कौन सी बात कहाँ कैसे कही जाती है
ये सलीका हो तो हर बात सुनी जाती है
एक बिगड़ी हुई औलाद भला क्या जाने
कैसे माँ बाप के होंठों से हंसी जाती है
कतरा अब एह्तिजाज़ करे भी तो क्या मिले
दरिया जो लग रहे थे समंदर से जा मिले
हर शख्स दौड़ता है यहाँ भीड़ की तरफ
फिर ये भी चाहता है उसे रास्ता मिले
इस दौर-ए-मुन्साफी में जरुरी नहीं ''वसीम''
जिस शख्स की खता हो उसी को सजा मिले
वसीम बरेलवी
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