मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले..
उसे समझने का कोई तो सिलसिला निकले..
किताब-ए-माज़ी* के पन्ने उलट के देख ज़रा..
न जाने कौन-सा पन्ना मुड़ा हुआ निकले..
जो देखने में बहुत ही क़रीब लगता है..
उसी के बारे में सोचो तो फ़ासला निकले..
* किताब-ए-माज़ी : अतीत की पुस्तक
वसीम बरेलवी
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