Friday, 4 May 2018

मेरे घर के कोने में रखी कुछ किताबें


सूरज की रौशनी को खुद में समाए
अपने उजाले से मेरे मन के अंधेरों
को चीरतीं,
हवा जिन्हें जब छूकर निकले
तो अपने शब्दों के कम्पन से
सुनाती हैं
एक गुमी हुई आवाज़
मैं जिसे सुनना चाहता हूँ,
अकेले में मुझ से बातें करती हुई
जैसे मुझे जानती हों
पहचानती हों,
इस सरपट भागती दुनिया में
जहाँ
किसी के पास वक़्त नहीं
उनके पास हमेशा वक़्त होता है मेरे लिए
दूसरी दुनिया के द्वार की तरह
ले जाती हैं मुझे उसी दुनिया में
जहाँ मैं बिता सकता हूँ चंद लम्हे
ठहराव के
उन दोस्तों के साथ
जो कभी मिले नहीं
जो अब हैं नहीं
पर मुझसे कुछ कहना चाहते हैं
और बात करते हैं मुझसे
उन किताबों के ज़रिये
जैसे मेरे लिए ही लिखी गई हों वे बातें
मैं अक्सर सोचता हूँ
क्या होता मेरा अस्तित्व उन किताबों के बिना
शायद,
मैं होता कोई और
कहीं,
पर वह नहीं जो आज हूँ
मैं जानता हूँ तुमने लिखी हैं वह किताबें
सिर्फ़ मेरे लिए
मेरे अकेलेपन के लिए
और रख दी हैं उस कोने में
जहाँ से वह मुझे बुलाती हैं
हर लम्हा
मेरे घर के कोने में रखी कुछ किताबेंI

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