पिता आंसुओं और मुस्कान का वह समुच्चय,
जो बेटे के दुख में रोता, तो सुख में हंसता है
उसे आसमान छूता देख अपने को कद्दावर मानता है
तो राह भटकते देख कोसता है अपनी किस्मत की बुरी लकीरों को।
पिता गंगोत्री की वह बूंद, जो गंगा सागर तक
पवित्र करने के लिए धोता रहता है एक-एक तट, एक-एक घाट।
समंदर के जैसा भी है पिता, जिसकी सतह पर खेलती हैं असंख्य लहरें,
तो जिसकी गहराई में है खामोशी ही खामोशी।
वह चखने में भले खारा लगे,
लेकिन जब बारिश बन खेतों में आता है
तो हो जाता है मीठे से मीठा...
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