Saturday, 13 August 2016

जीवन-चक्र

एक लंबा बांस, अकेला-अकेला
सोच रहा था, बनूं चित्रकार
 
बना चित्रकार, खुद ही आसमां का
समेटकर रंग नीला और अपना रंग पीला
बारिश के पानी में घोलकर
तैयार किया रंग हरा

तैयार किया रंग हरा, असंख्य चित्र-विचित्र
तरह-तरह के वृक्षों से
बनाया एक गहरा
 
गहरे जंगल का लंबा बांस
आखि‍र खुद का पीला रंग,
होश-हवास खो चुका था
 
अचानक...
क्या हुआ, कैसे हुआ
वह बन गया
 
बना कागज, लिया ने
बनाया फिर से हरे-भरे रंग से
वही गहरा जंगल, और
एक लंबा बांस
अकेला-अकेला

आओ, मुझमें डुबकी लगाओ

दोस्ती, खुशी का मीठा दरिया है 
जो आमंत्रित करता है हमें 
'आओ, खूब नहाओ, 
हंसी-खुशी की 
मौज-मस्ती की 
शंख-सीपियां 
जेबों में भरकर ले जाओ!

आओ, मुझमें डुबकी लगाओ, 
गोता लगाओ 
खूब नहाओ 
प्यार का मीठा पानी, 
हाथों में भरकर ले जाओ...!

किताब

घुंघट उठाकर देखा सृष्टि यूहीं खोलकर ज्ञान हुआ
पन्ने पलट-पलटकर हौले-हौले विद्वान हुआ...

लगाव हुआ था बचपन से ही, बातें सिखी किताबों से निराली
तरक्की की गहराई में डूबने लगा, गाने लगा किस्मत की कव्वाली...

आखिर किताबों की तब्दील से हुई विद्या से गहरी पहचान 
विद्या की वृद्धि के आकर्षण से दिलोदिमाग में छा गई इम्तिहान  ...
 
अध्ययन, तर्क-वितर्क, कद्र किए संपादक बना हैं दिमाग
कमाई की सबब बनी किताब बना जीवन प्रज्वलि‍त चिराग

नारी का जीवन

नारी जीवन....
आंखों से रूठी नींद
बोझिल सी पलकें
पहाड़-सी जि‍म्मेदारियां ढोती


कभी गिरतीं
कभी संभलतीं
सूरज के जगने से पहले
बहुत पहले
होती शुरू 
यात्रा लंबे सफर की 
 
कई मंजिलें, कई रुकावटें 
कभी उड़तीं, कभी लड़खड़ातीं 
 
नारी जीवन 
कभी निर्जन, कभी उपवन..!!

बिदाई

सपन संजोए सुख के तेरे, की बेला आई है 
एक नन्ही-सी कली फिर से, दो आंगन में छाई है 
 
महके गजरा, खनके कंगना, सुर्ख जोड़े से सजाई है 
लाडो रानी तेरी बिदाई की, प्यारी सी बेला आई है 

घर में तुझको, क्यूंकि ईश्वर ने ये माया रचाई है 
जाना पड़े ससुराल हर बेटी को, पापा ने जीवन की रीत निभाई है 
 
सूना पड़ जाए बाबुल का घर और मन, 
पर बेटी, यही किस्मत की दुहाई है, 
 
मांगू रब से तेरी खुशियां, सह के तेरे जाने का गम 
बाद बिदाइ के जब मैं, देखूं अपना घर आंगन
सुनी पड़ी शहनाइ है...  
 
बिलख रहा मानो, घर का कोना-कोना 
तेरी हर चीज देख, अंखियन जलधार बह आइ है 
 
असहय लगे तेरी बिदाई, तड़पे मन और मुझसे पुछे  
आखिर तुने काहे को, ये रीत निभाई है 
भाए न मन को तो भी कैसे, ये बिदाई कि बेला आई है

क्या होती है स्त्रियां ?

घर की नींव में दफन सिसकियां और आहें हैं स्त्रियां
त्याग तपस्या और प्यार की पनाहें हैं स्त्रियां
हर घर में मोड़ी और मरोड़ी जाती हैं स्त्रियां
परवरिश के नाटक में हथौड़े से तोड़ी जाती हैं स्त्रियां

एक धधकती संवेदना से संज्ञाहीन मशीनें बना दी जाती है स्त्रियां
सिलवटें, सिसकियां और जिस्म की तनी हुई कमानें है स्त्रियां
नदी-सी फूट पड़ती हैं तमाम पत्थरों के बीच स्त्रियां
बाहर कोमल अंदर सूरज सी तपती हैं स्त्रियां
 
हर नवरात्रों में देवी के नाम पर पूजी जाती हैं स्त्रियां
नवरात्री के बाद बुरी तरह से पीटी जाती हैं स्त्रियां
बहुत बुरी लगती हैं जब अपना हक मांगती हैं स्त्रियां
बकरे और मुर्गे के गोश्त की कीमतों पर बिकती हैं स्त्रियां
 
हर दिन सुबह मशीन सी चालू होती हैं स्त्रियां
दिन भर घर की धुरी पर धरती-सी घूमती हैं स्त्रियां
कुलों के दीपक जला कर बुझ जाती हैं स्त्रियां
जन्म से पहले ही गटर में फेंक दी जाती हैं स्त्रियां
 
जानवर की तरह अनजान खूंटे से बांध दी जाती हैं स्त्रियां
'बात न माने जाने पर 'एसिड से जल दी जाती हैं स्त्रियां
गुंडों के लिए 'माल 'मलाई 'पटाखा ''स्वादिष्ट 'होती हैं स्त्रियां
मर्दों के लिए भुना ताजा गोस्त होती हैं स्त्रियां
 
लज्जा, शील, भय, भावुकता से लदी होती हैं स्त्रियां
अनगिनत पीड़ा और दुखों की गठरी होती हैं स्त्रियां
संतानों के लिए अभेद्द सुरक्षा कवच होती हैं स्त्रियां
स्वयं के लिए रेत की ढहती दीवार होती है स्त्रियां

धोखा, किस्मत, दर्द या तकदीर

धोखा कहूं किस्मत का या कहूं नसीबों की बातें,
इसे दिल चीर कर रख दिया तकदीर के धोखे ने..
 
अफसाने वजूद हुआ करते थे उसके आने से,
जुगनुओं सी चमक थी जिसकी आंखों में..

समय की धारा बहे जाती थी उसकी ,
मुस्कुराहटों को देख कर न ऐसी खबर थी..
 
न ऐसा ऐतबार था की कभी,
जीवन में कभी ऐसा दर्द भी मिल सकता है..
 
तकदीर से धोखा खाने पर,
दर्द के रंग बदलते देखे हमने ,
बहुत इस जमाने में, पर अब दर्द ही सहारा है..
 
तकदीर से धोखा खाने पर, फिर भी,
यादों में बसी है वो मेरी अधूरी कविता..
 
अपनी मुस्कान लिए बाहें पसारे मानो,
साथ ही है वो मेरे दिल में आज भी..
 
न माने क्या करूं, न समझे है कितना भी समझाने से,
ऐसे बड़े धोखे तकदीर के खाने से..

Friday, 12 August 2016

रुक जाना नहीं, तू कहीं हार के

बहुत पहले आप ने एक चिड़िया की कहानी सुनी होगी...

जिसका एक दाना पेड़ के कंदरे में कहीं फंस गया था...

चिड़िया ने पेड़ से बहुत अनुरोध किया उस दाने को दे देने के लिए लेकिन पेड़ उस छोटी सी चिड़िया की बात भला कहां सुनने वाला था...

हार कर चिड़िया बढ़ई के पास गई और उसने उससे अनुरोध किया कि तुम उस पेड़ को काट दो, क्योंकि वो उसका दाना नहीं दे रहा...

भला एक दाने के लिए बढ़ई पेड़ कहां काटने वाला था...

फिर चिड़िया राजा के पास गई और उसने राजा से कहा कि तुम बढ़ई को सजा दो क्योंकि बढ़ई पेड़ नहीं काट रहा और पेड़ दाना नहीं दे रहा...

राजा ने उस नन्हीं चिड़िया को डांट कर भगा दिया कि कहां एक दाने के लिए वो उस तक पहुंच गई है।

चिड़िया हार नहीं मानने वाली थी...

वो महावत के पास गई कि अगली बार राजा जब हाथी की पीठ पर बैठेगा तो तुम उसे गिरा देना, क्योंकि....

राजा बढ़ई को सजा नहीं देता...
बढ़ई पेड़ नहीं काटता...
पेड़ उसका दाना नहीं देता...

महावत ने भी चिड़िया को डपट कर भगा दिया...

चिड़िया फिर हाथी के पास गई और उसने अपने अनुरोध को दुहराया कि अगली बार जब महावत तुम्हारी पीठ पर बैठे तो तुम उसे गिरा देना क्योंकि....

वो राजा को गिराने को तैयार नहीं...
राजा बढ़ई को सजा देने को तैयार नहीं...
बढ़ई पेड़ काटने को तैयार नहीं...
पेड़ दाना देने को राजी नहीं।

हाथी बिगड़ गया...

उसने कहा, ऐ छोटी चिड़िया..
तू इतनी सी बात के लिए मुझे महावत और राजा को गिराने की बात सोच भी कैसे रही है?

चिड़िया आखिर में चींटी के पास गई और वही अनुरोध दोहराकर कहा कि तुम हाथी की सूंढ़ में घुस जाओ...

चींटी ने चिड़िया से कहा, "चल भाग यहां से...बड़ी आई हाथी की सूंढ़ में घुसने को बोलने वाली।

अब तक अनुरोध की मुद्रा में रही चिड़िया ने रौद्र रूप धारण कर लिया...
उसने कहा कि "मैं चाहे पेड़, बढ़ई, राजा, महावत, और हाथी का कुछ न बिगाड़ पाऊं........, पर तुझे तो अपनी चोंच में डाल कर खा ही सकती हु"...

चींटी डर गई।

...भाग कर वो हाथी के पास गई।
...हाथी भागता हुआ महावत के पास पहुंचा।
...महावत राजा के पास कि हुजूर चिड़िया का काम कर दीजिए नहीं तो मैं आपको गिरा दूंगा।
....राजा ने फौरन बढ़ई को बुलाया।
...उससे कहा कि पेड़ काट दो नहीं तो सजा दूंगा।
...बढ़ई पेड़ के पास पहुंचा।
...बढ़ई को देखते ही पेड़ बिलबिला उठा कि मुझे मत काटो।
…मैं चिड़िया को दाना लौटा दूंगा।

आपको अपनी ताकत को पहचानना होगा।

...आपको पहचानना होगा कि भले आप छोटी सी चिड़िया की तरह होंगे, लेकिन ताकत की कड़ियां कहीं न कहीं आपसे होकर गुजरती होंगी।
...हर शेर को सवा शेर मिल सकता है, बशर्ते आप अपनी लड़ाई से घबराएं नहीं।
...आप अगर किसी काम के पीछे पड़ जाएंगे तो वो काम होकर रहेगा।
... यकीन कीजिए...हर ताकत के आगे एक और ताकत होती है और अंत में सबसे ताकतवर आप होते हैं।

Thursday, 11 August 2016

वो भी क्या ज़माना था

वो माचिस की सीली डिब्बी, वो साँसों में आग,
बरसात में सिगरेट सुलगाए ज़माने हो गए..

वो दाँतों का पीसना, वो माथे पर बल,
किसी को झूठा ग़ुस्सा दिखाए ज़माने हो गए..

वो एक्शन के जूते और ऊपर फ़ॉर्मल सूट,
बेगानी शादी में दावत उड़ाए ज़माने हो गए..

ये बारिशें आज-कल रेनकोट में सूख जाती हैं,
सड़कों पर छपाके उड़ाए ज़माने हो गए..

अब सारे काम सोच-समझ कर करता हूँ ज़िन्दगी में,
वो पहली गेंद पर बढ़ कर छक्का लगाए ज़माने हो गए..

वो ढ़ाई नम्बर का क्वेश्चन, पुतलियों में समझाना,
किसी हसीन चेहरे को नकल कराए ज़माने हो गए..

जो कहना है फ़ेसबुक पर डाल देता हूँ,
किसी को चुपके से चिट्ठी पकड़ाए ज़माने हो गए..

बड़ा होने का शौक़ भी बड़ा था बचपन में,
काला चूरन मुँह में तम्बाकू सा दबाए ज़माने हो गए..

मेरे आसमान अब किसी विधवा की साड़ी से लगते हैं,
बादलों में पतंग की झालर लगाए ज़माने हो गए..

आज-कल खाने में मुझे कुछ भी नापसन्द नहीं,
वो मम्मी वाला अचार खाए ज़माने हो गए..

सुबह के सारे काम अब रात में ही कर लेता हूँ,
सफ़ेद जूतों पर चॉक लगाए ज़माने हो गए..

लोग कहते हैं बन्दा बड़ा सलीक़ेदार है,
दोस्त के झगड़े को अपनी लड़ाई बनाए ज़माने हो गए..

साइकिल की सवारी और ऑडी सा टशन,
डंडा पकड़ कर कैंची चलाए ज़माने हो गए..

किसी इतवार खाली हो तो आ जाना पुराने अड्डे पर,
दोस्तों को दिल के शिकवे सुनाए ज़माने हो गए..

Monday, 8 August 2016

कीमत एक रुपये की

ना खैरात में मिला है, ना वसीयत काम आई है,
एक-एक रुपया मेरी जेब का, गाढ़े पसीने की कमाई है..

ना शागिर्दी है मिजाज़ में, ना बेपनाह हुनर है कोई,
मैंने ठोकरें खा-खा कर, अपनी रह बनाई है..

मेरे बदन से खुशबू आती है मेरे पसीने की,
मेरे हाथ औज़ार हैं, मैंने मेहनत से शख्सियत सजाई है..

हासिल हुआ है बहुत कुछ, मगर कुछ आसानी से नहीं,
मैंने हर मकाम की ज़िन्दगी से कीमत चुकाई है..

वो और हैं जिनको मिला है बहुत कुछ किस्मत से,
मैंने हाथों को कुरेदा है तब अपनी तक़दीर बनाई है..

मेरी आँखों में झलकता है मेरा बेख़ौफ़ हौंसला,
मेरी तबीयत में एक गज़ब की गहराई है..

ना खैरात में मिला है, ना वसीयत काम आई है,
एक-एक रुपया मेरी जेब का, गाढ़े पसीने की कमाई है..