रात के टुकड़ों पे पलना छोड़ दे
शमा से कहना के जलना छोड़ दे
मुश्किलें तो हर सफ़र का हुस्न हैं
कैसे कोई राह चलना छोड़ दे
तुझसे उम्मीदे- वफ़ा बेकार है
कैसे इक मौसम बदलना छोड़ दे
मैं तो ये हिम्मत दिखा पाया नहीं
तू ही मेरे साथ चलना छोड़ दे
कुछ तो कर आदाबे-महफ़िल का लिहाज़
यार ! ये पहलू बदलना छोड़ दे
वसीम बरेलवी
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