बनाये होते

धूप के एक ही मौसम ने जिन्हें तोड़ दिया
इतने नाज़ुक भी ये रिश्ते न बनाये होते

डूबते शहर मैं मिटटी का मकान गिरता ही
तुम ये सब सोच के मेरी तरफ आये होते

धूप के शहर में इक उम्र ना जलना पड़ता
हम भी ए काश किसी पेड के साये होते

फल पडोसी के दरख्तों पे ना पकते तो ''वसीम''
मेरे आँगन में ये पत्थर भी ना आये होते
वसीम बरेलवी

बुझ गया दिल हयात बाक़ी है


बुझ गया दिल हयात* बाक़ी है
छुप गया चाँद रात बाक़ी है

हाले-दिल उन से कह चुके सौ बार
अब भी कहने की बात बाक़ी है

रात बाक़ी थी जब वो बिछड़े थे
कट गई उम्र रात बाक़ी है

इश्क़ में हम निभा चुके सबसे ‘खुमार’
बस एक ज़ालिम हयात बाक़ी है

* हयात – जिंदगी, जीवन
 
खुमार बाराबंकवी

Wednesday 17 February 2016

आदमी आदमी को क्या देगा



आदमी आदमी को क्या देगा
जो भी देगा वही ख़ुदा देगा

मेरा क़ातिल ही मेरा मुंसिब है
क्या मेरे हक़ में फ़ैसला देगा

ज़िन्दगी को क़रीब से देखो
इसका चेहरा तुम्हें रुला देगा

हमसे पूछो दोस्ती का सिला
दुश्मनों का भी दिल हिला देगा

इश्क़ का ज़हर पी लिया “फ़ाक़िर”
अब मसीहा भी क्या दवा देगा

सुदर्शन फ़ाक़िर
 सुदर्शन फ़ाक़िर
सुदर्शन फ़ाक़िर
सुदर्शन फ़ाक़िर

सुदर्शन फ़ाक़िर

आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंज़र क्यूँ है


आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंज़र क्यूँ है
ज़ख़्म हर सर पे हर इक हाथ में पत्थर क्यूँ है

जब हक़ीक़त है के हर ज़र्रे में तू रहता है
फिर ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मंदिर क्यूँ है

अपना अंजाम तो मालूम है सब को फिर भी
अपनी नज़रों में हर इन्सान सिकंदर क्यूँ है

ज़िन्दगी जीने के क़ाबिल ही नहीं अब “फ़ाक़िर”
वर्ना हर आँख में अश्कों का समंदर क्यूँ है

सुदर्शन फ़ाक़िर

जब भी तन्हाई से घबराके सिमट जाते हैं


जब भी तन्हाई से घबराके सिमट जाते हैं
हम तेरी याद के दामन से लिपट जाते हैं

उनपे तूफान को भी अफ़सोस हुआ करता है
वो सफीने* जो किनारों पे उलट जाते हैं

हम तो आए थे राहे साख में फूलों की तरह
तुम अगर हार समझते हो तो हट जाते हैं

* सफीने – नाव

सुदर्शन फ़ाक़िर

ज़िंदगी तुझको जिया है कोई अफसोस नहीं


ज़िंदगी तुझको जिया है कोई अफसोस नहीं
ज़हर खुद मैने पिया है कोई अफसोस नहीं

मैने मुजरिम को भी मुजरिम ना कहा दुनिया में
बस यही ज़ुर्म किया है कोई अफसोस नहीं

मेरी किस्मत में जो लिखे थे उन्ही काँटों से
दिल के ज़ख़्मों को सीया है कोई अफसोस नहीं

अब गिरे संग के शीशों की हूँ बारिश ‘फ़ाक़िर’
अब कफ़न ओढ लिया है कोई अफसोस नहीं

सुदर्शन फ़ाक़िर

पत्थर के ख़ुदा, पत्थर के सनम


पत्थर के ख़ुदा, पत्थर के सनम
पत्थर के ही इन्सा पाए हैं

तुम शहर-ए-मोहब्बत कहते हो
हम जान बचा-कर आए हैं

बुत-खाना समझते हो जिसको
पूछो ना वहाँ क्या हालत है

हम लोग वहीं से लौटे हैं
बस शुक्र करो लौट आए हैं

हम सोच रहें हैं मुद्दत से
अब उम्र गुज़ारें भी तो कहाँ

सेहरा में खुशी के फूल नहीं
शहरों में गमों के साए हैं

होठों पे तबस्सुम हलक़ा सा
आँखों में नमी सी अए फाकिर

हम अहले-ए-मोहब्बत पर अक्सर
ऐसे भी ज़माने आए हैं




सुदर्शन फ़ाक़िर

अगर हम कहें और वो मुस्कुरा दें


अगर हम कहें और वो मुस्कुरा दें
हम उनके लिए ज़िन्दगानी लूटा दें

हर इक मोड़ पर हम गमों को सज़ा दें
चलो ज़िंदगी को मोहब्बत बना दें

अघर खुद को भूले तो कुछ भी ना भूले
के चाहत में उनकी खुदा को भुला दें

कभी गम की आँधी जिन्हें छू ना पाए
वफ़ा के हम वो नशे-मन बना दें

क़यामत के दीवाने कहते हैं हमसे
चलो उनके चेह्ऱे से परदा हट दें

सज़ा दे सिला दे, बना दे मिटा दे
मगर वो कोई फ़ैसला तो सुना दें

सुदर्शन फ़ाक़िर

अकेले हैं वो और झुंझला रहे हैं



अकेले हैं वो और झुंझला रहे हैं
मेरी याद से जंग फ़रमा रहे हैं

इलाही मेरे दोस्त हों ख़ैरियत से
ये क्यूँ घर में पत्थर नहीं आ रहे हैं

बहुत ख़ुश हैं गुस्ताख़ियों पर हमारी
बज़ाहिर जो बरहम नज़र आ रहे हैं

ये कैसी हवा-ए-तरक्की चली है
दीये तो दीये दिल बुझे जा रहे हैं

बहिश्ते-तसव्वुर के जलवे हैं मैं हूँ
जुदाई सलामत मज़े आ रहे हैं

बहारों में भी मय से परहेज़ तौबा
‘खुमार’ आप काफ़िर हुए जा रहे हैं

खुमार बाराबंकवी

मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया


मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया
तुम क्यों उदास हो गए क्या याद आ गया

कहने को ज़िन्दगी थी बहुत मुख़्तसर* मगर
कुछ यूँ बसर हुई कि ख़ुदा याद आ गया

वाइज़ सलाम ले के चला मैकदे को मैं
फिरदौस-ए-गुमशुदा का पता याद आ गया

बरसे बगैर ही जो घटा घिर के खुल गई
एक बेवफ़ा का अहद-ए-वफ़ा याद आ गया

मांगेंगे अब दुआ के उसे भूल जाएँ हम
लेकिन जो वो बवक़्त-ऐ-दुआ याद आ गया

हैरत है तुम को देख के मस्जिद में ऐ ‘खुमार’
क्या बात हो गई जो ख़ुदा याद आ गया

* मुख़्तसर – संक्षिप्त, छोटी

खुमार बाराबंकवी

Monday 15 February 2016

Why Do We Need Motivation ??


Human behavior is always a surprise.

We know that we must have to achieve Success in life and we tend to not take action. We have many reasons for not achieving what we want. Many times though we know that logically we are right we tend to move away from it, the reason being Emotions. Emotions is what drives us everyday, every moment. Imagine that you are on your bed and your mind knows that it is good to do exercise, you talk to yourself, "Do you want to do it today? Or shall I start tomorrow?" and you know this emotion that creeps in decides your fate. This small difference could create a huge impact in the quality of your Life.

Firstly for success you need to set your GOALS. If you do not set your Goals, it is very difficult to achieve your outcomes. And you may have defined your goals, worked out a strategy too, but if you do not have MOTIVATION?? You will not even take the first step. Its like owning the worlds best car with all the parts working perfectly, the car has the capabilities to go fast with the greatest fuel efficiency. But if there I no driver and or if the driver does not ignite the car and start it, the car does not even move. Motivation is like that spark for the engine. This is what makes the human engine move. You may have the best talents or acquired the best skills but it you do not have motivation you will not reach far. Motivation is the driver which drives you to do what you are doing.

"How soon ‘not now' becomes ‘never'" - Martin Luther King

Motivation is the desire to achieve a Goal. Motivation with enthusiasm and energy really move us forward in life. Motivation comes to you in two ways

Motivation from the External Factors:

When you see something happening you are motivated and you move by it. You succeed in some act of yours and as you see these results you are excited and more motivated to achieve. Yes this must happen always for you, however when you are wanting to achieve big, there is a possibility that you might fail and that's when you want the highest level of motivation so as to come over the failure and achieve more in life. Though this works you can't really enjoy this every time and you can't depend on this for motivation.

Motivation from Inside:

his is the most powerful form of motivation. At any moment we have all needed resources and we need to tap in the right kind of resources. What creates the Motivation is the Passion or the Interest. The moment you Live with Passion you don't need anything else you drive you. You are just driven hard to achieve the best in life. Motivation is basically because of certain internal pictures that we run in our mind. Right now if I ask you to close you eyes and recall a time when you felt motivation and feel the same way as you did during that time and intensify the feeling, I am quite sure that you too would have felt the motivation inside you. As I said it is about giving your 100% in these exercises. When you set your Goals they must automatically motivate you. It must give a sense of Drive so that you could go about achieving more in life.

As I said before Motivation acts exactly like the fuel to a car. If the fuel reduces you must be cautious and still ensure that the efficiency of the car if maintained. Else the car might just get damaged and totally halt. Or even if the fuel is totally dry, the car comes to a halt. Either ways it is not good. Same way if you do not stay motivated, you will not be able to sustain the power to continue what you are doing. Say if you set a target for yourself to reduce you weight by 20 Pounds in 1 year then you must just loose your focus and may only target this much later. It does not motivate you to achieve. However if you wish to reduce 2 pounds in 3 weeks it gets you motivated. It is still the same for the simple reason that you not have got into smaller chunks. Small size tasks are easy to achieve and gives you more drive to achieve them. And often Success in one field provides Motivation to Succeed in another endeavor.

How to stay motivated?

Visualization: This is a very powerful and easy way to keep yourself motivation. Many coaches across the globe use this visualization technique to keep the players motivated all the time. All you need to do it just see yourself achieving the Goals that you have set and that will definitely keep you motivated. Make a picture of you achieving the goals the kind of benefits that you reap out of this. This will really drive you to achieve more and will never make you procrastinate.
Associate Pain not Achieving goals: Apart from giving pleasure to you achieving Goals, associate some pain and see what does not happen when you do not achieve your goals. It could make you feel so embarrassed and make you feel lousy and guilty. This too will drive you to achieve your Goals always.

A boy who was failing in studies, not doing so well suddenly started getting very high grades in school and also started showing lot of interest in studying. The reason was found that the boys father suddenly passed away. And he was the bread winner for the family. His fathers death acted a powerful motivator for that boy. However it is not a must that painful events must happen in our lives but before it happens if we take control of ourselves then we become better.

Any person is successful only because they take ACTION. And Action is possible only when you stay motivated. Only when you have the right amount to motivation do you really achieve in life. This is the long lasting success of any person who have achieved more. So always started motivated and achieve the best in life my dear Friends.

God Bless !!

Friday 12 February 2016

कुछ अनकही नज़्में


1.

लौट आओ कि मेरी साँसे अब तिनका तिनका बिखरती हैं..
कहीं मेरी जान ना ले ले ये पहली शाम दिसंबर की..

2.

मुझे मालूम है मैं उस के बिना ज़ी नहीं सकता...
उस का भी यही हाल है मगर किसी और के लिए...

3.

वो याद आया कुछ यूँ, कि लौट आए सब सिलसिले....
ठन्डी हवा, पीले पत्ते और नवम्बर के ये दिन..

4.

हिचकियों पर हिचकियाँ मैं रातभर भरता रहा,
वो सो रहा था तो फिर मुझे कौन याद करता रहा.. ?

5.

बचपन की नींद अब बहुत याद आती है..
सिर्फ़ मुहब्बत पर ये इलजाम ठीक नहीं..

6.

जाते वक़्त उसने बड़े गुरुर से कहा था ,"तुम जैसे हज़ार मिलेंगे !
मैंने मुस्कराकर कहा, मुझ जैसे की ही तलाश क्यों ?

7.

वो शख्स...शायद...मुझी को सोच रहा होगा...
आंखों में ये गुलाब...वरना कहां से आए...

8.

हलकी हलकी सी सर्द हवा
ज़रा ज़रा सा दर्द ए दिल
अंदाज अच्छा है ए नवम्बर तेरे आने का

9.

लाजवाब कर देतें हैं...तेरे खयाल...दिल को...
मोहोब्बत...तुझसे अच्छा...तेरा तसव्वुर हैं...

10.

ये किसका खयाल...कौनसी खुशबु...सता रहीं हैं दिल को...
ये जो करार दिल में हैं...कहीं...ये मोहोब्बत तो नहीं..

11.

कोशिश ज़रा सी करता तो मिल ही जाता मैं .... 
उसने मगर अपनी आँखों में ..... ढूँढा नहीं मुझे

12.

पूछा था हाल उन्हॊने बड़ी मुद्दतों के बाद...
कुछ गिर गया है आँख में...कह कर हम रो पड़े...

13.

मेरे सीने से लिपटे होते हैं आज भी एहसास तेरे,
जैसे लिखावट कोई लिपटी हो किताबी पन्नो से ।।

14.

गर मिल जाती दो दिन कि बादशाहत हमें,
तो मेरे शहर में तेरी तश्वीर का सिक्का चलता..!

15.

तेरे एक इशारे पे, हम इल्जाम अपने नाम ले लेते
बेवजह, झूठे इल्जाम लगाने की जरुरत क्या थी ?

16.

होश मुझे भी आ ही जायेगा मगर..
पहले ! दिल तेरी याद से रिहा तो हो..

17.

जो तुम बोलो बिखर जाऐंगे, जो तुम चाहो संवर जाऐंगे,
मगर ये टूटना-जुड़ना हमें तकलीफ बहुत देता है..

18.

जो पूरा न हो सका.. वो किस्सा हूँ मै...
छूटा हुआ ही सही.. तेरा हिस्सा हूँ मै..!!

19.

उसकी आँखों में नज़र आता है सारा जहां मुझ को..
अफ़सोस कि उन आँखों में कभी खुद को नहीं देखा..

20.

हम से बेवफाई की इन्तहां क्या पूछते हो दोस्तों.......
वो हम से प्यार सीखती रही किसी और के लिए ....!!

21.

अब उसे न सोचू तो जिस्म टूटने सा लगता है........
एक वक़्त गुजरा है उसके नाम का नशा करते~करते......!

22.

कभी यूँ भी आ मेरी आँख में के मेरी नज़र को ख़बर न हो..
मुझे एक रात नवाज़ दे मगर उसके बाद सहर न हो...

23.

चल रहे है जमाने में रिश्वतो के सिलसिले..
तुम भी कुछ ले दे कर, मुझसे मोहब्बत कर लो..

24.

आँख उठाकर भी न देखूँ, जिससे मेरा दिल न मिले,
जबरन सबसे हाथ मिलाना, मेरे बस की बात नहीं..

25.

प्यार ने क्या-क्या गज़ब कर दिया, किसी का नाम कविता किसी को ग़ज़ल कर दिया,
जो एक फूल का वज़न भी उठा न सकी,उस मुमताज के सीने पर ताजमहल रख दिया..

26.

घर उसने क्या बनाया मस्जिद के सामने..
चाहत ने उसकी हमें नमाजी बना दिया..

27.

समझौतों की भीड़-भाड़ में सबसे रिश्ता टूट गया,
इतने घुटने टेके हमने आख़िर घुटना टूट गया,
ये मंज़र भी देखे हमने इस दुनिया के मेले में,
टूटा-फूटा नाच रहा है, अच्छा ख़ासा टूट गया....

28.

चाँद का क्या कसूर अगर रात बेवफा निकली,
कुछ पल ठहरी और फिर चल निकली,
उन से क्या कहे वो तो सच्चे थे,
शायद हमारी तकदीर ही हमसे खफा निकली.

29.

ये कह कह के हम दिल को समझा रहे है..
वो अब चल चुके,वो अब आ रहे है..

30.

फूँक डालूँगा किसी रोज ये दिल की दुनिया..
ये तेरा खत तो नहीं है कि जला भी न सकूँ..

31.

बड़ी अजीब चीज है ये मौत भी,
कभी कभी उस जगह भी मिल जाती है....
जहाँ लोग जिंदगी की दुआ मांगने जाया करते है...

32.

हर इक हसरत हंस कर उनकी पूरी की हमने,
हमारी एक तमन्ना उनके दिल को भारी कर गयी..

33.

यूँ तो काफी मिर्च-मसाले हैं इस जिंदगी में....
तुम्हारे बिना जायका फिर भी फीका ही लगता है....

34.

चूम कर कफ़न में लपेटे मेरे चेहरे को,
उसने तड़प के कहा...
'नए कपड़े क्या पहन लिए, हमें देखते भी नहीं' !!

35.

ना ख़ुशी की तालाश है ना गमे निजात की आरज़ू ,
मैं खुद से नाराज़ हूँ तेरी बेरुखी के बाद..

36.

आज़ उदासी ने भी हाथ जोड़ कर कहा मुझसे,
वास्ता तुझे तेरे प्यार का मेरा आशियां छोड़ दे..

37.

मुमकिन हुआ तो मै तुम्हे माफ़ करूँगा..
फिलहाल तेरे आंसुओ का मुन्तजिर हूँ मैं..

38.

किसी के आने या जाने से जिँदगी नही रुकती..
बस जीने का अँदाज बदल जाता है..

39.

आज इस कदर याद आ रहे हो..
जिस कदर तुमने भुला रखा है..

40.

उस शख़्स को बिछड़ने का सलीका भी नहीं..
जाते हुए खुद को मेरे पास छोड़ गया..

41.

तुम्हें ये कौन समझाये तुम्हें ये कौन बतलाये..
बहोत खामोश रहने से ताल्लुक टूट जाते हैं..

42.

ख़्वाब जितने भी थे जल गए सारे..
अब इन आँखों में नमी के सिवा कुछ भी नही..

43.

तुम हमें मिल जाओ ये मुमकिन नहीं...
हम तुम्हे छोड़ दें ये हमें मंजूर नहीं ..

44.

सिर्फ चेहरे की उदासी से भर आये आंसू..
दिल का आलम तो अभी आपने देखा ही कहा है !!!!

45.

तेरी मुहब्बत भी उस खुदा के करम की तरह है,
जो जरूरतमंद है, बस उसी को ना मिली...

46.

वो एक पल जिसे तुम सपना कहते हो,
तुम्हे पाकर मुझे जिंदगी सा लगता है..

47.

बहुत याद करता है वो मुझे..
दिल से ये वहम जाता क्यों नहीं...

48.

अजब ज़ुल्म करती हैं तेरी यादें मुझ पर ..
सो जाऊँ तो जगा देती हैं जग जाऊँ तो रुला देती हैं..

49.

बताओ ना कैसे भुलाऊँ तुम्हें..
तुम तो वाक़िफ़ हो इस हुनर से..

50.

शुक्रिया उनका कि हमें जीना सिखा दिया..
होते थे जिन आँखों में समंदर उनको ही सुखा दिया..

51.

ताज महल को बनाना तो हमें भी आ गया है अब ..
कोई एक मुठ्ठी वफ़ा अगर ला दे ,तो हम काम शुरू करें..

52.

मैं क्यों करूं मुहब्बत किसी से, मैं तो गरीब हूँ,
लोग बिकते हैं और खरीदना मेरे बस में नहीं...

53.

रिस्ते बन जाते है अनजाने मेँ...
पर तकलीफ होती है निभाने मेँ ..,
रूठनेँ बाले तो पल मेँ रूठ जाते है ..
और उमर गुजर जाती है उन्हेँ मनानेँ मेँ..

54.

ये मुहब्बत भी है क्या रोग फ़राज़,
जिसे भूले वो सदा याद आया...

55.

सफर मोहब्बत का दुश्वार कितना है..
मगर देखना है कोई वफादार कितना है..
यही सोच कर कभी उसे नहीं माँगा हमने...
उसे आजमाना है की वो मेरा तलबगार कितना है...

56.

साँसों का टूट जाना तो बहुत छोटी सी बात है दोस्तों..
जब अपने याद करना छोड़ दें मौत तो उसे कहते हैं..

57.

दीप ऐसे बुझे फिर जले ही नहीं ..
ज़ख्म इतने मिले फिर सिले ही नहीं..
व्यर्थ किस्मत पे रोने से क्या फायदा...
सोच लेना की हम तुम मिले ही नहीं ...

58.

लौट के आ गये शाम के परिंदे भी ..
मेरा वो " सुबह का भूला " अब तक नहीं लौटा..

59.

नजाकत से मेरी आँखों में वो उसका देखना तौबा..
इलाही हम उन्हें देखें या उनका देखना देखें..

60.

तू मेरे राम में खुदा का तसव्वुर कर ले....
तेरे खुदा में अपना राम देखता हूँ मैं....

61.

चैन मिलता था जिसे आके पनाहों में मेरी,
आज देता है वही अश्क निगाहों में मेरी....

62.
गुज़र गया वो वक़्त जब तेरी हसरत थी मुझको..
अब तू खुदा भी बन जाए तो भी तेरा सजदा ना करूँ..

63.

किसी की यादों ने पागल बना रखा है..
कहीं मर ना जाऊं कफ़न सिला रखा है..
जलने से पहले दिल निकाल लेना..
कहीं वो ना जल जाए जो दिल में छुपा रखा है...

64.

मेरे ज़ज्बात की कदर ही कहाँ..
सिर्फ इलज़ाम लगाना ही उनकी फितरत है..

65.

हो सकती है मोहब्बत ज़िंदग़ी मे दोबारा भी..
बस हौसला हो एक दफ़ा फिर बर्बाद होने का..

66.

कोशिशें जब भी करता हूँ "उनको" भुलाने के लिए..
" वो" ख्वाबों में चले आते हैं, मुझको सताने के लिए..

67.

क्या मिला हमें सदियों कि मोहब्बत से..
एक शायरी का हुनर और दुसरा जागने कि सज़ा..

68.

महबूब का घर हो या फरिश्तों की ज़मी..
जो छोड़ दिया फिर उसे मुड़ कर नहीं देखा...

69.

ज़रा सा बात करने का तरीका सीख लो तुम भी..
इधर तुम बात करते हो उधर दिल टूट जाता है..

70.

उसका वादा भी बडा अजीब था जिंदगी भर साथ निभाने का..
मैंने भी ये नहीं पूछा कि मुहब्बत में साथ दोगे या यादों में..

71.

चलते थे इस जहाँ में कभी सीना तान के हम ..
ये कम्बख्त इश्क़ क्या हुआ घुटनो पे आ गए हम..

72.

वो कहते हैं अपने दिल के रास्ते पर चलो..
जब दिल ही टूटकर चौराहे पर बिखर जाए तो फिर किधर जाएं..

73.

फूल से आशि़की का हुनर सीख ले,
तितलियां ख़ुद रुकेंगी, सदाएं न दे..

74.

आशि़की बेदिली से मुश्किल है,
फिर मुहब्बत उसी से मुश्किल है..

75.

हमें कोई ग़म नहीं था, ग़म-ए-आशि़की से पहले,
न थी दुश्मनी किसी से, तेरी दोस्ती से पहले..

76.

आशि़की सब्रतलब और तमन्ना बेताब,
दिल का क्या रंग करूं, ख़ून-ए-जिगर होने तक..

77.

आग़ाज़-ए-आशि़की का मज़ा आप जानिए,
अंजाम -ए-आशि़की का मज़ा हम से पूछिए..

78.

अपने ख़ून-ए-वफ़ा से डरता हूं,
आशि़की बंदगी न हो जाए..

79.

सोचता हूँ उस की याद आखिर..
अब किसे रात भर जगाती होगी..

80.

बहूत नज़दीक आते जा रहे हो,
बिचरने  का इरादा कर लिया है क्या..

81.

आँगन में खिले गुलाब पर जा बैठी,
हल्की सी उड़ी थी उनके कदमों से जो धूल..
गोरी थी कि अपने बालों में सजाने के लिये,
चुपचाप से जाके तोड़ लाई वही फूल..

82.

बहुत देर तक खामोश रही तुम,
बहुत देर तक चुपचाप रहा मैं,

बहुत देर तक गूफ्तगू होती रही...

83.

हमने अब तक नहीं कहा उसको,
उसने अब तक नहीं कहा हमसे,

हम एक दूसरे से प्यार करते हैं...

84.

दिल गया तो कोई आँखे भी ले जाता,
फकत एक ही तस्वीर कहाँ तक देंखू..

85.

उसके सिवा किसी और को चाहना मेरे बस में नहीं, उसके सिवा किसी और को चाहना मेरे बस में नहीं, ये दिल उसका है, अपना होता तो बात और थी...

86.

ये भी एक तमाशा है इश्क ओ मोहब्बत में,
दिल किसी का होता है और बस किसी का चलता है..

87.

रूह तक नीलाम हो जाती है इश्क के बाज़ार में,
इतना आसान नहीं होता किसी को अपना बना लेना..

88.

मयखाने में बेपरवाह बैठे जरुर हैं,
पर कितना है पीना हम इतने होश में हैं..

89.

रात भर आसमां में हम चाँद ढूढते रहे,
चाँद था कि चुपके से मिरे आँगन में उतर आया..

90.

यह शहर जालिमो का है संभल कर चलना,
लोग सीने से लग कर दिल ही निकाल लेते हैं..

91.

ये भी एक तमाशा है इश्क ओ मोहब्बत में,
दिल किसी का होता है और बस किसी का चलता है..

92.

रूह तक नीलाम हो जाती है इश्क के बाज़ार में,
इतना आसान नहीं होता किसी को अपना बना लेना..

93.

मेरी इबाबतो को ऐसे कर कबूल ऐ खुदा,
के सजदे में ,मै झुकू तो हर रिश्तों कि जिन्दगी सवर जाये !

94.

जिंदगी के राज़ को रहने दो,
अगर है कोई ऐतराज़ तो रहने दो,
पर जब दिल करे हमें याद करने को,
तो उसे ये मत कहना के आज रहने दो..

95.

जिनके मिलते ही ज़िन्दगी में ख़ुशी मिल जाती है,
वो लोग जाने क्यों ज़िन्दगी में कम मिला करते हैं।

96.

मुझसा कोई जहाँ में नादान भी न हो ,
कर के जो इश्क कहता है नुकसान भी न हो ...!!

97.

जी जान कर भी वो जान ना पाए,
आज तक मुझे पहचान ना पाए,
खुद ही कर ली बेवफ़ाई हुमने,
ताक़ि उन पर कोई इल्ज़ाम ना आए..

98.

आँखे रो पड़ी उनका ना पैगाम आया,
चले गये हमे अकेला छोड़ कर ये कैसा मुकाम आया..
मेरी तन्हाई हसी मुझ पर और बोली,  
आख़िर मेरे सिवा कौन काम आया..

99.

कहाँ नहीं तेरी यादों के हाथ,
कहाँ तक कोई दामन बचा के चले..

100.

पूछ कर मेरा पता बदनामिया मत मोल ले..
ख़त किसी फूटपाथ पर रख दे, मुझे मिल जायेगा..

101.

कल, भीड़ में भी .... तुम हमें तन्हा दिखे,
अब बोल भी दो, है क्या वजह तन्हाई की ?

102.

जमाने भर के एव कम थे,
जो तुमने जाते जाते ये घाव दे दिया कि तुम अच्छे नही हो,

103.

जब वो मिले हमसे अरसे बाद तो उन्होने पूछा हाल -चाल कैसा है,
तो मैने कहा तुम्हारी चली चाल से मेरा हाल बदल गया..

104.

इतनी शिद्दत से वो शख्स मेरी रगो मै उतर गया है,
कि उसे भुलाने कि लिये मुझे मरना होगा..

105.

मोहब्बत का अजीब दस्तूर देखा,
जो उसकी जीत हो तो हम हार जाये..

106.

तुम्हे मोहब्बत करना नहीं आता 
मुझे मोहब्बत के सिवा कुछ नहीं आता 
ज़िन्दगी जिने के दो ही तरीके है 
एक तरीका तुम्हे नहीं आता 
एक मुझे नहीं आता ...

107.

किसी को भुलाने के लिए ना मर जाना तुम..
क्या जाने कौन तुम्हारी राह देख रहा होगा !!

108.

हम तो रो भी नहीं सकते उसकी याद में 
उसने एक बार कहा था 
मेरी जान निकल जाएगी 
तेरे आंसू गिरने से पहले..

109.

आँसू की कीमत जो समझ ली उन्होने.. 
उन्हे भूलकर भी मुस्कुराते रहे हम ..

110.

फिकर ही हमारी यही थी..
कि कहीं शिकायत ना हो उनको..
कि क़दर उनकी हमने नही की..

111.

उन्होने हाँ जो कह भी दिया..
क्या पता दुनिया से लड़ना पड़े हमे..!!

112.

ए जिन्दगी खत्म कर अब ये यादो के सिलसिले,
मै थक सा गया हू दिल को तसल्लिया देते देते,

113.

लोग इश्क़ करते है बड़े शोर के साथ,
हमने भी किया था बड़े ज़ोर के साथ,
मगर अब करेंगे ज़रा गौर के साथ,
क्योकि कल देखा था उसे किसी और के साथ!

114.

मेरे सब्र की इन्तेहाँ क्या पूछते हो 'फ़राज़'
वो मेरे सामने रो रहा है किसी और के लिए..

115.

ज़ख़्म जब मेरे सिने के भर जाएँगे,
आँसू भी मोती बनकर बिखर जाएँगे,
ये मत पूछना किस किस ने धोखा दिया,
वरना कुछ अपनो के चेहरे उतर जाएँगे

116.

आज कोई नया जख्म नहीं दिया उसने मुझे ,
कोई पता करो वो ठीक तो है ना..

117.

चले जायेंगे तुझे तेरे हाल पर छोड़कर 
कदर क्या होती है तुझे वक़्त सिख देगा .
लोग इश्क़ करते है बड़े शोर के साथ,
हमने भी किया था बड़े ज़ोर के साथ,
मगर अब करेंगे ज़रा गौर के साथ,
क्योकि कल देखा था उसे किसी और के साथ..

118.

मेरे सब्र की इन्तेहाँ क्या पूछते हो 'फ़राज़'
वो मेरे सामने रो रहा है किसी और के लिए..

119.

ज़ख़्म जब मेरे सिने के भर जाएँगे,
आँसू भी मोती बनकर बिखर जाएँगे,
ये मत पूछना किस किस ने धोखा दिया,
वरना कुछ अपनो के चेहरे उतर जाएँगे

120.

आज कोई नया जख्म नहीं दिया उसने मुझे ,
कोई पता करो वो ठीक तो है ना...

121.

चले जायेंगे तुझे तेरे हाल पर छोड़कर..
कदर क्या होती है तुझे वक़्त सिख देगा..

122.

हसरतें आज भी खत लिखती हैं मुझे,
मगर अब मैं पुराने पते पर नहीं रहता!

123.

किसी की चाहत मे इतने पागल ना हो,
हो सकता हे वो तुम्हारी मंज़िल ना हो,
उसकी मुस्कुराहट को मोहब्बत ना समझो,
कहीं ये मुस्कुराना उसकी आदत ना हो…!!!

124.

दिल धड़कता है तो डर सा लगा रहता है,
कोई सुन ना ले, मेरी धड़कन मे नाम तेरा..

125.

तुमसे किसने कह दिया कि मुहब्बत की बाजी हार गए हम?
अभी तो दाँव मे चलने के लिए मेरी जान बाकी है !

126.

इश्क़ का दस्तूर ही कुछ ऐसा है
जो इसे जान लेता है
ये साला उसी की जान लेता है !!

127.

वफ़ा करने से मुकर गया है दिल;
अब प्यार करने से डर गया है दिल;
अब किसी सहारे की बात मत करना;
झूठे दिलासों से भर गया है अब यह दिल।

128.

किस हद तक जाना है ये कौन जानता है,
किस मंजिल को पाना है ये कौन जानता है,
दोस्ती के दो पल जी भर के जी लो,
किस रोज़ बिछड जाना है ये कौन जानता है.

129.

खुली आंखो से देखा एक ऐसा ख्वाब जो अपना नही था,
आज तक वो शक्स दिल मे है जो उस्स वक़्त भी मेरा नही था !

130.

कुछ नही बदला उसके जाने के बाद इस जिंदगी में,ऐ दोस्तों,
बस कल जिस जगह दिल हुआ करता था आज वहा दर्द होता है..!!

131.

महगाई का आलम तो देखो
घर क्या ले जाना है
जानबूझ कर भूल जाता हूँ

132.

हम से खेलती रही दुनिया ताश के पत्तों की तरह,
जिसने जीता उसने भी फेका जिसने हारा उसने भी फेंका...

133.

उसने महबूब ही तो बदला है फिर ताज्जुब कैसा;,
दुआ कबूल ना हो तो लोग खुदा तक बदल लेते है..

134.

बहुत दिनों से ख्वाहिश हैं कि किसी दिन वो आए और कहे,
बंद करो ये रोना, लो लौट आई मैं तुम्हारे लिए..

135.

आज़ाद कर दिया हे हमने भी उस पंछी को,
जो हमारी दिल की कैद में रहने को तोहीन समजता था...!!

136.

प्यार की बाते तू क्या जानेगी ......
तू गैर है कोई मेरी अपनी तो नहीं..

137.

तुझ से ज्यादा चाहत मुझे किसी और से मिली है मुझे..
तू मौत की तरफ़ लें जाने वाली राह है वो ज़िन्दगी देने चली है मुझे..

138.

मैं लौट कर आऊं भी तो कैसे हर दरवाजा बंद नज़र आता है..
सुना है हमने भी इश्क करने वालो सेदिल का दरवाजा अंदर से खोला जाता है..

139.

झूठ है के प्यार के रिश्ते जनम-जनमतक जुड़े होते हैं...!!
मैंने तो एक जनम के साथ के लिए, दिल को तड़पते देखा है...!!

140.

मुझे दर्द दे कर तुझे सुकून मिलता है तो दर्द कबूल है मुझे..
तू मेरे बिना खुश है तो तुझ से जुदाई मंजूर है मुझे..

141.

मुझसे जब भी मिलो तो नज़रें उठा के मिला करो,
मुझे पसंद है अपने आप को तेरी आँखों में
देखना..

142.

ये है ज़िन्दगी, किसी के घर आज नई कार आई,
और किसी के घर मां की दवाई उधार आई..

143.

तुम बिन सांसे तो आती है,
मगर जिंदगी महसूस नहीं होती..

144.

तेरी बेरुखी से इस कदर टूट गया हूँ मैं..
लगता है बिन रूह की ज़िन्दगी गुज़ार रहा हूँ..

145.

जब उसका दर्द मेरे साथ वफ़ा करता है,
एक समुन्दर मेरी आँखों से बहा करता है..

146.

मै नहीं जानता की उसके लिये दिल में एहसास क्यों है..
वो अमानत है गैर की फ़िर भी उसको पाने की प्यास क्यों है..

147.

तू मेरे जनाजे को कन्धा ना देना,
जिन्दा ना हो जाऊ फिर कही तेरा सहारा देख कर !!

148.

चंद खुशियाँ ही बची थी, मेरे हाथो की लकीरो में..
वो भी तेरे आंसु पोछते हुए, मिट गई.............

149.

'ख़ुदा जाने मेरा क्या वज़्न है उनकी निगाहों में?
सुना है आदमी को वोह नज़र में तोल लेते हैं.!!

150.

बडा जालिम है साहब दिलबर मेरा,
उसे याद रहता है मुझे याद न करना l

151.

मुद्दत हो गयी, कोइ शख्स तो अब ऐसा मिले...
बाहर से जो दिखता हो अन्दर भी वैसा ही मिले..!!

152.

किसी पर भी एतबार ज़रा सोच समझकर, करनामुमकिन नही तुम्हे हर जगह हम मिले..

153.

मैं उदास हूं बिना तेरे कैसे कहूँ की जी नहीं सकता,
कैसे तूने उस गैर को अपना बना लिया,
मैं ये बात अब सह नहीं सकता..

154.

अगर इश्क़ करो तो....अदब-ए-वफ़ा भी सीख लो,
ये चंद लम्हों की बेक़रारी...मोहब्बत नहीं होती...!!

155.

दिल के लिये ज़िंदगी का पैगाम बन गई ....
सिमट के " तन्हाइयाँ " तेरा नाम बन गई .....!!

156.

प्यार का तो पता नही..लेकिन जब भी तू परेशान
होती है,
एक अजीब सी बेचैनी हो जाती है मुझे ����

157.

हमदर्द थे...हम-कदम थे...हमसफ़र थे...हमनशीं
जो भी थे बस हम थे ....!
वो तो कभी थे ही नहीं .....!

158.

क्या ऐसा नही हो सकता
हम तुमसे तुमको मांगे....

साहब

और तू मुस्कुरा के कहे
अपनी चीजे माँगा नही करते....

159.

जब तक साँस है , टकराव मिलता रहेगा !
जब तक रिश्ते हैं , घाव मिलता रहेगा !
पीठ पीछे जो बोलते हैं , उन्हें पीछे ही रहने दे ,
रास्ता सही है तो गैरों से भी लगाव मिलता रहेगा।।

160.

मेरी तहरीर से लिपटे हुए ताबूत ना खोल,
अल्फ़ाज़ गर जी उठे तो ख़ौफ़ से मर जाओगे तुम..

161.

किसी को किसी से कम ना आँकिये साहब,
देखिये दोनों ने मिल कर साल बदल दिया..

162.

पहले हम अच्छे थे अब कैसे बुरे हो गये,
तुम ख़ुद तो बदले हो,बयाँन तो ना बदलो..

163.

एक हुनर है चुप रहने का,
इक ऐब है कह देने का..

164.

ये साल भी गुज़रा तेरे प्यार की मानिद,
आते हुए कुछ और था और जाते हुए कुछ और..

165.

सुना है बहुत पढ़ें लिखें हो तुम,
कभी वो भी तो पढ़ो जो हम लिख नहीं पाते..

166.

दिये हैं ज़िन्दगी ने ज़ख़्म एैसे,
के जिनका वक़्त भी मरहम नही..

167.

चालाकी कहाँ मिलती है ज़रा हमें भी बता दीजिये,
ज़रा सा मीठा बोल के हर कोइ ठग लेता है..

168.

यह कैसा ख़्वाब था,झटका सा लगा दिल को,
के इक शख़्स परेशान था मेरी तलाश में..

169.

प्यास कहती है कि अब कोइ रेत निचोड़ी जाय,
अपने हिस्से में समन्दर नहीं आने वाला..

170.

चेहरे बदल बदल कर मिल रहे हैं लोग,
इतना बुरा सलूक मेरी सादगी के साथ !!!

171.

मुझे लहज़ा बदलने से हमेशा ख़ौफ़ आता है,
के लहज़े जब बदलते हैं तो कोइ अपना नहीं रहता..

172.

अजीब लोगों का बसेरा है तेरे शहर में,
ग़रूर में मिट जाते हैं मगर याद नहीं करते..

173.

तकदीर बनाने वाले, तूने भी हद कर दी;
तकदीर में किसी और का नाम लिखा था;
और दिल में चाहत किसी और की भर दी!

174.

न जाने क्यों हमें आँसू बहाना नहीं आता!
न जाने क्यों हाल-ऐ-दिल बताना नहीं आता!
क्यों सब दोस्त बिछड़ गए हमसे!
शायद हमें ही साथ निभाना नहीं आता!

175.

ताल्लुकात बढ़ाने हैं तो कुछ आदतें बुरी सीख लो...
अग़र ऐब न हों तो लोग महफ़िलों में नहीं बुलाते...

176.

दोस्त समझते हो तो दोस्ती निभाते रहना;
हमें भी याद करना खुद भी याद आते रहना;
हमारी तो हर ख़ुशी दोस्तों से ही है;
हम खुश रहें या ना आप सदा यूँ ही मुस्कुराते रहना।

177.

आसमान से उतरी हैं, तारों से सजाई है..
चाँद की चांदनी से नेहलायी हैं, ए दोस्त,
संभल के रखना ये दोस्ती,
यही तो हमारी ज़िन्दगी भर की कमाई है..

178.

मोहब्बत नहीं है कोई किताबों की बाते!
समझोगे जब रो कर कुछ काटोगे रातें!
जो चोरी हो गया तो पता चला दिल था हमारा!
करते थे हम भी कभी किताबों की बाते!

179.

कभी इतना मत मुस्कुराना की नजर लग जाए जमाने की,
हर आँख मेरी तरह मोहब्बत की नही होती....!!!

180.

कुछ हार गयी तकदीर कुछ टूट गए सपने,
कुछ गैरों ने बर्बाद किया कुछ छोड़ गए अपने !!

181.

मोहब्बत यूँ ही किसी से हुआ नहीं करती....,
अपना वजूद भूलाना पडता है,किसी को अपना बनाने के लिए...।

182.

हमने लिया सिर्फ होंठों से जो तेरा नाम..
दिल होंठो से उलझ पड़ा कि ये सिर्फ मेरा है !!

183.

मेरी ख्वाहिश है की मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊं,..
माँ से इस तरह लिपट जाऊं की बच्चा हो जाऊं..

184.

प्रेम तब तक सिर्फ एक शब्द भर है जब तक आप इसका अहसास नहीं कर लेते।

185.

तेरी मुहब्बत पर मेरा हक तो नही पर दिल चाहता है, आखरी साँस तक तेरा इंतजार करूँ !

186.

हज़ारो मैं मुझे सिर्फ़ एक वो शख्स चाहिये,
जो मेरी ग़ैर मौजूदगी मैं, मेरी बुराई ना सुन सके !!

187.

तेरा ज़िक्र..तेरी फिक्र ..तेरा एहसास...तेरा ख्याल..!!! तू खुदा नहीं ....फिर हर जगह मौज़ूद क्यूँ है...!!

188.

सीख कर गया है वो मोहब्बत मुझसे,
जिस से भी करेगा, बेमिसाल करेगा।

189.

हाथों की लकीरों के फरेब में मत आना..
ज्योतिषों की दूकान पर ''मुक्कदर'' नहीं बिकते..

190.

'साहिल' पे बैठे यूँ सोचता हूँ मैं आज
कौन ज्यादा मजबूर है
ये किनारा जो चल नहीं सकता या
या वो लहर जो ठहर नहीं सकती ?