Sunday, 14 April 2019

कर्म से कर्म नहीं कटता, अकर्म से कर्म कटता है 🙏

कर्म से कर्म नहीं कटता, अकर्म से कर्म कटता है 🙏

अनंत अनंत कर्म इकट्ठे कर लिए जाते हैं, समाधि के द्वारा नष्ट हो जाते हैं।

यह थोड़ा समझने जैसा है। क्योंकि अनेक लोग सोचते हैं कि अगर कर्म बुरे इकट्ठे हो गए हैं तो अच्छे कर्म करके उनको नष्ट कर दें, वे गलती में हैं। बुरे कर्मों को अच्छे कर्म करके नष्ट नहीं किया जा सकता। बुरे कर्म बने रहेंगे और अच्छे कर्म और इकट्ठे हो जाएंगे, बस इतना ही होगा। वे काटते नहीं हैं एक दूसरे को। काटने का कोई उपाय नहीं है। एक आदमी ने चोरी की, फिर वह पछताया और साधु हो गया। तो साधु होने से वह चोरी का कर्म और उसके जो संस्कार उसके भीतर पड़े थे, वे कटते नहीं हैं। कटने का कोई उपाय नहीं है। साधु होने का अलग कर्म बनता है, अलग रेखा बनती है। चोर की रेखा पर से साधु की रेखा गुजरती ही नहीं है। चोर से साधु का क्या लेना देना!

आप चोर थे, आपने एक तरह की रेखाएं खींची थीं, आप साधु हुए, ये रेखाएं उसी स्थान पर नहीं खिंचती हैं जहां चोर की रेखाएं खिंची थीं। क्योंकि साधु होना मन के दूसरे कोने से होता है, चोर होना मन के दूसरे कोने से होता है। तो होता क्या है, आपके चोर होने की रेखा पर साधु होने की रेखाएं और आच्छादित हो जाती हैं, कुछ कटता नहीं। तो चोर के ऊपर साधु सवार हो जाता है, बस। उसका मतलब? चोर साधु, ऐसा आदमी पैदा होता है। साधुता चोरी को नहीं काट सकती। चोर तो बना ही रहता है भीतर। इम्पोजीशन हो जाता है। एक और सवारी उसके ऊपर हो गई।

तो चोर भी ठीक था एक लिहाज से और साधु भी ठीक था एक लिहाज से, यह जो चोर और साधु की खिचड़ी निर्मित होती है, यह भारी उपद्रव है। यह एक सतत आंतरिक कलह है। क्योंकि वह चोर अपनी कोशिश जारी रखता है, और यह साधु अपनी कोशिश जारी रखता है।

और हम इस तरह न मालूम कितने कितने रूप अपने भीतर इकट्ठे कर लेते हैं, जो एक—दूसरे को काटते नहीं, जो पृथक ही निर्मित होते हैं।

इसलिए यह सूत्र कहता है कि समाधि के द्वारा वे सब कट जाते हैं।

कर्म से कर्म नहीं कटता, अकर्म से कर्म कटता है। इसको ठीक से समझ लें। कर्म से कर्म नहीं कटता, कर्म से कर्म और भी सघन हो जाता है, अकर्म से कर्म कटता है। और अकर्म समाधि में उपलब्ध होता है, जब कि कर्ता रह ही नहीं जाता। जब हम उस चेतना की स्थिति में पहुंचते हैं जहां सिर्फ होना ही है, जहां करना बिलकुल नहीं है, जहा करने की कोई लहर भी नहीं उठी है कभी; जहा मात्र होना, अस्तित्व ही रहा है सदा, जहां बीइंग है, डूइंग नहीं उस होने के क्षण में अचानक हमें पता चलता है कि कर्म जो हमने किए थे, वे हमने किए ही नहीं थे। कुछ कर्म थे जो शरीर ने किए थे, शरीर जाने। कुछ कर्म थे जो मन ने किए थे, मन जाने। और हमने कोई कर्म किए ही नहीं थे।

इस बोध के साथ ही समस्त कर्मों का जाल कट जाता है। आत्मभाव समस्त कर्मों का कट जाना है। आत्मभाव के खो जाने से ही वहम होता है कि मैंने किया।

अध्यात्म उपनिषद

ओशो ❤❤

Friday, 12 April 2019

ज्ञान से होती है इंसान की सही पहचान

दोस्तों, हम सभी जानते हैं कि जीवन में आगे बढ़ने के लिए हमें motivation और प्रेरणा की जरूरत होती है| जीवन में हम हर किसी से कुछ ना कुछ सीखते रहते हैं, लेकिन फिर भी बहुत सी चीजें ऐसी होती है जो हम अपने आसपास की चीजों से भी नहीं सीख पाते| इसी संदर्भ में हम कुछ ज्ञान की बातें बताने जा रहे हैं जो जीवन को सही दिशा में ले जाने के लिए हमें प्रेरित करती है-

जीवन और मृत्यु पर किसी का बस नहीं है| फिर भी जीने की इच्छा बहुत प्रबल है| लोग अपने अपने तरीकों और कारणों से इस जीवन को जी रहे हैं| किसी को धन चाहिए, किसी को प्रतिष्ठा, किसी को परिवार, और किसी को शोहरत| हर कोई इस जीवन में कुछ न कुछ लेना चाहता है, पाना चाहता है| लेकिन देने की किसी में कोई दिलचस्पी नहीं है|

प्राप्त करने की इच्छा इतनी प्रबल होती जाती है कि मनुष्य कुछ भी करने को तैयार हो जाता है| इस दुनिया में अधिकांश लोग सब कुछ पा लेने में ही लगे रहते हैं| इसी वजह से समाज दो हिस्सों में बंटा हुआ है| एक वर्ग उन लोगों का है जो मनचाहा प्राप्त करने में समर्थ  है| दूसरी तरफ वे लोग हैं जिन्हें अन्य लोगों का सहारा चाहिए| जिसके पास सब कुछ है वह देने की इच्छा नहीं रखता|जो असहाय हैं, अभावग्रस्त  हैं और निर्बल  है, वह इस सभ्य समाज से बहुत कुछ अपेक्षा रखते हैं| लेकिन होता विपरीत है|

शीत ऋतु भी ग्रीष्म ऋतु का स्वागत करती है| दिन, हमेशा रात का स्वागत करता है| दिन का रात में बदलना और ऋतु का आना-जाना प्रकृति के इस अद्भुत आकर्षण को बनाए रखता है| इसी तरह मनुष्य में देने की प्रवृत्ति जन्म लेती है, तो उसका प्रभाव बनता है| अन्य लोग प्रेरित होते हैं|

अच्छे गुणों के अभाव से कुछ लोग धनवान,शक्तिशाली और प्रभावशाली तो हो जाते हैं लेकिन समाज को उन से कोई लाभ नहीं होता है| जैसे शेर जंगल का राजा तो होता है लेकिन अकेला होता है क्योंकि सभी जानवर उससे डरते हैं और उससे दूर रहते हैं|

जैसे योग आसन और व्यायाम के बिना हमारा शरीर fit नहीं रहता है| ठीक उसी प्रकार मन का कार्य सही तरीके से संपन्न करने के लिए कुछ मानसिक व्यायाम (mental exercise) भी आवश्यक होता है|

यदि इंसान में शारीरिक शक्ति तो बहुत ज्यादा हो लेकिन मानसिक रूप से वह strong ना हो, तो उसे एक complete human being नहीं कह सकते| कभी कभी लाइफ में होता है कि हमारे मन में बहुत ही negetive विचार आने लगते हैं| ऐसी स्थिति में अपने मन को शुद्ध करिए और अपनी inner voice को सुनिए|किसी के प्रति कोई बैर ना रखें| अपने मन में कोई शंका या कोई मैल ना रखें| किसी इंसान के ऊपर उंगली उठाने से पहले एक बार अपने खुद के अंदर भी झांक लीजिए कि हमारे अंदर कितनी कमियां है| मन की गंदगी को पूर्ण रुप से निकाल देने पर आप प्रत्येक कार्य को सही तरीके से संपन्न कर सकते हैं|

मन का स्वभाव बहुत चंचल है| तितली से भी ज्यादा चंचल स्वभाव मन का है, जैसे तितली एक फूल से दूसरे फूल पर मंडराती रहती है| उसी तरह हमारा मन भी एक जगह पर नहीं टिकता है| यदि हम अपने मन में उठते विचारों को control करना सीख लेते हैं| तो हमारे जीवन में संतुष्टि (satisfaction) और शांति की भावना पैदा होने लगती है|

Wednesday, 10 April 2019

चंचल-बेचैन मन को शांत कैसे करें?

प्रश्न- बहुत विचार चलते हैं, बेचैनी रहती है।
मन का स्वभाव
विचारों की भीड़, विचारों का शोरगुल
मन का स्वभाव ही चंचल है।
वह कभी यहां, कभी वहां भागेगा
स्थिर होना उसका स्वभाव नहीं है।
अब कोई कहे कि सूरज बहुत गर्म है !
बताइये इसको ठण्डा करने के लिए मैं क्या करूं?
क्या ऐसा संभव है?
गर्म होना सूरज का स्वभाव है !
हां, सही प्रश्न क्या होगा?
हम यह पूछ सकते हैं कि बहुत तेज धूप पड़ रही है...बड़ी गर्मी है !
48 डिग्री टेम्परेचर है..जून का महीना है।
हम कहां छाया वाली जगह पाएं?
यह सही सवाल है।
आप से कौन कह रहा है कि लगातार आप धूप में खड़े रहो।
है गर्मी... तो रहने दो।
तुम अपने घर के भीतर आ सकते हो..तुम पंखा चला सकते हो | तुम कूलर और ए.सी. चला सकते हो।
सूरज को ठण्डा नहीं कर सकते
लेकिन तुम अपने कमरे को ठण्डा कर सकते हो।
तुम जगह बदल सकते हो
छाया वाला स्थान खोज लो।
कभी बरसात हो रही है, मूसलाधार बारिश हो रही है।
तब आप यह नहीं कहते- हम बदलों को कैसे मना करें?
कि रुक जाओ, बारिश ना करो।
ऐसा कैसे होगा?
क्या बादल हमसे पूछकर बरस रहे हैं? क्या हमारे कहने से रुकेंगे?
लेकिन इतना तो कर सकते हैं कि
हम उस स्थान में पहुंच जाएं, जहां बारिश का प्रभाव नहीं है।
हम अपना छाता खोल लें कम से कम..
इतना तो किया जा सकता है।
अतः यह मत पूछिए कि मन स्थिर नहीं होता, कैसे स्थिर करें?
ऐसा नहीं होगा।
ना हम बादलों को वर्षा करने से रोक सकते, ना हम सूरज को ठण्डा कर सकते,
ना हम मन को स्थिर कर सकते।
फिर हम क्या कर सकते हैं?
हम उस जगह से हट सकते हैं जहां बेचैनी है, जहां तनाव है, जहां अशांति है, जहां परेशानी है।
हमारा होना- सिर्फ मन ही नहीं है !
हमारे होने के चार आयाम हैं।
सबसे पहले तन - फिजिकल बॅाडी,
फिर मन - माइंड !
फिर हृदय, हार्ट, भावनाओं का स्थल
और चौथी- हमारी आत्मा।
मन में और हृदय में सदा ऊहा-पोह चलती रहती है।
मन में विचार परेशान करते हैं..हृदय में भावनाओं का आना-जाना तंग करता है।
कभी प्रेम भावना आ गई..कभी क्रोध आ गया |
कभी कठोरता आ गई, कभी करुणा आ गई। कभी दोस्ती है, कभी दुश्मनी है।
निरंतर बदल रही हैं भावनाएं।
कोई भावना ज्यादा देर नहीं टिकती।
जैसे विचार क्षणिक हैं.. वैसी ही भावनाएं हैं।
विचार से थोड़ा लंबा टिकती हैं।
मानो हवा का झोंका है आया एक खिड़की से दूसरी खिड़की से निकल जाता है।
बचता कुछ भी नहीं।
आज जिन्हें आप अपना दुश्मन कहते हैं
जिनसे आपको सख्त घृणा है
जरा याद कीजिए ये वही लोग हैं, जो आपके बड़े घने दोस्त थे।
मित्रता, शत्रुता में बदल गई।
इतना प्रेम था, लगाव था जिनसे, आज उनसे नफरत पैदा हो गई !
इससे यह भी समझ लो कि
आज आप जिन्हें अपना मित्र कह रहे हो ये भविष्य में होने वाले शत्रु हैं।
भावनाएं बदल रही हैं। आप क्या करोगे? आपके वश में नहीं है भावनाएं..
किसी से प्रेम हो गया वह आपके वश में नहीं था।
किसी पर क्रोध आ गया.. वह भी आपके वश में नहीं था।
फिर क्या किया जा सकता है?
इन चार आयामो में से
ये दो चंचल आयाम हैं- मन और हृदय, माइंड एंड हार्ट, दिल और दिमाग- दोनों चंचल हैं।
यहां तो स्थिरता नहीं हो सकती।
हम या तो फिजिकल बॅाडी के तल पर आ जाएं
जहां हमारी कर्मेद्रियां हैं, ज्ञानेंद्रियां हैं।
उनके प्रति अपनी संवेदनशीलता को बढ़ा लें।
तो ध्यान का एक उपाय यह है
कि अपनी इंद्रियों के प्रति संवेदनशील बनो।
जब चाय पी रहे हो जरा चाय की खुश्बू को महसूस करो।
थोड़ी धीमी-गहरी सांस लो
एक-एक चुस्की चाय का मजा लो उसके स्वाद का आंनद लो।
उस समय जब तुम चाय की खुश्बू,
स्वाद और गर्माहट का अहसास कर रहे हो तुम मन से दूर हट गए।
मन में चल रहे होंगे विचार चलते रहें...
किंतु तुम वहां से खिसक गए।
तुमने अपनी सारी ऊर्जा दूसरी तरफ डाल दी।
तुम सुगंध और स्वाद लेने में उत्सुक हो गए।
सुबह-सुबह सूरज निकला है
रंग-बिरंगे बादल छाये हैं,
ठण्डी हवाएं हैं..और कुनकुनी धूप चेहरे पर पड़ रही है।
जरा इस सौंदर्य का मजा लो।
अपनी आंखों में सारी जीवन ऊर्जा को उलीच दो
और तुम हैरान होगे कि..अद्भुत शांति छा गई।
यह ठण्डी हवा का स्पर्श... तुम अपनी त्वचा के प्रति संवेदनशील बने।
कुनकुनी धूप की किरणें
पंछियों की आवाजें सुनाई पड़ रहीं..तुम गौर से सुन रहे।
जरा आंख बंद करके सुनो।
और तुम हैरान हो जाओगे कि तुमने तो सिर्फ अपने कानों पर ध्यान दिया
और चित्त शांत हो गया।
हमने चित्त के साथ कुछ नहीं किया
हम वहां से शिफ्ट हो गए..हमने जगह बदल ली।
तो एक उपाय है अपने शरीर के प्रति अपनी संवेदनयशीलता को,..जागरूकता को बढ़ाओ।
ध्यान की बहुतेरी विधियां, मेडिटेशन टेक्नोलोजी इसी पर आधारित होती हैं।
जब चल रहे हो तो बस, वर्तमान के क्षण में चलो |
आगे-पीछे का सब भूल कर। पैर उठा, फिर नीचे गया, जमीन को छुआ..
फिर दूसरा पैर उठा..हाथ भी हिल रहे हैं।
अगर आप इस चलने की क्रिया के प्रति सजग हो गए तो ध्यान घटित हो जाएगा..चित्त शांत हो जाएगा।
हमने चित्त के साथ कुछ नहीं किया।
हमने क्या विधि अपनाई - हम उस जगह से हट गए जहां चंचलता है।
एक दूसरा उपाय है:
अपने भीतर, अपनी आत्मा में..अपनी चेतना में रमो।
वहां जो दृष्टा चैतन्य है- साक्षी
उसमें ओंकार का नाद गूंज रहा है
सूक्ष्म प्रकाश छाया हुआ है।
अगर तुम वहां भीतर देखने-सुनने लगे
तब तुम मन के विचारों के शोर से
और हृदय की भावनाओं के ऊहा-पोह से दूर निकल गए।
सब शांत हो जाएगा।
ओंकर सुनते हुए घनी शांति छा जाएगी। समाधि लग जाएगी।
इसमें भी हमने मन और हृदय के साथ कुछ नहीं किया !
हम केवल वहां से शिफ्ट हो गए- दूसरी जगह।
मुझे याद आता है कि - बचपन में मेरे गांव में एक नदी बहती है..
उस नदी के किनारे..कुछ मछुआरे, कुम्हार, धोबी आदि
भिन्न-भिन्न किस्म के लोग वहां रहते हैं।
हर साल बाढ़ आती..उनकी झोपड़ी बह जाती..जन-धन की बड़ी हानि होती।
उनके सामान का नुकसान हो जाता,
कभी जानवर बह गए,
कभी कोई बच्चा डूब गया, क्योंकि..अचानक रात को बाढ़ आ जाती।
हमेशा नुकसान होता..झोपड़ी बह जाती, टूट जाती।
तब नगरपालिका वाले उन्हें कहीं दूर शिफ्ट करते।
फिर दो-तीन महीने बाद..बाढ़ समाप्त हो जाने पर वे फिर वहीं झोपड़ी बनाते। फिर कच्ची झोपड़ियां बनतीं।
जब मैं छोटा था..मेरे दो-तीन मित्र थे उन्हीं परिवारों में रहने वाले।
उनकी तकलीफ देखकर..मुझे बड़ी उदासी पकड़ती थी।
फिर मुझे यह ख्याल आता था कि..ये यहीं क्यों रहते हैं?
ये थोड़ा-सा ही दूर वहां से खिसक जाएं..जहां बाढ़ नहीं पहुंचती।
सबको पता है कि कहां तक नदी की बाढ़ आती है..तो उस क्षेत्र में ही क्यों रहना?
मैं उन लोगों से कहता था कि..तुम लोग दूसरी जगह झोपड़ी बनाओ..इतनी सारी जमीन पड़ी है।
छोटे-छोटे गांव में जमीन की कमी थोड़ी है!
वे कहते थे- ‘नहीं। यहां से कैसे जाएंगे?
हमारे पूर्वज यहीं रहते आए हैं।
पता नही, शायद...तुम्हारे पूर्वज भी नालायक थे, तुम भी नालायक हो।
फिर मैं थोड़ा बड़ा हुआ..स्कूल में जब पढ़ता था..छठवीं-सातवीं क्लास में..
मैंने भूगोल में पढ़ा कि उत्तरी ध्रुव में..
जहां -60 डिग्री टेम्परेचर रहता है
वहां एस्किमो रहते हैं।
उनका घर भी बर्फ का बना होता है
बर्फ के पत्थरों को तोड़-तोड़ के ईंट जैसा बनाकर उनको आपस में जोड़ लेते हैं।
वहां और कुछ है ही नहीं खाने-पीने के लिए बड़ी त्राहि-त्राहि है।
हरियाली नाम की कोई चीज नहीं।
कई मीटर बर्फ जमा है..जो आज तक कभी पिघला नहीं।
पेड़-पौधे कहां उगेंगे?
उनके जीवन में कठिनाइयां ही कठिनाइयां हैं।
फिर पढ़ा मैंने रेगिस्तानों के बारे में
जहां भी देखिये पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची रहती है।
बेचारे गरीब लोग हैं..कुछ ज्यादा उनके पास है नहीं..सबसे बड़ी सम्पत्ति उनके पास ऊंट हैं।
वही उनकी यात्रा के साधन हैं..वही उनके वाहन हैं।
मगर कभी इतनी प्यास लगती है कि ऊंट को मार कर उसके पेट से पानी निकाल के पी लेते हैं।
सामान्यतः यह बात सोच के ही घिन उत्पन्न होती है-
मरे हुए जानवर के पेट से पानी निकाल के पीना !
फिर मैंने कल्पना की कि कैसी प्यास होगी..जरा ये तो सोचो !
और ऊंट को मारना कोई सस्ता काम नहीं, वे गरीब लोग हैं।
उनके पास सबसे महंगी चीज ऊंट ही है।
ऊंट का मर जाना बहुत बड़ी आर्थिक हानि है उनकी।
कैसी भयंकर प्यास, कैसी तड़फ लगती होगी!
फिर मुझे ख्याल आया कि..वे लोग वहां से हटते क्यों नहीं?
क्या उनको पता नहीं कि..दुनिया बहुत बड़ी है।
वे रेगिस्तान में ही क्यों रहते हैं?
एस्किमो वही क्यों रहते हैं बर्फ में? इतनी बड़ी दुनिया है..कही भी चले जाएं।
आज से बीस साल पहले..मैंने ध्यान शिविर लेना शुरू किया।
लोगो को समझाना आरंभ किया कि कैसे शांत हों, कैसे आनन्दित हों? कैसे प्रसन्न हों?
धीरे-धीरे मुझे समझ में आ गया
कि..सब जिद्दी हैं :)
वे वही रहेंगे। रोना रोएंगे, कष्ट भुगतेंगे पर हटने को तैयार नहीं हैं।
तुम जिस चंचल मन की शिकायत कर रहे हो
तुम से कौन कहता है कि..वही अड्डा जमा कर रहो?
थोड़ा खिसकना सीखो न...!
या तो अपनी साक्षी चेतना में पहुंच जाओ
वहां ओंकार की धुन सुनो अंतस प्रकाश का अवलोकन करो
या अपने बाहर शरीर के तल पर आ जाओ..
इंद्रियों के प्रति संवेदनशील बनो।
अपनी कर्मेन्द्रियों की, अपने हाथ-पैरों की गति का जरा उनका ख्याल करो।
वहां होश को लाओ।
तुम अपने होश को मन पर फोकस करके मत बैठो..
नहीं तो पागल हो जाओगे।
इसलिए मैंने कहा कि हमारे होने के चार आयाम हैं-
तन, मन, हृदय और चेतना।
मन और हृदय हमेशा डावांडोल होते रहते हैं। वे रोज बदलते रहते हैं।
रोज क्या, दिन में कई बार बदलते हैं।
लेकिन हम वहां से खिसक सकते हैं।
थोड़ी देर के लिए ही सही
एक बार तुमको कला हाथ में लग गई तो तुम्हारा जीवन परमानंद से भर जाएगा।
अगर तुम मन से लड़े..तो तुमको वहीं रह के लड़ना पड़ेगा।
वो रेगिस्तान का आदमी सोचे कि मैं रेगिस्तान की इस गर्मी से लू से..
गर्म हवाओं से लड़ूंगा
तो उसको वहीं रह कर लड़ना पड़ेगा..वहां से हट नहीं सकता।
वो एस्किमो सोचे कि..मैं इस बर्फ को पिघला कर रहूंगा।
बेचारा मर जाएगा।..लेकिन बर्फ नहीं पिघलेगा।
और उसको वही रहना पड़ेगा बर्फ से लड़ने के लिए।
मैं आप से कह रहा हूं..कि ना रेगिस्तान से लड़ो..ना बर्फ से लड़ो।
कृपा करके वहां से हटो।
दुनिया बहुत बड़ी है, बहुत सुंदर-सुंदर जगह हैं।
तुमने कोई ठेका ले लिया है वहीं रहने का?
यही बात मैं आप से कहता हूं।
मन ही सब कुछ नहीं है। हमारे पास और बहुत कुछ है।
एक बार आप हटने की कला सीख गए
तो आपका मन एकदम शांत हो जाएगा।..क्यों?
क्योंकि वह ऊर्जा वही है..जो विचारों को चलाने में, तथा भावनाओं को चलाने में लगती है।
आपने उस ऊर्जा को कहीं और लगा दिया
तो विचारों को चलाने के लिए कुछ बचा ही नहीं।
जैसे आप के घर में बल्ब जल रहा है
और आपने गीजर या ए.सी. अॅान कर दिया..तब अचानक बल्ब डिम हो जाएगा।
क्योंकि आपके घर में मीटर से जो बिजली आ रही है..वह निश्चित मात्रा की है।
अब वो गीजर ने खींच ली,
बल्ब को मिलने वाली ऊर्जा कम हो गई।
तो बल्ब डिम हो जाएगा।
हमारी सारी ऊर्जा फिलहाल मन को और हृदय को मिल रही है
इस ऊर्जा को हम डायवर्ट करें
या तो बाहर तन-केंद्रित करें..या भीतर चेतन-केंद्रित करें।
जैसे ही ऊर्जा डायवर्ट हुई
मन को व हृदय को मिलने वाली ऊर्जा कम हुई..वे अपने आप शांत हो जाएंगे।
हमें शांत करना थोड़ी पड़ेगा!
जैसे नदी पर बाँध बना देते हैं, पानी इकट्ठा हो गया।
फिर नहर खोद कर पानी को दूर ले गए खेतों में सींचने के लिए।
या बिजली पैदा करने के लिए जनरेटर में ले गए।
सारा पानी नहरों में चला गया।
जहां से नदी पहले बहती थी..अब वो जगह सूख गई।
हमने पानी कहीं और भेज दिया, उसका दूसरा उपयोग कर लिया।
ठीक ऐसे ही हमारी जीवन-ऊर्जा है वाइटल फोर्स या लाईफ एनर्जी है।
विचारों और भावनाओं के ऊहा-पोह में फँसी है वहां संलग्न है।
और अगर हम मन से ऊब भी जाते हैं..तो हम वहीं रह कर..उससे लड़ने की कोशिश करते हैं।
कुछ होगा नहीं सफलता नहीं मिलेगी।
वहां से हट जाओ। नई दिशा में नहर खोदो।
दो दिशाएं है आपके पास जाने के लिए-
जिन लोगों को भीतर साक्षी भाव में रमना आता है
ओंकार-आलोक का ज्ञान हो गया है
जिन्होंने ओशोधारा समाधि कार्यक्रम किए हुए हैं..उनके लिए बड़ा आसान है।
वे अपने भीतर खिसक जाएं।
दिन में दस-बीस बार जब मौका मिला
चंद मिनट के लिए भी अपने भीतर खिसक गए बस, बात बन जाएगी।
सारी ऊर्जा वहां डायवर्ट हो जाएगी।
मन को मिलने वाली शक्ति खत्म हुई
तब विचार चलेंगे कैसे?
वह जो चंचलता थी,..विचलन था,..डावांडोलपन था..वो चलेगा कैसे?
चलाने के लिए तो शक्ति चाहिए।
और शक्ति हमने दूसरी तरफ संलग्न कर दी।
जिन लोगों को अपने चैतन्य का ज्ञान नहीं है
कोई बात नहीं..वे दूसरा प्रयोग करें।
अपनी ज्ञानेंद्रियों और अपनी कर्मेंद्रियों के प्रति सजग होना सीखें।
सारी ऊर्जा वहां लगा दें।
जो काम कर रहे हैं..पूरी तरह से उसमें जीएं।
जब आप भोजन कर रहे हैं..तो भोजन का स्वाद ही सब कुछ हो जाए..और सारा संसार भूल जाए।
जब आप चल रहे हैं..तो बस चल रहे हैं।
जब आप स्नान कर रहे हैं
और श्ॅावर से पानी की छोटी-छोटी बूंदें शरीर पर पड़ रही हैं
तब उनके शीतल अनुभव को स्पर्श करें।
टॅावल से आप बदन पोंछ रहे हैं..उस टच को..उस स्पर्श को महसूस करें
आप पाएंगे कि मन की चंचलता खत्म हुई।
ये दो उपाय हैं।

ओशो

Tuesday, 2 April 2019

10 Tips to Calm Down & Relax in Less Than a Minute By Kranti Gaurav

Sometimes our days get so crazy we forget to take a minute to breathe! But we must–it’s the only way to decompress before getting too carried away. Fortunately, there are many ways both physically and spiritually that we can do this.

All of these methods for calming down can be done in under a minute.

1. Catch your Breath

Close your eyes and inhale for 3 seconds from deep within your diaphragm, then exhale for 3 seconds. Repeat 3 times.

2. Pectoral Door Stretch

​Place your elbow and forearm on the edge of an open door frame. Make sure the elbow placement is just shy of shoulder height and stretch the chest forward. Hold for 3-5 seconds and repeat the movement three times with both arms.

3. Focus Breaths

​Focus on something you want to happen or feel — even if you don’t deeply feel it yet. For example “today I am beautiful” or “I am going to rock this interview.” Close your eyes, take a breath and say the words. It will penetrate.

4. Posture Break

Sit up tall, focus on your scapulae (shoulder blades) try to get them to touch each other and then shift them down as far as you can, hold for 5 seconds, relax and repeat.

5. Wall Angel Exercise

Sit down on the floor against a wall. Lean your back flat against the wall, put your arms straight down by your side then raise your arms up, as if you were making a “T.” You can come up further only if you can maintain a flat back against the wall.

6. Relax Break

Lay flat on the floor with your knees bent, inhale deeply and allow your body to relax into the floor.

7. Muscle Tension Release

To relieve tension, lightly roll or hold a tennis ball where you feel tightness in your muscles (not on a bone or tendon) for 5 seconds. This works really well to release tension in the shoulders.

8. Releasing Tension Headaches

For tension headaches try to focus on your jaw. Focus on unclenching your teeth and allow the jaw to relax. It is so important for people with headaches to just gain awareness of jaw tension. Also placing a “boo-boo pack” (a child-sized gel ice pack) along the jaw can help relieve some of the pain.

9. Take a Little Walk

Get up off your chair and walk around the desk. Take a quick but deliberate walk to the water cooler and drink a sip of water. This will help increase circulation and get your body moving more during the day. It can be calming to break up the tension that can come from sitting in one place especially since we spend so much time in front of screens!

10. Music Break

Play 30 seconds of music and move. Try to just let go completely if you have a private space to do so! This will put you in a great mood and help keep you moving throughout the day.

Thank you so much my dear Friends 

Stay Fit, Take Care & Keep Smiling :-)

God Bless 👍

Ten Tips to Calm Down & Relax within a Minute by Kranti Gaurav

Sometimes our days get so crazy we forget to take a minute to breathe! But we must–it’s the only way to decompress before getting too carried away. Fortunately, there are many ways both physically and spiritually that we can do this.

All of these methods for calming down can be done in under a minute.

1. Catch your Breath

Close your eyes and inhale for 3 seconds from deep within your diaphragm, then exhale for 3 seconds. Repeat 3 times.

2. Pectoral Door Stretch

​Place your elbow and forearm on the edge of an open door frame. Make sure the elbow placement is just shy of shoulder height and stretch the chest forward. Hold for 3-5 seconds and repeat the movement three times with both arms.

3. Focus Breaths

​Focus on something you want to happen or feel — even if you don’t deeply feel it yet. For example “today I am beautiful” or “I am going to rock this interview.” Close your eyes, take a breath and say the words. It will penetrate.

4. Posture Break

Sit up tall, focus on your scapulae (shoulder blades) try to get them to touch each other and then shift them down as far as you can, hold for 5 seconds, relax and repeat.

5. Wall Angel Exercise

Sit down on the floor against a wall. Lean your back flat against the wall, put your arms straight down by your side then raise your arms up, as if you were making a “T.” You can come up further only if you can maintain a flat back against the wall.

6. Relax Break

Lay flat on the floor with your knees bent, inhale deeply and allow your body to relax into the floor.

7. Muscle Tension Release

To relieve tension, lightly roll or hold a tennis ball where you feel tightness in your muscles (not on a bone or tendon) for 5 seconds. This works really well to release tension in the shoulders.

8. Releasing Tension Headaches

For tension headaches try to focus on your jaw. Focus on unclenching your teeth and allow the jaw to relax. It is so important for people with headaches to just gain awareness of jaw tension. Also placing a “boo-boo pack” (a child-sized gel ice pack) along the jaw can help relieve some of the pain.

9. Take a Little Walk

Get up off your chair and walk around the desk. Take a quick but deliberate walk to the water cooler and drink a sip of water. This will help increase circulation and get your body moving more during the day. It can be calming to break up the tension that can come from sitting in one place especially since we spend so much time in front of screens!

10. Music Break

Play 30 seconds of music and move. Try to just let go completely if you have a private space to do so! This will put you in a great mood and help keep you moving throughout the day.

Thank you so much my dear Friends

Stay Fit, Take Care & Keep Smiling :-)

God Bless 👍

Saturday, 16 February 2019

We both left home at 18



We both left home at 18.
You cleared JEE,
I got recommended.
You got IIT,
I got NDA.
You pursued your degree,
I had the toughest training.
Your day started at 7 and ended at 5,
Mine started at 4 till 9 and
Some nights also included.
You had your convocation ceremony,
I had my POP.
Best company took you and
Best package was awarded,
I was ordered to join my paltan
With 2 stars piped on my shoulders.
You got a job,
I got a way of life.
Every eve you got to see your family,
I just wished i got to see my parents soon.
You celebrated festivals with lights and music,
I celebrated with my comrade in bunkers.
We both married,
Your wife got to see you everyday,
My wife just wished i was alive.
You were sent to business trips,
I was sent on line of control.
We both returned,
Both wives couldn't control their tears, but
You wiped her but,
I couldn't.
You hugged her but,
I couldn't.
Because I was lying in the coffin,
With medals on my chest and,
Coffin wrapped with tricolour.
My way of life ended,
Your continued.

We both left home at 18.

Saturday, 24 November 2018

The Group of Frogs



A group of frogs were travelling through the forest when two of them fell into a deep pit. When the other frogs saw how deep the pit was, they told the two frogs that there was no hope left for them.
However, the two frogs ignored their comrades and proceeded to try to jump out of the pit. However, despite their efforts, the group of frogs at the top of the pit were still saying that they should just give up as they’d never make it out.
Eventually, one of the frogs took heed of what the others were saying and he gave up, jumping even deeper to his death. The other frog continued to jump as hard as he could. Once again, the group of frogs yelled at him to stop the pain and to just die.
He ignored them, and jumped even harder and finally made it out. When he got out, the other frogs said, “Did you not hear us?”
The frog explained to them that he was deaf, and that he thought they were encouraging him the entire time.
Moral of the story: People’s words can have a huge effect on the lives of others. Therefore, you should think about what you’re going to say before it comes out of your mouth – it might just be the difference between life and death.