दुनिया ने जब आँखें खोलने का मौका दिया;
तब सुलगता सा प्रश्न देखा - रोटी का...
समाज के वर्गों सा मैंने;
आकार बदलता देखा - रोटी का...
अमीर की डायनिंग टेबल पर सोने की थाली में सजी रोटी;
पर गरीब के हाथ में है प्रश्न बिलखता - रोटी का...
शामिल हुआ जब से मैं जिंदगी की दौड़ में;
तब सामने आया प्रश्न कमाना - रोटी का...
स्वप्न सब हवा हुए चक्रवात में रोटी के,
कोलतार की गर्म सड़क पर स्वयं को घसीटता...
अब मै स्वयं सुलग रहा हूँ, तवे की झुलसी हुई रोटी सा...
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