Wednesday, 17 February 2016

जब भी तन्हाई से घबराके सिमट जाते हैं


जब भी तन्हाई से घबराके सिमट जाते हैं
हम तेरी याद के दामन से लिपट जाते हैं

उनपे तूफान को भी अफ़सोस हुआ करता है
वो सफीने* जो किनारों पे उलट जाते हैं

हम तो आए थे राहे साख में फूलों की तरह
तुम अगर हार समझते हो तो हट जाते हैं

* सफीने – नाव

सुदर्शन फ़ाक़िर

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