#SEO Isn't About Gaming the System Anymore; It's About Learning How to Play by the Rules.
Kranti Gaurav
XLRI Jamshedpur
बड़ी पढ़ाई लिखाई और मेहनत के बाद मैंने private नौकरी पायी है..
नौकरी में आया तो ये जाना, यहाँ एक तरफ कुआँ तो दूसरी तरफ खाई है..
जहाँ कदम कदम पर ज़िल्लत, और घड़ी घड़ी पर ताने हैं..
यहाँ मुझे अपनी ज़िन्दगी के कई साल बिताने हैं..
अपनी गलती ना हो लेकिन क्षमा याचना हेतु हाथ फैलाने हैं..
फ़िर भी बात-बात पे data और Punishment ही पाने हैं..
जानता हूँ ये 'अग्निपथ' है, फिर भी मैं चलने वाला हूँ,
क्योंकि मैं private नौकरी वाला हूँ..
यानी मुझे दो में से एक नहीं, बल्कि दोनों राह चुननी हैं..
ड्यूटी अगर लेट हुयी तो boss चिल्लाते हैं.
गलती चाहे किसी भी की भी हो सजा तो हम ही पाते हैं.
दो नावों पे सवार हूँ, फिर भी सफ़र पूरा करने वाला हूँ..
आसान नहीं है सबको एक साथ खुश रख पाना,
परिवार के साथ वक़्त बिताना, और Office में job बचाना।
परिवार के साथ बमुश्किल कुछ वक़्त ही बिता पाता हूँ,
घर जैसे कोई मुसाफिर खाना हो, वहां तो बस आता और जाता हूँ..
फिर भी हर मोड़ पर मैं अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करने वाला हूँ,
क्योंकि मैं private नौकरी वाला हूँ..
Promotion, increment की बात पर, हमें सालो लटकाया जाता है..
हक़ की बात करने पर ठेंगा दिखलाया जाता है..
ये एक लड़ाई है, इसमें सबको साथ लेकर चलने वाला हूँ,
क्योंकि मै private नौकरी वाला हूँ..
देश समाज में सरकारी नौकरों के आरामपरस्त होने का बड़ा बवाल है..
छुट्टी मिली ना घर जा सके, Duty में ही ईद-दिवाली-क्रिसमस मनाने का अजब कमाल है..
टिफ़िन से टिफ़िन जब मिलते हैं, तो एक नया ही ज़ायका बन जाता है..
खुद के बनाये खाने में, और घर के खाने में फ़र्क़ साफ़ नज़र आता है..
मजबूरी ने इतना कुछ सिखाया, आगे भी बहुत कुछ सीखने वाला हूँ..
क्योंकि मैं private नौकरी वाला हूँ..
लोग समझते है कि बड़ा मजा करते है, नौकरी में हम लोग..
सबको मैं बदल नहीं सकता, इसलिए अब ख़ुद को बदलने वाला हूँ..
क्योंकि मैं private नौकरी वाला हूँ..
एक औरत की ज़िन्दगी का सफर
बाबुल का घर छोड़ कर पिया के घर आती है..
एक लड़की जब शादी कर औरत बन जाती है..
अपनों से नाता तोड़कर किसी गैर को अपनाती है..
अपनी ख्वाहिशों को जलाकर किसी और के सपने सजाती है..
सुबह सवेरे जागकर सबके लिए चाय बनाती है..
नहा धोकर फिर सबके लिए नाश्ता बनाती है..
पति को विदा कर बच्चों का टिफिन सजाती है..
झाडू पोछा निपटा कर कपड़ों पर जुट जाती है..
पता ही नही चलता कब सुबह से दोपहर हो जाती है..
फिर से सबका खाना बनाने किचन में जुट जाती है..
सास ससुर को खाना परोस स्कूल से बच्चों को लाती है..
बच्चों संग हंसते हंसते खाना खाती और खिलाती है..
फिर बच्चों को टयूशन छोड़,थैला थाम बाजार जाती है..
घर के अनगिनत काम कुछ देर में निपटाकर आती है..
पता ही नही चलता कब दोपहर से शाम हो जाती है..
सास ससुर की चाय बनाकर फिर से चौके में जुट जाती है..
खाना पीना निपटाकर फिर बर्तनों पर जुट जाती है..
सबको सुलाकर सुबह उठने को फिर से वो सो जाती है..
हैरान हूं दोस्तों ये देखकर सौलह घंटे ड्यूटी बजाती है..
फिर भी एक पैसे की पगार नही पाती है..
ना जाने क्यूं दुनिया उस औरत का मजाक उडाती है..
ना जाने क्यूं दुनिया उस औरत पर चुटकुले बनाती है..
जो पत्नी मां बहन बेटी ना जाने कितने रिश्ते निभाती है..
सबके आंसू पोंछती है लेकिन खुद के आंसू छुपाती है..
नमन है मेरा घर की उस लक्ष्मी को जो घर को स्वर्ग बनाती है..
ड़ोली में बैठकर आती है और अर्थी पर लेटकर जाती है..
तुम कहां हो? दीदी मैं तुम्हें ढूंढ रही हूं क्योंकि मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं किससे अपना दर्द कहूं। हम सगी बहनें तो नहीं लेकिन हमारे बीच दर्द का रिश्ता है। इसलिए मैं तुम्हीं से कहती हूं। दीदी 16 दिसंबर 2012 को तुम्हें 6 लोगों ने कुचला। तुम चली गईं तो खूब शोर हुआ। लगा कि अब लड़कियों के लिए ये देश ज्यादा सेफ होगा। लेकिन दीदी ऐसा नहीं हुआ। देखो तुम्हारे जाने के 6 साल बाद मेरे साथ क्या हुआ?
दीदी मैं सिर्फ आठ साल की हूं। मेरा नाम आसिफा है। मेरा घर जम्मू में कठुआ जिले के रसाना गांव में है। दीदी मैं अपने घोड़े को ढूंढते-ढूंढते इंसान के रूप में जानवर के चुंगल में फंस गई। वो मुझे एक मंदिर में ले गया। मंदिर का पुजारी उसका चाचा था। इन लोगों ने मुझे एक कमरे में बंद कर दिया दीदी। फिर लोग आते गए और मुझ पर जुल्म करते रहे। वो आठ लोग थे। दीदी मुझे बहुत दर्द हुआ। खाली पेट मुझे ये लोग कोई नशीली दवा देते थे। दीदी जो लोग आते थे उनमें पुलिस वाले भी थे। इनमें से एक पुलिस वाला तो वो था जिसे मुझे ढूंढने के लिए लगाया गया था। मुझ नन्हीं सी जान को कुचलने के लिए इन लोगों ने यूपी के मेरठ से भी किसी को बुला लिया। दीदी मुझमें जान तो बची नहीं थी फिर ये लोग मुझे मारने के लिए जंगल ले गए। वहां मुझे मारने ही जा रहे थे कि एक पुलिस वाले ने कहा रुको। मुझे लगा कि शायद उसे दया आ गई। लेकिन दीदी उसने जो कहा उसे सुनकर मुझे जीने की इच्छा भी नहीं रही। उसने कहा - रुको, इसे मारने से पहले मुझे एक बार और रेप करने दो। सबने मुझे फिर नोंचा।
जानती हो दीदी इनकी मुझसे कोई दुश्मनी नहीं थी। ये मेरी फैमिली और मेरे समाज के लोगों को इलाके से भगाना चाहते थे इसलिए ऐसा किया। लेकिन दीदी ये लोग अपनी दुश्मनी निभाने के लिए लड़कियों पर क्यों जुल्म ढाते हैं। और मैं तो इतनी छोटी हूं कि मुझे जाति, बिरादरी और धर्म में फर्क तक नहीं पता। मैं बेहद डरी हुई हूं दीदी। कुछ वकील और नेता मेरे गुनहगारों को बचाने के लिए शोर कर रहे हैं। डरी इसलिए हूं क्योंकि अगर ये लोग बच गए तो फिर किसी मासूम को मार देंगे। हां कुछ लोग हैं जो मेरे लिए इंसाफ मांग रहे हैं लेकिन तुम्हें तो मालूम है दीदी ये सब कुछ दिन की बात है। ये सब अपने-अपने घर चले जाएंगे। सब भूल जाएंगे। कुछ नहीं बदलेगा। तुम्हारे जाने के बाद कुछ बदला क्या। कभी बंगाल, तो कभी उन्नाव, तो कभी असम, हर दिन रेप होते हैं। बच्चियों के साथ, बूढ़ी औरतों के साथ। अब मैं भगवान से ही कहूंगी। अगले जनम मुझे बेटी न बनाना। और बनाना तो किसी ऐसी जगह मत भेजना जहां बच्चियों के साथ ऐसा करते हों...!!
जस्टिस_आसिफ़ा
कैसा कर्ज़दार हूँ के सूद लिए साहुकार ढूँढता हूँ,
जल रहा हूँ अंदर और पैरों के नीचे अँगार ढूँढता हूँ..
ना शहर बचा, ना घर और ना घर में रहने वाले,
तन्हाई की धूप में सिर छुपाने को दीवार ढूँढता हूँ..
एक मुद्दत गुज़र गई है यूँ तन्हा मुझको जीते हुए,
जो रुखसती में दिया था उसने वो इंतज़ार ढूँढता हूँ..
अपनों के शहर में आखिर अपना कुछ भी नहीं,
बेगानों की महफ़िल में बचपन का यार ढूँढता हूँ..
वक्त से गुम हुए हैं मेरे कई साज़-ओ-सामान,
इस बदलाव की आँधी में अपना गुबार ढूँढता हूँ..
जिनके सीनों में भी अब कोई हरकत नहीं होती,
मैं उनकी आँखों में अपने लिए प्यार ढूँढता हूँ..
इन वीरानों में कहीं दब के रह गई है वफ़ा,
जो हुआ करता था मेरा वो गुलज़ार ढूँढता हूँ..
आधे रास्ते तक पहुँचा हुआ एक मुसाफिर हूँ,
खंजर से चोट खा चुका अब तलवार ढूँढता हूँ..
अभी हूँ मैं जिन्दा, जो जताना है प्यार तो अभी जता लो
भले बाद में न एक आँसू तुम बहाना,
ना एक फूल भी तुम मुझ पर चढ़ाना!
अभी हूँ मैं जिन्दा, लगाना है तो अभी सीने से लगा लो
भले बाद मरने के, कांधा तक ना लगाना!
अभी हूँ अकेला साथ की सबके बहुत है जरुरत
भले बाद मरने के, कोई भी झमघट न तुम सब लगाना!
बहुत कुछ है दिल में,
आओ कभी साथ बैठो और सुन लो
भले चाहे बाद मेरे तुम, पास आना ना आना!
अभी तो है मुमकिन,
जो बुलाओगे तो दौड़ा चला आऊंगा पास तुम्हारे
जो मर जाऊं तो ना दिखावे के लिए रुदाली आवाज़ लगाना!
हूँ बुरा बहुत मैं,
गर कुछ भी है अच्छा तो मुझको बता दो
बहुत भला था वो बंदा, ये कह कर बाद में ना मुझको बहलाना!
एक मुद्दत हुई जल रहा हूँ मैं अंदर ही अंदर
बाद मरने के मेरे मुझे थोड़ा कम ही जलाना!!
इन्सानों की इस दुनिया में एक औरत हूँ मैं..
किसी के लिये सिर्फ़ जिस्म का टुकड़ा..
तो किसी की ज़िन्दगी का आधार हूँ मैं..
किसी ग़ैर के लिये उसकी आँखों की नुमाईश..
तो किसी अपने के लिये सारा संसार हूँ मैं..
किसी के लिये वेश्या तो किसी के लिये मोहब्बत..
पर एक बच्चे के मुँह से निकले माँ शब्द की पुकार हूँ मैं..
जो भी हूँ मैं तुम्हारी नज़र में, पर औरत हूँ मैं..
कभी किसी की माँ, कभी बहन, कभी बीवी..
तो कभी बाज़ारू जिस्म का पुतला रह जाती हूँ मैं..
जुर्म सहते हुए कभी बेसहारा होती हूँ..
तो कभी ज़िंदादिल कहानी बनकर बहुत कह जाती हूँ मैं..
तुझे पैदा करती हूँ, तुझे गले लगाती हूँ..
तुम जितना मेरे दिल की गहराई में उतरोगे..
उतने नये राज़ खोलूंगी मैं..
कभी आज़माईश करके देखो मेरी..
तुम जितना कहो, उतने ही लफ़्ज़ बोलूंगी मैं..
क्योंकि औरत हूँ मैं, सिर्फ औरत हूँ मैं..