Thursday 5 November 2015

शिक़ायत

अपनी नींद के कारण ही कभी भोर नहीं देखी मैंने,
सूरज से शिकायत करता हूँ, क्यों जल्दी तू आ जाता है..

खुद बरसात के मौसम में ख्वाबों के दीप जलाये थे,
बादल से शिकायत करता हूँ, क्यों पानी तू बरसाता है..

मेरी नादानी के कारण जो हाथ से मेरे फिसल गया,
उस दिल से शिकायत करता हूँ, क्यों काबू में न आता है..

वक़्त कि खिल्ली बहुत उड़ाई थी तब तो मैंने यारों,
लम्हे से शिकायत करता हूँ, क्यों वापस तू न आता है..

खुशियाँ जितनी मांगी थी, उस से ज्यादा मैंने पाई,
फिर भी मैं शिकायत करता हूँ, क्यों गम हिस्से में आता है..

नजरें आसमान पे थी जब ठोकर खायी थी मैंने,
पत्थर से शिकायत करता हूँ, क्यों रस्ते में आ जाता है..

और...

ठोकर खा कर भी न संभला, उसी पत्थर से फिर टकराया,
खुद खुदा से शिकवा कर डाला, क्यों दुनिया गोल बनाता है...
खुद खुदा से शिकवा कर डाला, क्यों दुनिया गोल बनाता है !!!

2 comments: