Saturday 14 May 2016

एक कर्मचारी का छुट्टी से वापस आने का दर्द

It happens.......

छुट्टी से वापस आने का दर्द ……

घर जाने से पहले ही लौटने का टिकट हूँ बनवाता …

घर जाता हूँ तो मेरा बैग ही मुझे है चिढ़ाता ,
तू एक मेहमान है अब, ये पल पल मुझे बताता. ..!

माँ कहती रहती सामान बैग में फ़ौरन डालो
हर बार तुम्हारा कुछ ना कुछ छुट जाता ........
तू एक मेहमान है अब ये पल पल मुझे बताता ...

घर पंहुचने से पहले ही लौटने की टिकट,
वक़्त परिंदे सा उड़ता जाता ,
उंगलियों पे लेकर जाता हूं गिनती के दिन,

फिसलते हुए जाने का दिन पास आता ......
तू एक मेहमान है अब, ये पल पल मुझे बताता ...

अब कब होगा आना सबका पूछना ,
ये उदास सवाल भीतर तक बिखराता ,
मनुहार से दरवाजे से निकलते तक ,

बैग में कुछ न कुछ भरते जाता ...
तू एक मेहमान है अब, ये पल पल मुझे बताता. ..

जिस बगीचे की गोरैय्या भी पहचानती थी ,
अरे वहाँ अमरुद का पेड़ पापा ने कब लगाया ??
घरके कमरे की चप्पे चप्पे में बसता था मैं ,

आज लाइट्स ,फैन के स्विच भूल हाथ डगमगाता ...
तू एक मेहमान है, अब ये पल पल मुझे बताता ...

पास पड़ोस जहाँ बच्चा बच्चा था वाकिफ ,
बेटा कब आया पूछने चला आता ....
कब तक रहोगे पूछ अनजाने में वो

घाव एक और गहरा देके जाता ...
तू एक मेहमान है अब, ये पल पल मुझे बताता. ..

ट्रेन में तुम्हारे हाथो की बनी रोटियों का
डबडबाई आँखों में आकार डगमगाता ,
लौटते वक़्त वजनी हो गया बैग ,

सीट के नीचे पड़ा खुद उदास हो जाता .....
तू एक मेहमान है अब, ये पल पल मुझे बताता .....

एक कर्मचारी की व्यथा।।।।।।।

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