Saturday, 13 August 2016
जीवन-चक्र
आओ, मुझमें डुबकी लगाओ
दोस्ती, खुशी का मीठा दरिया है
जो आमंत्रित करता है हमें
'आओ, खूब नहाओ,
हंसी-खुशी की
मौज-मस्ती की
शंख-सीपियां
जेबों में भरकर ले जाओ!
आओ, मुझमें डुबकी लगाओ,
गोता लगाओ
खूब नहाओ
प्यार का मीठा पानी,
हाथों में भरकर ले जाओ...!
किताब
नारी का जीवन
बिदाई
क्या होती है स्त्रियां ?
धोखा, किस्मत, दर्द या तकदीर
Friday, 12 August 2016
रुक जाना नहीं, तू कहीं हार के
बहुत पहले आप ने एक चिड़िया की कहानी सुनी होगी...
जिसका एक दाना पेड़ के कंदरे में कहीं फंस गया था...
चिड़िया ने पेड़ से बहुत अनुरोध किया उस दाने को दे देने के लिए लेकिन पेड़ उस छोटी सी चिड़िया की बात भला कहां सुनने वाला था...
हार कर चिड़िया बढ़ई के पास गई और उसने उससे अनुरोध किया कि तुम उस पेड़ को काट दो, क्योंकि वो उसका दाना नहीं दे रहा...
भला एक दाने के लिए बढ़ई पेड़ कहां काटने वाला था...
फिर चिड़िया राजा के पास गई और उसने राजा से कहा कि तुम बढ़ई को सजा दो क्योंकि बढ़ई पेड़ नहीं काट रहा और पेड़ दाना नहीं दे रहा...
राजा ने उस नन्हीं चिड़िया को डांट कर भगा दिया कि कहां एक दाने के लिए वो उस तक पहुंच गई है।
चिड़िया हार नहीं मानने वाली थी...
वो महावत के पास गई कि अगली बार राजा जब हाथी की पीठ पर बैठेगा तो तुम उसे गिरा देना, क्योंकि....
राजा बढ़ई को सजा नहीं देता...
बढ़ई पेड़ नहीं काटता...
पेड़ उसका दाना नहीं देता...
महावत ने भी चिड़िया को डपट कर भगा दिया...
चिड़िया फिर हाथी के पास गई और उसने अपने अनुरोध को दुहराया कि अगली बार जब महावत तुम्हारी पीठ पर बैठे तो तुम उसे गिरा देना क्योंकि....
वो राजा को गिराने को तैयार नहीं...
राजा बढ़ई को सजा देने को तैयार नहीं...
बढ़ई पेड़ काटने को तैयार नहीं...
पेड़ दाना देने को राजी नहीं।
हाथी बिगड़ गया...
उसने कहा, ऐ छोटी चिड़िया..
तू इतनी सी बात के लिए मुझे महावत और राजा को गिराने की बात सोच भी कैसे रही है?
चिड़िया आखिर में चींटी के पास गई और वही अनुरोध दोहराकर कहा कि तुम हाथी की सूंढ़ में घुस जाओ...
चींटी ने चिड़िया से कहा, "चल भाग यहां से...बड़ी आई हाथी की सूंढ़ में घुसने को बोलने वाली।
अब तक अनुरोध की मुद्रा में रही चिड़िया ने रौद्र रूप धारण कर लिया...
उसने कहा कि "मैं चाहे पेड़, बढ़ई, राजा, महावत, और हाथी का कुछ न बिगाड़ पाऊं........, पर तुझे तो अपनी चोंच में डाल कर खा ही सकती हु"...
चींटी डर गई।
...भाग कर वो हाथी के पास गई।
...हाथी भागता हुआ महावत के पास पहुंचा।
...महावत राजा के पास कि हुजूर चिड़िया का काम कर दीजिए नहीं तो मैं आपको गिरा दूंगा।
....राजा ने फौरन बढ़ई को बुलाया।
...उससे कहा कि पेड़ काट दो नहीं तो सजा दूंगा।
...बढ़ई पेड़ के पास पहुंचा।
...बढ़ई को देखते ही पेड़ बिलबिला उठा कि मुझे मत काटो।
…मैं चिड़िया को दाना लौटा दूंगा।
आपको अपनी ताकत को पहचानना होगा।
...आपको पहचानना होगा कि भले आप छोटी सी चिड़िया की तरह होंगे, लेकिन ताकत की कड़ियां कहीं न कहीं आपसे होकर गुजरती होंगी।
...हर शेर को सवा शेर मिल सकता है, बशर्ते आप अपनी लड़ाई से घबराएं नहीं।
...आप अगर किसी काम के पीछे पड़ जाएंगे तो वो काम होकर रहेगा।
... यकीन कीजिए...हर ताकत के आगे एक और ताकत होती है और अंत में सबसे ताकतवर आप होते हैं।
Thursday, 11 August 2016
वो भी क्या ज़माना था
वो माचिस की सीली डिब्बी, वो साँसों में आग,
बरसात में सिगरेट सुलगाए ज़माने हो गए..
वो दाँतों का पीसना, वो माथे पर बल,
किसी को झूठा ग़ुस्सा दिखाए ज़माने हो गए..
वो एक्शन के जूते और ऊपर फ़ॉर्मल सूट,
बेगानी शादी में दावत उड़ाए ज़माने हो गए..
ये बारिशें आज-कल रेनकोट में सूख जाती हैं,
सड़कों पर छपाके उड़ाए ज़माने हो गए..
अब सारे काम सोच-समझ कर करता हूँ ज़िन्दगी में,
वो पहली गेंद पर बढ़ कर छक्का लगाए ज़माने हो गए..
वो ढ़ाई नम्बर का क्वेश्चन, पुतलियों में समझाना,
किसी हसीन चेहरे को नकल कराए ज़माने हो गए..
जो कहना है फ़ेसबुक पर डाल देता हूँ,
किसी को चुपके से चिट्ठी पकड़ाए ज़माने हो गए..
बड़ा होने का शौक़ भी बड़ा था बचपन में,
काला चूरन मुँह में तम्बाकू सा दबाए ज़माने हो गए..
मेरे आसमान अब किसी विधवा की साड़ी से लगते हैं,
बादलों में पतंग की झालर लगाए ज़माने हो गए..
आज-कल खाने में मुझे कुछ भी नापसन्द नहीं,
वो मम्मी वाला अचार खाए ज़माने हो गए..
सुबह के सारे काम अब रात में ही कर लेता हूँ,
सफ़ेद जूतों पर चॉक लगाए ज़माने हो गए..
लोग कहते हैं बन्दा बड़ा सलीक़ेदार है,
दोस्त के झगड़े को अपनी लड़ाई बनाए ज़माने हो गए..
साइकिल की सवारी और ऑडी सा टशन,
डंडा पकड़ कर कैंची चलाए ज़माने हो गए..
किसी इतवार खाली हो तो आ जाना पुराने अड्डे पर,
दोस्तों को दिल के शिकवे सुनाए ज़माने हो गए..
Monday, 8 August 2016
कीमत एक रुपये की
ना खैरात में मिला है, ना वसीयत काम आई है,
एक-एक रुपया मेरी जेब का, गाढ़े पसीने की कमाई है..
ना शागिर्दी है मिजाज़ में, ना बेपनाह हुनर है कोई,
मैंने ठोकरें खा-खा कर, अपनी रह बनाई है..
मेरे बदन से खुशबू आती है मेरे पसीने की,
मेरे हाथ औज़ार हैं, मैंने मेहनत से शख्सियत सजाई है..
हासिल हुआ है बहुत कुछ, मगर कुछ आसानी से नहीं,
मैंने हर मकाम की ज़िन्दगी से कीमत चुकाई है..
वो और हैं जिनको मिला है बहुत कुछ किस्मत से,
मैंने हाथों को कुरेदा है तब अपनी तक़दीर बनाई है..
मेरी आँखों में झलकता है मेरा बेख़ौफ़ हौंसला,
मेरी तबीयत में एक गज़ब की गहराई है..
ना खैरात में मिला है, ना वसीयत काम आई है,
एक-एक रुपया मेरी जेब का, गाढ़े पसीने की कमाई है..