Tuesday 6 June 2017

हाथ दिया उसने मेरे हाथ में

हाथ दिया उसने मेरे हाथ में
मैं तो वली* बन गया एक रात मे

इश्क़ करोगे तो कमाओगे नाम
तोहमतें बटती नहीं खैरात में

इश्क़ बुरी शै सही, पर दोस्तो
दख्ल न दो तुम, मेरी हर बात में

हाथ में कागज़ की लिए छतरियाँ
घर से ना निकला करो बरसात में

रत* बढ़ाया उसने न ‘क़तील’ इसलिए
फर्क था दोनों के खयालात में

* वली – मुसलिम साधु, युवराज
* रत – प्रेम प्रसंग

1 comment:

  1. kya gajab likhte ho sir aap.. bahut sundar likha gya hai

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