Thursday, 29 June 2017

आप कहते हैं सरापा गुलमुहर है ज़िन्दगी



आप कहते हैं सरापा* गुलमुहर है ज़िन्दगी
हम ग़रीबों की नज़र में इक क़हर है ज़िन्दगी

भुखमरी की धूप में कुम्हला गई अस्मत की बेल
मौत के लम्हात से भी तल्ख़तर* है ज़िन्दगी

डाल पर मज़हब की पैहम* खिल रहे दंगों के फूल
ख़्वाब के साये में फिर भी बेख़बर है ज़िन्दगी

रोशनी की लाश से अब तक जिना* करते रहे
ये वहम पाले हुए शम्सो-क़मर है ज़िन्दगी

दफ़्न होता है जहाँ आकर नई पीढ़ी का प्यार
शहर की गलियों का वो गंदा असर है ज़िन्दगी

* सरापा – सर से पैर तक
* तल्ख़तर – कड़वी
* पैहम – लगातार, निरन्तर
* जिना – अनुचित सम्बन्ध
* शम्स-ओ-कमर – सूरज और चाँद

अदम गोंडवी

घर के मंदिर में हो श्रीकृष्ण की मूर्ति तो न भूले ये 6 चीजें



श्री कृष्ण को प्रेम स्वरूप माना जाता है। ग्रंथों में कहा गया है कि श्री कृष्ण का व्यक्तित्व बहुत ही सम्मोहक है। वे पीलापीतांबर धारण करते हैं और उनके मुकुट पर मोर पंख है। श्री कृष्ण को छ: चीजों से बहुत प्रेम है, पहली बांसुरी जो हमेशा उनके होंठों से लगी रहती है। दूसरी गाय व तीसरी माखन मिश्री, चाैथा मोर पंख और पांचवा कमल और वैजयंती माला। ये छ: चीजें श्री कृष्ण को प्रिय होती है इसलिए जो भी श्री कृष्ण को ये चीजें अर्पित करता है। उसके घर में हमेशा सुख समृद्धि व ऐश्वर्य बना रहता है। आइए जानते हैं श्री कृष्ण को क्यों प्रिय है ये 6 चीजें….

मुरली या बांसुरी (Murali, Bansuri or Flute)-

कृष्ण को बांसुरी बहुत पसंद है, क्योंकि यह कान्हा को बहुत प्रिय है, इसके तीन मुख्य कारण हैं पहला बांसुरी एकदम सीधी होती है। उसमें किसी तरह की गांठ नहीं होती है। जो संकेत देता है कि अपने अंदर किसी भी प्रकार की गांठ मत रखों। मन में बदले की भावना मत रखो। दूसरा बिना बजाए ये बजती नहीं है। मानो बता रही है कि जब तक ना कहा जाए तब तक मत बोलो और तीसरा जब भी बजती है मधुर ही बजती है। जिसका अर्थ हुआ जब भी बोलो, मीठा ही बोलो। जब ऐसे गुण किसी में भगवान देखते हैं, तो उसे उठाकर अपने होंठों से लगा लेते हैं।

गाय (Cow)-

कहते हैं गाय के शरीर में 33 करोड़ देवी-देवताओं का निवास होता है। साथ ही, यह सभी गुणों की खान है। गाय श्रीकृष्ण को अतिप्रिय है। गाय से प्राप्त गौ का मूत्र, गोबर, दूध, दही और घी, आदि पंचगव्य कहलाते हैं। मान्यता है कि इनका पान कर लेने से शरीर के भीतर पाप नहीं ठहरता। इसलिए घर के मंदिर में कृष्ण जी के साथ ही गाय व बछड़ा भी रखना चाहिए।

मोरपंख (Morpankah)-


मोर का पंख देखने में बहुत सुंदर होता है। इसलिए इसे सम्मोहन का प्रतीक माना जाता है। मोर को चिर-ब्रह्मचर्य युक्त प्राणी समझा जाता है। इसलिए श्री कृष्ण मोर पंख धारण करते हैं। मोर मुकुट का गहरा रंग दु:ख और कठिनाइयों, हल्का रंग सुख-शांति और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

कमल (Kamal)-

कमल कीचड़ में उगता है और उससे ही पोषण लेता है, लेकिन हमेशा कीचड़ से अलग ही रहता है। इसलिए कमल पवित्रता का प्रतीक है। इसकी सुंदरता और सुगंध सभी का मन मोहने वाली होती है। साथ ही कमल यह संदेश देता है कि हमें कैसे जीना चाहिए? सांसारिक और आध्यात्मिक जीवन किस प्रकार जिया जाए इसका सरल तरीका बताता है कमल।

मिश्री अौर माखन (Mishri aur Makhan)-

कान्हा को माखन मिश्री बहुत ही प्रिय है। मिश्री का एक महत्वपूर्ण गुण यह है कि जब इसे माखन में मिलाया जाता है, तो उसकी मिठास माखन के कण-कण में घुल जाती है। उसके प्रत्येक हिस्से में मिश्री की मिठास समा जाती है। मिश्री युक्त माखन जीवन और व्यवहार में प्रेम को अपनाने का संदेश देता है। यह बताता है कि प्रेम में किसी प्रकार से घुल मिल जाना चाहिए।

वैजयंती माला (Vaijayanti mala)-


भगवान के गले में वैजयंती माला है, जो कमल के बीजों से बनी हैं। दरअसल, कमल के बीज सख्त होते हैं। कभी टूटते नहीं, सड़ते नहीं, हमेशा चमकदार बने रहते हैं। इसका तात्पर्य है, जब तक जीवन है, तब तक ऐसे हमेशा प्रसन्न रहाे। दूसरा यह माला बीज है, जिसकी मंजिल होती है भूमि। भगवान कहते हैं जमीन से जुड़े रहो, कितने भी बड़े क्यों न बन जाओ। हमेशा अपने अस्तित्व की असलियत के नजदीक रहो।

Tuesday, 27 June 2017

हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये



हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये
अपनी कुरसी के लिए जज्बात को मत छेड़िये

हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िये

ग़र ग़लतियाँ बाबर की थीं; जुम्मन का घर फिर क्यों जले
ऐसे नाजुक वक्त में हालात को मत छेड़िये

हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ
मिट गये सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िये

छेड़िये इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के ख़िलाफ़
दोस्त, मेरे मजहबी नग्मात को मत छेड़िये

अदम गोंडवी

ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नज़ारों में



ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नज़ारों में
मुसल्सल* फ़न का दम घुटता है इन अदबी इदारों* में

न इन में वो कशिश होगी , न बू होगी , न रआनाई
खिलेंगे फूल बेशक लॉन की लम्बी कतारों में

अदीबो ! ठोस धरती की सतह पर लौट भी आओ
मुलम्मे के सिवा क्या है फ़लक़ के चाँद-तारों में

रहे मुफ़लिस गुज़रते बे-यक़ीनी के तजरबे से
बदल देंगे ये इन महलों की रंगीनी मज़ारों में

कहीं पर भुखमरी की धूप तीखी हो गई शायद
जो है संगीन के साये की चर्चा इश्तहारों में

* मुसल्सल – कैद
* अदबी इदारों – सभ्य समाजो
* मुलम्मा – सोने की परत
* मुफ़लिस – गरीब
* तजरबे – अनुभव

अदम गोंडवी

चाँद है ज़ेरे क़दम सूरज खिलौना हो गया


चाँद है ज़ेरे क़दम सूरज खिलौना हो गया

चाँद है ज़ेरे क़दम* सूरज खिलौना हो गया
हाँ, मगर इस दौर में क़िरदार बौना हो गया

शहर के दंगों में जब भी मुफलिसों के घर जले
कोठियों की लॉन का मंज़र सलौना हो गया

ढो रहा है आदमी काँधे पे ख़ुद अपनी सलीब
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा जब बोझ ढोना हो गया

यूँ तो आदम के बदन पर भी था पत्तों का लिबास
रूह* उरियाँ* क्या हुई मौसम घिनौना हो गया

अब किसी लैला को भी इक़रारे-महबूबी नहीं
इस अहद* में प्यार का सिम्बल तिकोना हो गया

* ज़ेरे कदम – कदमो के तले
* रूह – आत्मा
* उरियाँ – निवस्त्र , नग्न
* अहद – समय

अदम गौंडवी

काजू भुने पलेट में विस्की गिलास में



काजू भुने पलेट में विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में

पक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत
इतना असर है खादी के उजले लिबास में

आजादी का वो जश्न मनाएँ तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में

पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गई है यहाँ की नखास में

जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में

अदम गोंडवी

Friday, 9 June 2017

धूप बहुत है मौसम जल-थल भेजो ना

धूप बहुत है मौसम जल-थल भेजो ना
बाबा मेरे नाम का बादल भेजो ना

मोल्सरी की शाख़ों पर भी दिये जलें
शाख़ों का केसरया आँचल भेजो ना

नन्ही मुन्नी सब चेहकारें कहाँ गईं
मोरों के पैरों की पायल भेजो ना

बस्ती बस्ती दहशत किसने बो दी है
गलियों बाज़ारों की हलचल भेजो ना

सारे मौसम एक उमस के आदी हैं
छाँव की ख़ुश्बू, धूप का संदल भेजो ना

मैं बस्ती में आख़िर किस से बात करूँ
मेरे जैसा कोई पागल भेजो ना

राहत इन्दौरी 

तीरगी चांद के ज़ीने से सहर तक पहुँची

तीरगी चांद के ज़ीने से सहर तक पहुँची
ज़ुल्फ़ कन्धे से जो सरकी तो कमर तक पहुँची

मैंने पूछा था कि ये हाथ में पत्थर क्यों है
बात जब आगे बढी़ तो मेरे सर तक पहुँची

मैं तो सोया था मगर बारहा तुझ से मिलने
जिस्म से आँख निकल कर तेरे घर तक पहुँची

तुम तो सूरज के पुजारी हो तुम्हे क्या मालुम
रात किस हाल में कट-कट के सहर तक पहुँची

एक शब ऐसी भी गुजरी है खयालों में तेरे
आहटें जज़्ब किये रात सहर तक पहुँची

राहत इन्दौरी 

पुराने शहरों के मंज़र निकलने लगते हैं

पुराने शहरों के मंज़र निकलने लगते हैं
ज़मीं जहाँ भी खुले घर निकलने लगते हैं

मैं खोलता हूँ सदफ़ मोतियों के चक्कर में
मगर यहाँ भी समन्दर निकलने लगते हैं

हसीन लगते हैं जाड़ों में सुबह के मंज़र
सितारे धूप पहनकर निकलने लगते हैं

बुरे दिनों से बचाना मुझे मेरे मौला
क़रीबी दोस्त भी बचकर निकलने लगते हैं

बुलन्दियों का तसव्वुर भी ख़ूब होता है
कभी कभी तो मेरे पर निकलने लगते हैं

अगर ख़्याल भी आए कि तुझको ख़त लिक्खूँ
तो घोंसलों से कबूतर निकलने लगते हैं

राहत इन्दौरी 

अँधेरे चारों तरफ़ सायं-सायं करने लगे

अँधेरे चारों तरफ़ सायं-सायं करने लगे
चिराग़ हाथ उठाकर दुआएँ करने लगे

तरक़्क़ी कर गए बीमारियों के सौदागर
ये सब मरीज़ हैं जो अब दवाएँ करने लगे

लहूलोहान पड़ा था ज़मीं पे इक सूरज
परिन्दे अपने परों से हवाएँ करने लगे

ज़मीं पे आ गए आँखों से टूट कर आँसू
बुरी ख़बर है फ़रिश्ते ख़ताएँ करने लगे

झुलस रहे हैं यहाँ छाँव बाँटने वाले
वो धूप है कि शजर इलतिजाएँ करने लगे

अजीब रंग था मजलिस का, ख़ूब महफ़िल थी
सफ़ेद पोश उठे काएँ-काएँ करने लगे

राहत इन्दौरी