Wednesday, 7 June 2017

उस मोड़ से शुरू करें फिर ये ज़िन्दगी

उस मोड़ से शुरू करें फिर ये ज़िन्दगी
हर शय* जहाँ हसीन थी, हम तुम थे अजनबी

लेकर चले थे हम जिन्हें जन्नत के ख़्वाब थे
फूलों के ख़्वाब थे वो मुहब्बत के ख़्वाब थे
लेकिन कहाँ है उन में वो पहली सी दिलकशी

रहते थे हम हसीन ख़यालों की भीड़ में
उलझे हुए हैं आज सवालों की भीड़ में
आने लगी है याद वो फ़ुर्सत की हर घड़ी

शायद ये वक़्त हमसे कोई चाल चल गया
रिश्ता वफ़ा का और ही रंगो में ढल गया
अश्कों की चाँदनी से थी बेहतर वो धूप ही

* शय = वस्तु, नींद, बाधा
सुदर्शन फ़ाकिर

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