Saturday 13 August 2016

धोखा, किस्मत, दर्द या तकदीर

धोखा कहूं किस्मत का या कहूं नसीबों की बातें,
इसे दिल चीर कर रख दिया तकदीर के धोखे ने..
 
अफसाने वजूद हुआ करते थे उसके आने से,
जुगनुओं सी चमक थी जिसकी आंखों में..

समय की धारा बहे जाती थी उसकी ,
मुस्कुराहटों को देख कर न ऐसी खबर थी..
 
न ऐसा ऐतबार था की कभी,
जीवन में कभी ऐसा दर्द भी मिल सकता है..
 
तकदीर से धोखा खाने पर,
दर्द के रंग बदलते देखे हमने ,
बहुत इस जमाने में, पर अब दर्द ही सहारा है..
 
तकदीर से धोखा खाने पर, फिर भी,
यादों में बसी है वो मेरी अधूरी कविता..
 
अपनी मुस्कान लिए बाहें पसारे मानो,
साथ ही है वो मेरे दिल में आज भी..
 
न माने क्या करूं, न समझे है कितना भी समझाने से,
ऐसे बड़े धोखे तकदीर के खाने से..

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