Wednesday 31 May 2017

मिट्टी में मिला दे की जुदा हो नहीं सकता

मिट्टी में मिला दे की जुदा हो नहीं सकता
अब इससे जयादा मैं तेरा हो नहीं सकता

दहलीज़ पे रख दी हैं किसी शख़्स ने आँखें
रौशन कभी इतना तो दिया हो नहीं सकता

बस तू मेरी आवाज़ में आवाज़ मिला दे
फिर देख की इस शहर में क्या हो नहीं सकता

ऎ मौत मुझे तूने मुसीबत से निकाला
सय्याद समझता था रिहा हो नहीं सकता

इस ख़ाकबदन को कभी पहुँचा दे वहाँ भी
क्या इतना करम बादे-सबा* हो नहीं सकता

पेशानी* को सजदे भी अता कर मेरे मौला
आँखों से तो यह क़र्ज़ अदा हो नहीं सकता

*बादे-सबा – बहती हवा
*पेशानी -माथे

मुनव्वर राना

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