Sunday, 13 March 2016

एक ग़रीब बच्चे की नज़र से

एक गरीब बच्चे की नज़र से :-
सिक्कों में खनकते हर एहसास को देखा..
आज फिर मैंने अपने दबें हाल को देखा...
अंगीठी में बन रही थी जो कोयले पे रोटियाँ..
आज फिर मैंने अपनी माँ के जले हाथ को देखा...
बट रही थी हर तरफ किताबे और कापियाँ..
आज फिर मैंने अपने हिस्से के कोरे कागज़ को देखा...
सज रही थी हर तरफ बुलंदियों पर खिड़कियाँ..
आज फिर मैंने अपने धंसते संसार को देखा...
चढ़ रही थी हर तरफ दुआओं की अर्ज़ियाँ..
मंदिर भी माँ मैंने तेरे पांव में देखा...
लग रही थी जब मेरे अरमानो की बोलियाँ..
हर ख्वाब-ए-चादर को अपने पांव की सिमट में देखा...

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