Sunday 1 November 2015

Celebrate Diwali by Helping to Helpless

पटाखों की दुकान से दूर हाथों मे,
कुछ सिक्के गिनते मैने उसे देखा...
एक गरीब बच्चे कि आखों मे,
मैने दिवाली को मरते देखा.
थी चाह उसे भी नए कपडे पहनने की...
पर उन्ही पुराने कपडो को मैने उसे साफ करते देखा.
हम करते है सदा अपने ग़मो कि नुमाईश...
उसे चुप-चाप ग़मो को पीते देखा.
जब मैने कहा, "बच्चे, क्या चहिये तुम्हे"?
तो उसे चुप-चाप मुस्कुरा कर "ना" मे सिर हिलाते देखा
थी वह उम्र बहुत छोटी अभी...
पर उसके अंदर मैने ज़मीर को पलते देखा
रात को सारे शहर कि दीपो कि लौ मे...
मैने उसके हसते, मगर बेबस चेहरें को देखा.
हम तो जिन्दा है अभी शान से यहा.
पर उसे जीते जी शान से मरते देखा.
लोग कहते है, त्योहार होते है ज़िंदगी मे खुशियों के लिए,
तो क्यो मैने उसे मन ही मन मे घुटते और तरस्ते देखा?

Help atleast one Poor Kid on This Diwali my dear Friends..

करके देखो....अच्छा लगता है :-)

God Bless !!

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