Thursday, 11 August 2016

वो भी क्या ज़माना था

वो माचिस की सीली डिब्बी, वो साँसों में आग,
बरसात में सिगरेट सुलगाए ज़माने हो गए..

वो दाँतों का पीसना, वो माथे पर बल,
किसी को झूठा ग़ुस्सा दिखाए ज़माने हो गए..

वो एक्शन के जूते और ऊपर फ़ॉर्मल सूट,
बेगानी शादी में दावत उड़ाए ज़माने हो गए..

ये बारिशें आज-कल रेनकोट में सूख जाती हैं,
सड़कों पर छपाके उड़ाए ज़माने हो गए..

अब सारे काम सोच-समझ कर करता हूँ ज़िन्दगी में,
वो पहली गेंद पर बढ़ कर छक्का लगाए ज़माने हो गए..

वो ढ़ाई नम्बर का क्वेश्चन, पुतलियों में समझाना,
किसी हसीन चेहरे को नकल कराए ज़माने हो गए..

जो कहना है फ़ेसबुक पर डाल देता हूँ,
किसी को चुपके से चिट्ठी पकड़ाए ज़माने हो गए..

बड़ा होने का शौक़ भी बड़ा था बचपन में,
काला चूरन मुँह में तम्बाकू सा दबाए ज़माने हो गए..

मेरे आसमान अब किसी विधवा की साड़ी से लगते हैं,
बादलों में पतंग की झालर लगाए ज़माने हो गए..

आज-कल खाने में मुझे कुछ भी नापसन्द नहीं,
वो मम्मी वाला अचार खाए ज़माने हो गए..

सुबह के सारे काम अब रात में ही कर लेता हूँ,
सफ़ेद जूतों पर चॉक लगाए ज़माने हो गए..

लोग कहते हैं बन्दा बड़ा सलीक़ेदार है,
दोस्त के झगड़े को अपनी लड़ाई बनाए ज़माने हो गए..

साइकिल की सवारी और ऑडी सा टशन,
डंडा पकड़ कर कैंची चलाए ज़माने हो गए..

किसी इतवार खाली हो तो आ जाना पुराने अड्डे पर,
दोस्तों को दिल के शिकवे सुनाए ज़माने हो गए..

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