Sunday 24 July 2016

इतिहास की परीक्षा - एक हास्य कविता

इतिहास की परीक्षा थी उस दिन, चिंता से ह्रदय धडकता था..
थे बुरे शकुन घर से चलते ही, बायाँ हाथ फड़कता था..

मैंने सवाल जो याद किये, वे केवल आधे याद हुए..
उनमें से भी कुछ स्कूल तलक, आते आते बर्बाद हुए..

तुम बीस मिनट लेट, द्वार पर चपरासी नें बतलाया मैं..
मेल ट्रेन की तरह दौड़ता, कमरे के भीतर आया..

परचा हाथों में पकड़ लिया, आखें मूंदी तब झूम गया..
पढ़ते ही छाया अन्धकार, चक्कर आया सर घूम गया..

यह सौ नंबर का परचा है, मुझको दो की भी आस नहीं..
चाहे सारी दुनिया पलटे, पर मैं हो सकता पास नहीं..

ओ प्रश्न लिखने वाले, क्या मुहं लेकर उत्तर दें हम तू..
लिख दे तेरी जो मर्ज़ी, ये परचा है या Atom Bomb..

तूने पूछे वही सवाल, जो जो मैंने थे रटे नहीं..
जिन हाथों नें ये प्रश्न लिखे, वे हाथ तुम्हारे कटे नहीं..

फिर आँख मूंदकर बैठ गया, बोला भगवान् दया कर दे..
मेरे दिमाग में इन कम्बख्त प्रश्नों के उत्तर, ठूस ठूस भर दे..

मेरा भविष्य है खतरे में, मैं झूल रहा हूँ आयें बायें..
तुम करते हो भगवान् सदा, संकट में भक्तों की सहाय..

जब ग्राह ने गज को पकड़ लिया तुमने ही उसे बचाया था..
जब दुपद -सुता की लाज लुटी, तुमने ही चीर बढ़ाया था..

द्रौपदी समझ करके मुझको, मेरा भी चीर बढ़ाओ तुम..
मैं विष खाकर मर जाऊँगा, वर्ना जल्दी आ जाओ तुम..

आकाश चीर कर अम्बर से, आई गहरी आवाज़ एक रे मुरख..
व्यर्थ क्यूँ रोता है, तू आँख खोलकर इधर तो देख..

गीता कहती है करम करो, फल की चिंता मत किया करो..
मन में आये जो बात उसी को, पर्चे में लिख दिया करो..

मेरे अंतर के पात खुले, पर्चे पर कलम चली चंचल..
ज्यों किसी खेत की छाती पर, चलता हो हलवाहे का हल..

मैंने लिखा पानीपत का दूसरा युद्ध, हुआ सावन के मौसम में..
Japan Germani बीच हुआ , अठारह सौ सत्तावन में..

लिख दिया महात्मा बुध, महात्मा गाँधी के चेले थे..
गाँधी जी के संग बचपन में वो, आँख मिचौली खेले थे..

राणा प्रताप नें गौरी को, केवल दस बार हराया था..
अकबर नें हिंद महा सागर, अमरीका से मंगवाया था..

महमूद गजनबी उठते ही, दो घंटे रोज़ नाचता था..
औरंगजेब रंग में आकर, औरों की जेब काटता था..

इस तरह अनेकों भावों से, फूटे भीतर के फव्व्वारे..
जो जो सवाल थे याद नहीं, वे ही पर्चे पर लिख मारे..

हो गया परीक्षक पागल सा, मेरी copy को देख देख..
बोला इन सब छात्रों में, बस होनहार है यही एक..

औरों के पर्चे फेंक दिए , मेरे सब उत्तर छांट लिए..
Zero नंबर देकर बाकी के सारे नंबर काट लिए..

No comments:

Post a Comment