ज़िन्दगी की किताब में मोहब्बत का पन्ना अभी भी कोरा ही है
कलम भी है पास मेरे बस लिखने को स्याही ढूंढ रहा हूँ,
अश्कों का लिखा अब दिखाई भी नहीं देता
चंद अल्फ़ाज़ के लिए जिगर का लहू ढूंढ रहा हूँ मैं,
कसमों और वादों से अब ये कलम ना उठेगी
लिखने को चंद अल्फ़ाज़ सच्चे दिल की आवाज़ ढूंढ रहा हूँ मैं,
ज़िंदगी के हर एक मोड़ की कोई ना कोई मंज़िल तो है ही
रास्ते भी हैं और उसपे चलने का हौंसला भी है
बस एक हमसफ़र ढूंढ रहा हूँ मैं,
आँखों पे पट्टी बांधे बांधे कदमों के निशां ढूंढ रहा हूँ मैं,
हाथ आगे बढ़ाने से अब ये कदम ना उठेंगे
चलने को साथ रास्तों पे
कदम से कदम मिलाने का सुर और ताल ढूंढ रहा हूँ मैं..
Saturday, 9 April 2016
एक अधूरी तलाश
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