Friday 30 June 2017

बेसन की सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ

बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी माँ


याद आती है चौका-बासन
चिमटा फुकनी जैसी माँ


बाँस की खुर्री खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे


आधी सोई आधी जागी
थकी दोपहरी जैसी माँ


चिड़ियों के चहकार में गूंजे
राधा-मोहन अली-अली


मुर्ग़े की आवाज़ से खुलती
घर की कुंडी जैसी माँ


बिवी, बेटी, बहन, पड़ोसन
थोड़ी थोड़ी सी सब में


दिन भर इक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी जैसी माँ


बाँट के अपना चेहरा, माथा,
आँखें जाने कहाँ गई


फटे पुराने इक अलबम में
चंचल लड़की जैसी माँ..

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