Monday 1 April 2024

कुएं का मेंढक मत बनो


एक कुएं में एक मेंढक रहता था। उसके पास समुन्द्र से एक बड़ी मछली आई।

उसने मेंढक से बोला- मैं अभी-अभी समुन्द्र से आई हूं।

उस मेंढक ने पूछा- ये समुन्द्र क्या होता हैं ?

मछली बोली- समुन्द्र मतलब जहां पे बहुत पानी हैं। मेंढक बोला-बहुत पानी मतलब कितना बहुत पानी हैं?

फिर मेंढक ने एक चौथाई कुएं की छलांग मारी और बोला क्या इतना पानी है ?

मछली बोली- अरे नहीं मेंढक!

इतना नहीं बहुत पानी हैं। 

मेंढक ने फिर आधे कुंए की छलांग मारी और बोला-क्या इतना पानी हैं?

मछली बोली-अरे नहीं ये तो कुछ भी नहीं हैं। इससे भी ज़्यादा पानी होता हैं।

फिर मेंढक ने परेशान होकर पूरे कुंए का एक चक्कर लगाया और बोला-क्या इतना पानी होता हैं समुन्द्र में ?

मछली बोली-अरे नहीं….. मेरे प्यारे मेंढक कैसे समझाऊ मैं तुम्हें, इससे भी ज़्यादा पानी होता हैं।

मेंढक बोला-तुम झूठ बोल रही हो क्योंकि इससे ज़्यादा पानी तो हो ही नहीं सकता।

क्योंकि मेंढक की सोच और उसकी दुनिया यही से शुरू होती हैं और यही पे खत्म होती हैं।

इससे ज़्यादा पानी उस मेंढक ने ना कभी देखा था और  

ना ही कभी सुना था, जब सुना नहीं था, देखा नहीं था,

तो इससे ज़्यादा सोचेगा कैसे।

 मछली बोली-आ बैठ मेरे पीछे और उसको ले गई समुन्द्र में।

मछली- ले देख कितना पानी हैं समुन्द्र में।

जैसे ही मेंढक ने समुन्द्र में इतना पानी देखा तो उसकी आँखें खुली की खुली रह गई।

मेंढक- अरे ये क्या हैं इतना पानी तो मैंने आज तक नहीं देखा।

मेंढक की बोलती बंद हो गई।

Moral Of This Story

हमेशा अपनी सोच से बड़ा सोचने की कोशिश करनी चाहिए, जरूरी नही के जो हमने देखा न हो वो हो न।

जीवन में अक्सर ऐसा ही होता है। जिस चीज को हमने कभी ना देखा हो, उस पर विश्वास करना मुश्किल है। जो काम जीवन में कभी ना किया हो, उसमें सफ़ल होने पाने का विश्वास होना मुश्किल है। यदि हमने संकुचित बुद्धि से सोचा, तो कुएं में ही रह जायेंगे। अर्थात जीवन के संकुचित दायरे में ही सिमट कर रह जायेंगे। जीवन में प्रगति करना है, तो सबसे पहले अपनी सोच को विस्तारित करना होगा। सारी बातों के बारे में विस्तारपूर्वक जानकर निर्णय लेना होगा और जीवन की असीमित संभावनाओं के बारे में विचार करना होगा। तब ही हम उस दिशा में कार्य कर पायेंगे और सफ़लता के नये आयामों को छू पायेंगे।