क्या नया लिखूँ आपके लिए
जो नहीं कहा अब तक…
आज सोचा लिखूँ बहुत कुछ
तभी काग़ज़ ने पूछ लिया…
है कौन वह जिनके लिए शब्द ढूंढ रहा है?
क्या नाम है, कितना पहचानता है उसे?
मुस्कुरा कर कलम उठा कर दिया मैंने उसे जवाब…!!
मीलों दूर की अजनबी थी वो
अब आस पास रहने वाली अपनी सी है वो
चश्मिश पुकारता हूँ
उसे कभी बन्दर बुला लेता हूँ…
पास ना होकर भी,
ख़ामोश ज़िन्दगी की हलचल है वो तो…
उसकी परछाई, उसकी हँसी, उसकी महक से
नहीं मिली आज तक…
फिर भी एक सुकून देता साथ है वो !!
अपने ख़यालों में डूबती
प्यार करने के नए तरीके सिखाती वो…
बार बार रूठे, बार बार मनाये
आँसू पोंछ कर हँसाए जो…
समझ लो ख़ुशियों का ख़ुशनुमा रंग है वो…!!
अनकहा सा अनसुना सा जज़्बात है
दबा जाता हूँ जिसे ऐसा एहसास है वो…!!
और किन लफ़्ज़ों में लिखूँ तू बता
अब किस अंदाज़ में समझाऊँ…
देख तो ज़रा तुझ पर लिखी
मेरी नज़म का अल्फ़ाज़ है वो…
मेरी कविता है वो
मेरा फ़क्र है वो…!!