Tuesday, 14 November 2017

कोई मुझे भी तो बताओ कि खेलना किसे कहते है - मासूम के बचपन पर तमाचा

झोपड़े के नीचे मुस्कुराता ,
एक बेचारा बचपन ,
ना जाने कब बीत गया ,
उसका वो प्यारा बचपन ||

कुछ के घर में माँ बाप नहीं ,
कुछ घर छोड़ कर भागे हैं ,
कुछ बहकावे में निकल लिए ,
कुछ पैदा हुए अभागे हैं ,
चाहे जैसे भी आये हों ,
सबकी किस्मत कुछ मिलती है ,
न कागज की वो नावें हैं ,
न झूलों पर बैठा बचपन ||

इनके हमउम्र सभी बच्चे ,

खिलौनों में खुश हैं ,
इनके तो खेल दुकानों में ,
सुबह से ही सज जाते हैं ,
जब बाकी सब गिनती सिखने की ,
घर में कोशिश करते हैं ,
ये बिना सीखे गिनती ; धंधे का
खूब हिसाब लगाते हैं ,
जब बाकी सब खाना खाते हैं ,
माँ के हाथों से इठलाकर ,
ये पिचके हुए कटोरे में ,
कच्चे से चावल खाते हैं ,
जब बाकी सब माँ के सिरहाने ,
लोरी सुनकर सोते हैं ,
ये फटी हुई चादर को ओढ़े ,
सर्दी की रात बिताते हैं ,
जीवन केवल बीत रहा है ,
अंधकार में लिपटा कल ,
सोचो तो कैसा होता ,
जो होता यही हमारा बचपन ||

जब , बच्चों की मासूम निगाहें ,
जन्नत की सैर कराती हैं ,
तो क्यूँ कुछ बच्चों की ऑंखें फिर ,
सूखी गंगा बन जाती हैं ,
कुछ तो उनके दिल में है ,
उनके भी कुछ सपने हैं ,
उनकी भी कोई जरुरत है ,
कुछ हक उनके भी अपने हैं ,
दे दो एक मुस्कान उन्हें ,
कुछ सपने और एक सुन्दर कल ,
उनको फिर से लौटा दो ,
उनका वो प्यारा बचपन ||

Monday, 13 November 2017

ईर्ष्या या नफरत

ईर्ष्या या नफ़रत

🔵 एक बार एक महात्मा ने अपने शिष्यों से अनुरोध किया कि वे कल से प्रवचन में आते समय अपने साथ एक थैली में बडे़ आलू साथ लेकर आयें, उन आलुओं पर उस व्यक्ति का नाम लिखा होना चाहिये जिनसे वे ईर्ष्या करते हैं। जो व्यक्ति जितने व्यक्तियों से घृणा करता हो, वह उतने आलू लेकर आये।

🔴 अगले दिन सभी लोग आलू लेकर आये, किसी पास चार आलू थे, किसी के पास छः या आठ और प्रत्येक आलू पर उस व्यक्ति का नाम लिखा था जिससे वे नफ़रत करते थे।

🔵 अब महात्मा जी ने कहा कि, अगले सात दिनों तक ये आलू आप सदैव अपने साथ रखें, जहाँ भी जायें, खाते-पीते, सोते-जागते, ये आलू आप सदैव अपने साथ रखें। शिष्यों को कुछ समझ में नहीं आया कि महात्मा जी क्या चाहते हैं, लेकिन महात्मा के आदेश का पालन उन्होंने अक्षरशः किया। दो-तीन दिनों के बाद ही शिष्यों ने आपस में एक दूसरे से शिकायत करना शुरू किया, जिनके आलू ज्यादा थे, वे बडे कष्ट में थे। जैसे-तैसे उन्होंने सात दिन बिताये, और शिष्यों ने महात्मा की शरण ली। महात्मा ने कहा, अब अपने-अपने आलू की थैलियाँ निकालकर रख दें, शिष्यों ने चैन की साँस ली।

🔴 महात्माजी ने पूछा – विगत सात दिनों का अनुभव कैसा रहा? शिष्यों ने महात्मा से अपनी आपबीती सुनाई, अपने कष्टों का विवरण दिया, आलुओं की बदबू से होने वाली परेशानी के बारे में बताया, सभी ने कहा कि बडा हल्का महसूस हो रहा है… महात्मा ने कहा – यह अनुभव मैने आपको एक शिक्षा देने के लिये किया था…

🔵 जब मात्र सात दिनों में ही आपको ये आलू बोझ लगने लगे, तब सोचिये कि आप जिन व्यक्तियों से ईर्ष्या या नफ़रत करते हैं, उनका कितना बोझ आपके मन पर होता होगा, और वह बोझ आप लोग तमाम जिन्दगी ढोते रहते हैं, सोचिये कि आपके मन और दिमाग की इस ईर्ष्या के बोझ से क्या हालत होती होगी? यह ईर्ष्या तुम्हारे मन पर अनावश्यक बोझ डालती है, उनके कारण तुम्हारे मन में भी बदबू भर जाती है, ठीक उन आलुओं की तरह…. इसलिये अपने मन से इन भावनाओं को निकाल दो।

🔴 यदि किसी से प्यार नहीं कर सकते तो कम से कम नफ़रत मत करो, तभी तुम्हारा मन स्वच्छ, निर्मल और हल्का रहेगा, वरना जीवन भर इनको ढोते-ढोते तुम्हारा मन भी बीमार हो जायेगा🙏🙏🙏🙏

What makes you Beautiful ??

What makes you beautiful?

At the naughty age of 40 ,we had our school reunion...one of my friend mentioned - look at the girls..they are still looking so beautiful 😍...even today,I skipped a heart beat  looking at my crush ..😀. But the boys are looking so old...many are bald with protruding tummies & shrunken faces ...😔

Made me think...what makes a person beautiful? Is it just looks?

Obviously it's nice to look good...it may boost ones confidence & social interactions ...but is it enough?

I guess there is a vast difference between 'looking' beautiful  & 'being' beautiful...

A lady who has disfigured her body during pregnancy ...now she is struggling with her complexes...
..but yet she is the source of unconditional love for family ...is  beautiful...

A bald, obese man who is facing multiple professional challenges...yet he is the source of rock solid support for the family...is a beautiful person...

A working lady ...stressing herself out with balancing work & home... still finds time for her ill mother in law neglecting her taunts...is beautiful 😊

The frangrance of love & care spread by them is far superior to any strong perfume ...

Eventually the beauty of body will fade one day...but the beauty of soul will not...

Personally....how you ' look' matters for first few minutes...but how you 'are' ..matters lifetime...😊

Stay beautiful 😍

Friday, 3 November 2017

मेरे जज़्बातों की औकात - मत पूछो

गरीबों की औकात ना पूछो तो अच्छा है, 
इनकी कोई जात ना पूछो तो अच्छा है।

चेहरे कई बेनकाब हो जायेंगे, 
ऐसी कोई बात ना पूछो तो अच्छा है। 

खिलौना समझ कर खेलते जो रिश्तों से, 
उनके निजी जज्बात ना पूछो तो अच्छा है, 
बाढ़ के पानी में बह गए छप्पर जिनके, 
कैसे गुजारी रात ना पूछो तो अच्छा है। 

भूख ने निचोड़ कर रख दिया है जिन्हें, 
उनके तो हालात ना पूछो तो अच्छा है, 
मज़बूरी में जिनकी लाज लगी दांव पर, 
क्या लाई सौगात ना पूछो तो अच्छा है। 

गरीबों की औकात ना पूछो तो अच्छा है, 
इनकी कोई जात ना पूछो तो अच्छा है।

Saturday, 28 October 2017

धन की परिभाषा

धन की परिभाषा

जब कोई बेटा या बेटी ये कहे कि मेरे माँ बाप ही मेरे भगवान् है….ये है “धन”

जब कोई माँ बाप अपने बच्चों के लिए ये कहे कि ये हमारे कलेजे की कोर हैं….ये है “धन”

शादी के 20 साल बाद भी अगर पति पत्नी एक दूसरे से कहें I Love you…ये है “धन”

कोई सास अपनी बहु के लिए कहे कि ये मेरी बहु नहीं बेटी है और कोई बहु अपनी सास के लिए कहे कि ये मेरी सास नहीं मेरी माँ है……ये है “धन”

जिस घर में बड़ो को मान और छोटो को प्यार भरी नज़रो से देखा जाता है……ये है “धन”

जब कोई अतिथि कुछ दिन आपके घर रहने के पशचात् जाते समय दिल से कहे  की आपका घर …घर नहीं मंदिर है….ये है “धन”

ऐसी दुआ हैं मेरी कि आपको ऐसे ”परम धन” की प्राप्ति हो।

😄 सदा खुश रहिये 😊

आपका हर लम्हा मंगलदायक हो

🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹

Sunday, 3 September 2017

आज मैं बहुत उदास हूँ

आज मैं बहुत उदास हूँ,
एक एहसास मुझे बार बार डरा रहा है..

अपने वतन को छोड़ने का एहसास,
अपने अपनों को छोड़ने का एहसास..

दोस्तों से बिछुड़ने का एहसास,
वैसे भी पश्चिम की हवा मुझे कभी रास नहीं आई..

मुझे नर्म गद्दों पर नींद नहीं आती,
चटाई पर सोना अच्छा लगता है..

पीजा बर्गेर से मेरा पेट नहीं भरता,
अचार से रोटी खाना अच्छा लगता है..

बड़े बड़े रेस्टोरेंट में बैठने से मुझे,
बौनेपन का एहसास होता है..

यारों मुझे वहाँ क्यों नहीं रहने दिया जाता,
जो मैं हूँ, मै असलियत में जीना चाहता हूँ..

आडम्बर ओढ़कर जीना मेरी नियति नहीं है,
आकाश में उड़ना मेरा शौक नहीं हैं..

मै एक बूढ़ा जिसकी खंडर हो गयी ईमारत,
क्यों मुझे विदेश की धरती पर दफनाना चाहते हो..

मै तो चाहता था बेटा,
तुम वापिस लौट आओ..

तुम्हारा देश तुम्हारा वतन तुम्हारी धरती,
बेसब्री से तुम्हारा इन्तेजार कर रही है..

मान जाओ मेरे बेटे,
मुझे तो कम से कम समझों..

मेरी जड़ों पर खड़ा रहने दो,
मत उखाड़ो मुझे, मै जी नहीं पाउँगा..

मुझे डर लगता है विदेश की सड़कों से,
मुझे डर लगता है विदेश की सुविधाओं से..

कितने मजबूर हो जाते हैं बूढ़े माँ बाप,
एक तरफ जन्म भूमि का मोह..

दूसरी तरफ बच्चों की ममता,
किसको छोडें किसको पकडें..

ए तनहा जिंदगी,
और क्या क्या गुल खिलाएगी..

जहाँ पर पानी नहीं होगा,
क्या वहीँ पर डुबाएगी..

Thursday, 24 August 2017

अम्मा की रोटी

अम्मा लगी रहती है
रोटी की जुगत में
सुबह चूल्हा...
शाम चूल्हा...

अम्मा के मुँह पर रहते हैं
बस दो शब्द
'रोटी' और 'चूल्हा'

चिमटा...
चकला...
आटा...
बेलन...

राख की पहेलियों में घिरी अम्मा
लकड़ी सुलगाए रहती है हरदम

धुएँ में स्नान करती
अम्मा नहीं जानती
प्रदूषण और पर्यावरण की बातें
अम्मा तो पढ़ती है सिर्फ
रोटी... रोटी... रोटी

खुरदुरे नमक के टुकड़े
सिल पर दरदराकर
गेंहूँ की देह में घुसी अम्मा
खा लेती है
कभी चार रोटी
कभी एक
और कई बार तो
नसीब तक नहीं हो पाती
अम्मा को अम्मा की रोटी..

Thursday, 3 August 2017

बरकत के कदम


एक आदमी ने दुकानदार से पूछा:
केले और सेवफल क्या भाव लगाऐ है?
केले 20 रु.दर्जन और सेव 100 रु. किलो

उसी समय एक गरीब सी औरत दुकान में आयी और
बोली मुझे एक किलो सेव और एक दर्जन केले चाहिए,
क्या भाव है ? भैया
दुकानदार: केले 5 रु दर्जन और सेब 25 रु किलो।
औरत ने कहा जल्दी से दे दीजिए
दुकान में पहले से मौजूद ग्राहक ने खा जाने वाली
निगाहों से घूरकर दुकानदार को देखा,
इससे पहले कि वो कुछ कहता,
दुकानदार ने ग्राहक को इशारा करते हुए
थोड़ा सा इंतजार करने को कहा।

औरत खुशी खुशी खरीदारी करके दुकान से निकलते हुए बड़बड़ाई हे भगवान  तेरा लाख लाख शुक्र है,
मेरे बच्चे फलों को खाकर बहुत खुश होंगे।
औरत के जाने के बाद,
दुकानदार ने पहले से मौजूद ग्राहक की तरफ
देखते हुए कहा: ~  ईश्वर गवाह है, भाई साहब
मैंने आपको कोई धोखा देने की कोशिश नहीं की।

यह विधवा महिला है , जो चार अनाथ बच्चों की मां है।
किसी से भी किसी तरह की मदद लेने को तैयार नहीं है।
मैंने कई बार कोशिश की है और हर बार नाकामी मिली है। तब मुझे यही तरीकीब सूझी है कि ~जब कभी ये आए तो, 
मै उसे कम से कम दाम लगाकर चीज़े देदूँ।
मैं यह चाहता हूँ कि उसका भरम बना रहे और
उसे लगे कि वह किसी की मोहताज नहीं है।
मैं इस तरह भगवान के बन्दो की पूजा कर लेता हूँ

थोड़ा रूक कर दुकानदार बोला:
यह औरत हफ्ते में एक बार आती है।
भगवान गवाह है, जिस दिन यह आ जाती है
उस दिन मेरी बिक्री बढ़ जाती है और
उस दिन परमात्मा मुझपर मेहरबान होजाता है।

ग्राहक की आंखों में आंसू आ गए, उसने
आगे बढकर दुकानदार को गले लगा लिया
और बिना किसी शिकायत के अपना सौदा
खरीदकर खुशी खुशी चला गया ।
खुशी अगर बाटना चाहो तो तरीका भी मिल जाता है l

Tuesday, 1 August 2017

मैं और मेरी ज़िन्दगी की ये कम्बख्त कश्मकश

कल मैं दुकान से जल्दी घर चला आया। आम तौर पर रात में 10 बजे के बाद आता हूं, कल 8 बजे ही चला आया।

सोचा था घर जाकर थोड़ी देर पत्नी से बातें करूंगा, फिर कहूंगा कि कहीं बाहर खाना खाने चलते हैं।  बहुत साल पहले, , हम ऐसा करते थे। 

घर आया तो पत्नी टीवी देख रही थी। मुझे लगा कि जब तक वो ये वाला सीरियल देख रही है, मैं कम्यूटर पर कुछ मेल चेक कर लूं। मैं मेल चेक करने लगा,   कुछ देर बाद पत्नी चाय लेकर आई, तो मैं चाय पीता हुआ दुकान के काम करने लगा।

अब मन में था कि पत्नी के साथ बैठ कर बातें करूंगा, फिर खाना खाने बाहर जाऊंगा, पर कब 8 से 11 बज गए, पता ही नहीं चला।

पत्नी ने वहीं टेबल पर खाना लगा दिया, मैं चुपचाप खाना खाने लगा। खाना खाते हुए मैंने कहा कि खा कर हम लोग नीचे टहलने चलेंगे, गप करेंगे। पत्नी खुश हो गई।

हम खाना खाते रहे, इस बीच मेरी पसंद का सीरियल  आने लगा और मैं खाते-खाते सीरियल में डूब गया।  सीरियल देखते हुए सोफा पर ही मैं सो गया था।

जब नींद खुली तब आधी रात हो चुकी थी।
बहुत अफसोस हुआ।  मन में सोच कर घर आया था कि जल्दी आने का फायदा उठाते हुए आज कुछ समय पत्नी के साथ बिताऊंगा। पर यहां तो शाम क्या आधी रात भी निकल गई।

ऐसा ही होता है, ज़िंदगी में। हम सोचते कुछ हैं, होता कुछ है। हम सोचते हैं कि एक दिन हम जी लेंगे, पर हम कभी नहीं जीते। हम सोचते हैं कि एक दिन ये कर लेंगे, पर नहीं कर पाते।

आधी रात को सोफे से उठा, हाथ मुंह धो कर बिस्तर पर आया तो पत्नी सारा दिन के काम से थकी हुई सो गई थी।  मैं चुपचाप बेडरूम में कुर्सी पर बैठ कर कुछ सोच रहा था। 

पच्चीस साल पहले इस लड़की से मैं पहली बार मिला था। पीले रंग के शूट में मुझे मिली थी। फिर मैने इससे शादी की थी। मैंने वादा किया था कि सुख में, दुख में ज़िंदगी के हर मोड़ पर मैं तुम्हारे साथ रहूंगा।

पर ये कैसा साथ?  मैं सुबह जागता हूं अपने काम में व्यस्त हो जाता हूं। वो सुबह जागती है मेरे लिए चाय बनाती है।  चाय पीकर मैं कम्यूटर पर संसार से जुड़ जाता हूं, वो नाश्ते की तैयारी करती है। फिर हम दोनों दुकान के काम में लग जाते हैं, मैं दुकान के लिए तैयार होता हूं, वो साथ में मेरे लंच का इंतज़ाम करती है। फिर हम दोनों भविष्य के काम में लग जाते हैं।

मैं एकबार दुकान चला गया, तो इसी बात में अपनी शान समझता हूं कि मेरे बिना मेरा दुकान का काम नहीं चलता, वो अपना काम करके डिनर की तैयारी करती है।

देर रात मैं घर आता हूं और खाना खाते हुए ही निढाल हो जाता हूं।  एक पूरा दिन खर्च हो जाता है, जीने की तैयारी में।

वो पंजाबी शूट वाली लड़की मुझ से कभी शिकायत नहीं करती। क्यों नहीं करती मैं नहीं जानता। पर मुझे खुद से शिकायत है।  आदमी जिससे सबसे ज्यादा प्यार करता है, सबसे कम उसी की परवाह करता है। क्यों?
 

कई दफा लगता है कि हम खुद के लिए अब काम नहीं करते। हम किसी अज्ञात भय से लड़ने के लिए काम करते हैं। हम जीने के पीछे ज़िंदगी बर्बाद करते हैं।

कल से मैं सोच रहा हूं, वो कौन सा दिन होगा जब हम जीना शुरू करेंगे। क्या हम गाड़ी, टीवी, फोन, कम्यूटर, कपड़े खरीदने के लिए जी रहे हैं?

मैं तो सोच ही रहा हूं, आप भी सोचिए

कि ज़िंदगी बहुत छोटी होती है। उसे यूं जाया मत कीजिए। अपने प्यार को पहचानिए। उसके साथ समय बिताइए। जो अपने माँ बाप भाई बहन सागे संबंधी सब को छोड़ आप से रिश्ता जोड़  आपके सुख-दुख में शामिल होने का वादा  किया  उसके सुख-दुख को पूछिए तो सही।

एक दिन अफसोस करने से बेहतर है, सच को आज ही समझ लेना कि ज़िंदगी मुट्ठी में रेत की तरह होती है। कब मुट्ठी से वो निकल जाएगी, पता भी नहीं चलेगा।

उधार के 100 रुपये

बाहर बारिश हो रही थी और अन्दर क्लास चल रही थी, तभी टीचर ने बच्चों से पूछा कि अगर तुम सभी को 100-100 रुपये दिए जाए तो तुम सब क्या क्या खरीदोगे ?.किसी ने कहा कि मैं वीडियो गेम खरीदुंगा, किसी ने कहा मैं क्रिकेट का बेट खरीदुंगा, किसी ने कहा कि मैं अपने लिए प्यारी सी गुड़िया खरीदुंगी,.तो किसी ने कहा मैं बहुत सी चॉकलेट्स खरीदुंगी | एक बच्चा कुछ सोचने में डुबा हुआ था, टीचर ने उससे पुछा कि तुम क्या सोच रहे हो ? तुम क्या खरीदोगे ?.बच्चा बोला कि टीचर जी, मेरी माँ को थोड़ा कम दिखाई देता है तो मैं अपनी माँ के लिए एक चश्मा खरीदूंगा ‌।.. टीचर ने पूछाः तुम्हारी माँ के लिए चश्मा तो तुम्हारे पापा भी खरीद सकते है, तुम्हें अपने लिए कुछ नहीं खरीदना ? बच्चे ने जो जवाब दिया उससे टीचर का भी गला भर आया | बच्चे ने कहा कि मेरे पापा अब इस दुनिया में नहीं है | मेरी माँ लोगों के कपड़े सिलकर मुझे पढ़ाती है और कम दिखाई देने की वजह से वो ठीक से कपड़े नहीं सिल पाती है इसीलिए मैं मेरी माँ को चश्मा देना चाहता हुँ ताकि मैं अच्छे से पढ़ सकूँ, बड़ा आदमी बन सकूँ और माँ को सारे सुख दे सकूँ !टीचर:-बेटा तेरी सोच ही तेरी कमाई है। ये 100 रूपये मेरे वादे के अनुसार और ये 100 रूपये और उधार दे रहा हूँ। जब कभी कमाओ तो लौटा देना। और मेरी इच्छा है तू इतना बड़ा आदमी बने कि तेरे सर पे हाथ फेरते वक्त मैं धन्य हो जाऊं। 15 वर्ष बाद......बाहर बारिश हो रही है, अंदर क्लास चल रही है।अचानक स्कूल के आगे जिला कलेक्टर की बत्ती वालीगाड़ी आकर रूकती है। स्कूल स्टाफ चौकन्ना हो जाता हैं। स्कूल में सन्नाटा छा जाता है। मगर ये क्या ? जिला कलेक्टर एक वृद्ध टीचर के पैरों में गिर जाते हैं और कहते हैं:-" सर मैं दामोदर दास उर्फ़ झंडू!! आपके उधार के 100 रूपये लौटाने आया हूँ "पूरा स्कूल स्टॉफ स्तब्ध!!! वृद्ध टीचर झुके हुए नौजवान कलेक्टर को उठाकर भुजाओं में कस लेता है और रो पड़ता हैं। हम चाहें तो अपने आत्मविश्वास और मेहनत के बल पर अपना भाग्य खुद लिख सकते है और अगर हमको अपना भाग्य लिखना नहीं आता तो परिस्थितियां हमारा भाग्य लिख देंगी....!