ये देख कर पतंगे भी हैरान हो गयी
अब तो छते भी हिन्दू -मुसलमान हो गयी
क्या शहर -ए-दिल में जश्न -सा रहता था रात -दिन
क्या बस्तियां थी ,कैसी बियाबान हो गयी
आ जा कि चंद साँसे बची है हिसाब से
आँखे तो इन्तजार में लोबान हो गयी
उसने बिछड़ते वक़्त कहा था कि हँस के देख
आँखे तमाम उम्र को वीरान हो गयी
मुनव्वर राना
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