Tuesday, 6 June 2017

हम हैं कुछ अपने लिए, कुछ हैं ज़माने के लिए

हम हैं कुछ अपने लिए कुछ हैं ज़माने के लिए
घर से बाहर की फ़ज़ा हँसने-हँसाने के लिए

यूँ लुटाते न फिरो मोतियों वाले मौसम
ये नगीने तो हैं रातों को सजाने के लिए

अब जहाँ भी हैं वहीं तक लिखो रूदाद-ए-सफ़र*
हम तो निकले थे कहीं और ही जाने के लिए

मेज़ पर ताश के पत्तों-सी सजी है दुनिया
कोई खोने के लिए है कोई पाने के लिए

तुमसे छुट कर भी तुम्हें भूलना आसान न था
तुमको ही याद किया तुमको भुलाने के लिए

*रूदाद-ए-सफ़र  =  यात्रा वृतान्त
निदा फ़ाज़ली

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