ना खैरात में मिला है, ना वसीयत काम आई है,
एक-एक रुपया मेरी जेब का, गाढ़े पसीने की कमाई है..
ना शागिर्दी है मिजाज़ में, ना बेपनाह हुनर है कोई,
मैंने ठोकरें खा-खा कर, अपनी रह बनाई है..
मेरे बदन से खुशबू आती है मेरे पसीने की,
मेरे हाथ औज़ार हैं, मैंने मेहनत से शख्सियत सजाई है..
हासिल हुआ है बहुत कुछ, मगर कुछ आसानी से नहीं,
मैंने हर मकाम की ज़िन्दगी से कीमत चुकाई है..
वो और हैं जिनको मिला है बहुत कुछ किस्मत से,
मैंने हाथों को कुरेदा है तब अपनी तक़दीर बनाई है..
मेरी आँखों में झलकता है मेरा बेख़ौफ़ हौंसला,
मेरी तबीयत में एक गज़ब की गहराई है..
ना खैरात में मिला है, ना वसीयत काम आई है,
एक-एक रुपया मेरी जेब का, गाढ़े पसीने की कमाई है..
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