Wednesday 31 May 2017

टुकड़ों में बिखरा हुआ किसी का जिगर दिखाएँगे

टुकड़ों में बिखरा हुआ किसी का जिगर दिखाएँगे
कभी आना हमारी बस्ती तुम्हे अपना घर दिखाएँगे !

होंठ काँप जाते हैं थर-थर्राती है ज़ुबान
टूटे दिल से निकली हुई आहों का असर दिखाएँगे !

एक पहुँच पाता नहीं और एक छलक जाता है
पलकों से दामन तक का अश्कों का सफ़र दिखाएँगे !

कभी आना हमारी बस्ती तुम्हे अपना घर दिखाएँगे !!
कहीं तस्वीर है तेरी कहीं लिखा है तेरा नाम
मंदिर-मस्जिद जितना पाक एक दीवार-ओ-दर दिखाएँगे !

अक्सर तकती रहती है सुनसान राहों को सनम
दरवाज़े पर बैठी हुई सपनो की नज़र दिखाएँगे।

कभी आना हमारी बस्ती तुम्हे अपना घर दिखाएँगे !!
मुनव्वर राना 

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