Friday 2 June 2017

हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी


हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी
फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी

सुबह से शाम तक बोझ ढोता हुआ
अपनी ही लाश का खुद मज़ार आदमी

हर तरफ भागते दौड़ते रास्ते
हर तरफ आदमी का शिकार आदमी

रोज जीता हुआ रोज मरता हुआ
हर नए दिन नया इंतज़ार आदमी

ज़िन्दगी का मुक़द्दर सफ़र दर सफ़र
आखिरी सांस तक बेक़रार आदमी

निदा फ़ाज़ली

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