मेरी आँख को यह सब कौन बताने देगा
खवाब जिसके हैं वहीं नींद न आने देगा
उसने यूँ बाँध लिया खुद को नये रिशतों में
जैसे मुझ पर कोई इलज़ाम न आने देगा
सब अंधेरे से कोई वादा किये बैठ हैं
कौन ऐसे में मुझे शमा जलाने देगा
भीगती झील, कमल, बाग महक, सन्नाटा,
यह मेरा गाँव, मुझे शहर न जाने देगा
वह भी आँखों में कई खवाब लिये बैठा है
यह तसव्वुर* ही कभी नींद न आने देगा
कल की बातें न करो, मुझ से कोई अहद न लो
वक़्त बदलेगा तो कुछ याद न आने देगा
अब तो हालात से समझौता ही कर लीजे “KG”
कौन माज़ी* की तरफ लौट के जाने देगा
* तसव्वुर – कलपना
* माज़ी – अतीत
वसीम बरेलवी
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