Saturday 7 May 2016

तन्हा दिल तन्हा सफ़र

हर दिन अपने लिए एक जाल बुनता हूँ,
कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हूँ|

हर रोज़ इम्तिहान लेती है ज़िंदगी,
हर रोज़ मगर मैं मोहब्बत चुनता हूँ|
कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हू…

बहुत दूर चला आया हूँ कारवाँ से,
तन्हा रास्तों में एक हमसफ़र ढूंढता हूँ|
कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हूँ…

अंधेरों में तुम्हारा चेहरा साफ़ दिखता है,
तुम सामने होते हो जब आँख मूंदता हूँ|
कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हूँ…

सिर्फ एहसास ए मोहब्बत बन जाता हूँ,
जब तेरी कमी को मैं सुनता हूँ|
कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हूँ…

तेरे होते हुए शायद मुमकिन नहीं,
तेरे जाते ही अपनी कलम ढूंढता हूँ|
कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हूँ…

सब हैरान हैं देख कर मेरा इश्क,
मैं तेरी वफ़ा में ऐसा झूमता हूँ|
कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हूँ…

दिल में आशियाने की आरज़ू लिए,
मैं शहरों शहरों घूमता हूँ|
कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हूँ…

No comments:

Post a Comment