रोज़ पश्चाताप,
वही पुरानी गलती
गलती ना दोहराने का प्रण
और प्रण पूरा ना कर पाने का अफ़सोस,
यह कहानी ना जाने कितनों की
“पश्चाताप” पर
पश्चाताप कर ‘पश्चाताप’ करने की
अनगिनत किस्सों पर आँसू बहाने की
और वापिस हर दिन उसे दोहराने की
लेकिन गुमराह मानस
वापिस एक नवीन “पश्चाताप” गढ़ता है,
अपने कल में मर कर, आज खोता है
बेवजह पश्चाताप कर
एक नए पश्चाताप को जन्म देता है,
‘आज’ को अंकुरित नहीं होने देता
और फूल ना मिलने का बहाना कर
फिर पश्चाताप,
‘पश्चाताप’ पर पश्चाताप !!
Monday, 4 July 2016
‘पश्चाताप’
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