लम्बा सफ़र, थकन ढूंढती थोड़ी सी छाँव..
धूप की तपिश में सुलगते से पाँव..
बड़े दिनों से मन को सुकून की ज़रुरत है..
फिर भी ज़िन्दगी कुछ तो ख़ूबसूरत है..
कितने जतन से चुराया एक लम्हा, समय से..
कि बैठ कुछ मुस्करा लूँगी उसके चले जाने से पहले..
पर फिसल जाना मुट्ठी से, वक़्त की फ़ितरत है..
फिर भी ज़िन्दगी कुछ तो ख़ूबसूरत है..
मन के पंखों ने भरी उड़ान..
सपनों में था बस नीला आसमान..
क्या हो जाता गर राह न रोकता ये तूफ़ान..
खैर, टूटते बनते इरादों की लहर में..
नये सपने भी पैदा हो जाते हैं..
टीस रहती है अधूरे ख़्वाबों की, पर..
नये ख़्वाब देखते रहना अब मेरे मन की एक नई लत है..
चाहे जो भी हो, हाँ फिर भी ज़िन्दगी कुछ तो ख़ूबसूरत है..
Sunday, 1 May 2016
मेरी कल्पना एक खूबसूरत ज़िन्दगी
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment