Thursday, 18 February 2016

बुरे ज़माने कभी पूछ कर नहीं आते


तुम्हारी राह में मिटटी के घर नहीं आते
इसीलिए तुम्हे हम नज़र नहीं आते

मोहब्बतो के दिनों की यही खराबी है
ये रूठ जाएँ तो लौट कर नहीं आते

जिन्हें सलीका है तहजीब-ए-गम समझाने का
उन्ही के रोने में आंसू नज़र नहीं आते

खुशी की आँख में आंसू की भी जगह रखना ''वसीम''
बुरे ज़माने कभी पूछ कर नहीं आते

वसीम बरेलवी

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