हाथ दिया उसने मेरे हाथ में
मैं तो वली* बन गया एक रात मे
इश्क़ करोगे तो कमाओगे नाम
तोहमतें बटती नहीं खैरात में
इश्क़ बुरी शै सही, पर दोस्तो
दख्ल न दो तुम, मेरी हर बात में
हाथ में कागज़ की लिए छतरियाँ
घर से ना निकला करो बरसात में
रत* बढ़ाया उसने न ‘क़तील’ इसलिए
फर्क था दोनों के खयालात में
* वली – मुसलिम साधु, युवराज
* रत – प्रेम प्रसंग
kya gajab likhte ho sir aap.. bahut sundar likha gya hai
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