आज मैं बहुत उदास हूँ,
एक एहसास मुझे बार बार डरा रहा है..
अपने वतन को छोड़ने का एहसास,
अपने अपनों को छोड़ने का एहसास..
दोस्तों से बिछुड़ने का एहसास,
वैसे भी पश्चिम की हवा मुझे कभी रास नहीं आई..
मुझे नर्म गद्दों पर नींद नहीं आती,
चटाई पर सोना अच्छा लगता है..
पीजा बर्गेर से मेरा पेट नहीं भरता,
अचार से रोटी खाना अच्छा लगता है..
बड़े बड़े रेस्टोरेंट में बैठने से मुझे,
बौनेपन का एहसास होता है..
यारों मुझे वहाँ क्यों नहीं रहने दिया जाता,
जो मैं हूँ, मै असलियत में जीना चाहता हूँ..
आडम्बर ओढ़कर जीना मेरी नियति नहीं है,
आकाश में उड़ना मेरा शौक नहीं हैं..
मै एक बूढ़ा जिसकी खंडर हो गयी ईमारत,
क्यों मुझे विदेश की धरती पर दफनाना चाहते हो..
मै तो चाहता था बेटा,
तुम वापिस लौट आओ..
तुम्हारा देश तुम्हारा वतन तुम्हारी धरती,
बेसब्री से तुम्हारा इन्तेजार कर रही है..
मान जाओ मेरे बेटे,
मुझे तो कम से कम समझों..
मेरी जड़ों पर खड़ा रहने दो,
मत उखाड़ो मुझे, मै जी नहीं पाउँगा..
मुझे डर लगता है विदेश की सड़कों से,
मुझे डर लगता है विदेश की सुविधाओं से..
कितने मजबूर हो जाते हैं बूढ़े माँ बाप,
एक तरफ जन्म भूमि का मोह..
दूसरी तरफ बच्चों की ममता,
किसको छोडें किसको पकडें..
ए तनहा जिंदगी,
और क्या क्या गुल खिलाएगी..
जहाँ पर पानी नहीं होगा,
क्या वहीँ पर डुबाएगी..
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