Monday 2 May 2016

हमारी अधूरी कहानी

वक़्त ने फिर एक करवट ली..
मुझे उसके शहर से गुज़रने का मौका दिया..
उसका शहर उस शहर में..
उसकी मौजूदगी का एहसास..
उस फ़िज़ा में उसके आस पास..
होने का एक डगमगाता सा विश्वास..
तरसती आँखें उसके दीदार को बेक़रार थीं..
एक बार बस एक बार उसे देखने को बेहाल थीं..
लौट आई मेरी नज़रें टकरा कर हर दीवार से..
हो ना सका मैं रुबरु दीदार ए यार से..
लौट गई थी जिस तरह वो मेरे शहर से..
ना चाहते हुए भी लौट आया मैं..
उसी तरह उसके शहर से..
अब ना किसी से कोई गिला..
कोई शिकवा कोई तकरार है..
दो दिलों के बीच मजबूरियों की एक दीवार है..
समाज के कमज़ोर बंधन..
हर रिश्ते को खोखला बनाते हैं..
हम जैसे मजबूर इंसान इन बंधनों को..
तक़दीर का नाम दे जाते हैं..
और रह जाती है तो बस आधी अधूरी प्रेम कहानियाँ..

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