Saturday 11 June 2016

अन्न का प्रभाव

अन्न का प्रभाव

चावल बेचने वाले एक सेठ की स्टेशन मास्टर से साँठ-गाँठ हो गयी! सेठ को आधी कीमत पर बासमती चावल मिलने लगा!
सेठ ने सोचा कि इतना पाप हो रहा है, तो कुछ धर्म-कर्म भी करना चाहिए!
और एक दिन उसने उन चावल की खीर बनवायी और किसी साधू बाबा को आमंत्रित कर भोजन प्रसाद लेने के लिए प्रार्थना की?
साधू बाबा ने बहुत ही स्वादिष्ट खीर खायी!
दोपहर का समय था, सेठ ने कहाः "महाराज ! अभी आप आराम कीजिए, थोड़ी धूप कम हो जाये तो प्रस्थान कीजियेगा!
साधू बाबा ने उसकी बात स्वीकार कर ली!
सेठ के उस कमरें में जहाँ पर साधू बाबा विश्राम कर रहे थे!वहाँ पर 100-100 रूपये वाली 10 लाख जितनी रकम की गड्डियाँ चादर से ढँककर रखी हुई थी!
साधू बाबा आराम करने लगे!
थोडा सा आराम करनें के उपरान्त साधू बाबा ने देखा कि इतनी सारी नोटौं की गड्डियाँ पड़ी हैं! एक-दो उठाकर झोले में रख लूँगा तो किसको पता चलेगा? और साधू बाबा ने एक गड्डी उठाकर रख ली!
शाम हुई और सेठ को आशीर्वाद देकर चल पड़े!
सेठ दूसरे दिन रूपये गिनने बैठा तो उसमें 1 गड्डी (दस हजार रुपये) कम निकली
सेठ ने सोचा कि महात्मा तो भगवतपुरुष थे, वे क्यों लेंगे? ये काम मेरे नोकरों ने किया है!
नौकरों की धुलाई-पिटाई चालू हो गई, ऐसा करते-करते दोपहर हो गयी!
इतने में साधू बाबा वहाँ आ पहुँचे,तथा अपने झोले में से गड्डी निकाल कर सेठ को देते हुए बोलेः "नौकरों को मत पीटो" ये गड्डी मैं ले गया था!
सेठ ने कहाः "महाराज ! आप क्यों लेंगे ? जब यहाँ नौकरों से पूछताछ शुरु हुई तब कोई भय के मारे आपको दे आया होगा!और आप नौकर को बचाने के उद्देश्य से ही वापस करने आये हैं,क्योंकि साधू तो दयालु होते है । "
साधुः "यह दयालुता नहीं है,मैं सचमुच में तुम्हारी गड्डी चुराकर ले गया था!
साधू ने कहा सेठ ....तुम सच बताओ कि तुमनें कल खीर किसकी और किसलिए बनायी थी ?"
सेठ ने सारी बात बता दी कि स्टेशन मास्टर से चोरी के चावल खरीदता हूँ, उसी चावल की खीर थी!
साधू बाबाः "चोरी के चावल की खीर थी इसलिए उसने मेरे मन में भी चोरी का भाव उत्पन्न कर दिया! सुबह जब पेट खाली हुआ, तेरी खीर का सफाया हो गया तब मेरी बुद्धि शुद्ध हुई कि--
'हे राम.... यह क्या हो गया ?
मेरे कारण बेचारे नौकरों पर न जाने क्या बीत रही होगी, इसलिए तेरे पैसे लौटाने आ गया!
--"इसीलिए कहते हैं कि....
जैसा खाओ अन्न ... वैसा होवे मन!

जैसा पीओ पानी .... वैसी होवे वाणी

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