Tuesday 7 June 2016

मुझे कुछ कहना है

मैं उड़ना चाहती हूँ
मेरे पंख काट दिए जाते हैं,
मैं इस दुनिया में आना चाहती हूँ
मुझे गर्भ में ही खत्म कर दिया जाता है,
मैं आगे बढ़ना चाहती हूँ
मेरे रास्ते में मर्यादा की चट्टान खड़ी कर दी जाती है,
मैं अपने सपने पूरे करना चाहती हूँ
मुझे मेरी सीमाएं याद दिलाई जाती हैं,
मैं चार दीवारी की घुटन की सीलन से छुटकारा पाना चाहती हूँ
मुझे सीता का लक्ष्मण रेखा लांघने का परिणाम याद दिलाया जाता है,
मैं स्वतंत्र हो साँस लेना चाहती हूँ,
बिना किसी की इजाज़त लिए
आसमां में बसना, हवा को चूमना चाहती हूँ,
मैं मनुवादी रीतियों से परे होना चाहती हूँ
मुझे पुरुषवादी भय दिखाकर
शुचिता का पाठ पढ़ाया जाता है,
मुझे पैरों की पायल, नाक की नथनी,
हाथों की चूड़ियों, कानों की बालियों जैसी
गिरहों में बांधा जाता है,
क्यों मेरी ज़िन्दगी की सांसों को
कभी पिता तो कभी पति जैसी क़ैद के हवाले किया जाता है,
क्यों मुझे पुरुष कम पशुरूप का आतंक दिखा
गूंगा, बहरा, अंधा रहने को कहा जाता है,
क्यों मुझे मेरी आत्मा को मार, रक्त मांस के
पुतले की तरह जीने को कहा जाता है,
क्यों मुझे मेरी ज़िन्दगी जीने के लिए
चाहे अनचाहे किसी दूसरे को सौंप दिया जाता है,
क्यों मुझे ‘निर्भया’ अपनी इज्ज़त की रक्षा करने की सज़ा भोगनी पड़ती है,
क्यों मुझे ही दोषी साबित कर, अपनी
कुत्सित मानसिकता की पूर्ती हेतु मुझे बलि चढ़ाया जाता है,

क्यों???

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