Saturday 23 June 2018

मैं लिखना चाहता हूँ लेकिन मेरी कलम रुक जाती है

मैं लिखना चाहता हूँ लेकिन मेरी कलम रुक जाती है

जब कोई कहता है, भूख लगी है, पैसे दे दो...

मैं लिखना चाहता हूँ लेकिन मेरी कलम रुक जाती है

जब मैं देखता हूँ, छोटे से बच्चे को, चाय की दूकान पे काम करते...

मैं लिखना चाहता हूँ लेकिन मेरी कलम रुक जाती है

जब कोई सिमटी सिकुडी लड़की, किनारे से गुजरती है, सर झुका कर, भीड़ से बचकर...

मैं लिखना चाहता हूँ लेकिन मेरी कलम रुक जाती है

जब कोई रिक्शा वाला, दस के बदले पाँच पाकर, खड़े होकर देखता है चमकते सूट को...

मैं लिखना चाहता हूँ लेकिन मेरी कलम रुक जाती है

जब एक पुलिस वाला सलाम करता है, किसी गाड़ी वाले को...

मैं लिखना चाहता हूँ लेकिन मेरी कलम रुक जाती है

जब अखबार में छपती है हत्या, लूट, बलात्कार की, युद्ध, राजनीति, उठा-पटक की, रोज-रोज खबरे एक-सी...

मैं लिखना चाहता हूँ लेकिन मेरी कलम रुक जाती है

जब लगता है शब्दों के बाण, कविता का मलहम या गीत के सरगम बदल नहीं सकते,

तुझे, मुझे या उन्हें

ना आत्मा को, ना परमात्मा को, ना भूत को, ना भविष्य को...

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